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जम्मू, 31 अक्टूबर (हि.स.)। डुग्गर प्रदेश में धार्मिक उल्लास और आस्था के माहौल के बीच इस वर्ष भी भीष्म पंचक व्रत की तैयारियाँ जोरों पर हैं। श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत) के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) ने जानकारी देते हुए बताया कि यह व्रत सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पाँच दिनों तक किया जाता है।
महंत शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष दशमी युक्त एकादशी के कारण व्रत का शुभारंभ 1 नवंबर (शनिवार) से होगा और समापन 5 नवंबर (बुधवार) को कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भीष्म पंचक को “पंच भीखू व्रत” भी कहा जाता है, क्योंकि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने स्वयं यह व्रत किया था। जम्मू क्षेत्र में इस व्रत के उद्यापन की परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है, जिसे स्थानीय भाषा में “दीयों का मोख” कहा जाता है। इस वर्ष भक्तजन 5 नवंबर को “मोख” कर सकेंगे।
महंत शास्त्री ने बताया कि महाभारत युद्ध के उपरांत जब भीष्म पितामह शरशैया पर शयन कर रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने पाँचों पांडवों सहित उनसे दर्शन कर धर्मोपदेश की प्रार्थना की थी। पितामह ने पाँच दिनों तक धर्म, मोक्ष और जीवन के आदर्श सिद्धांतों पर उपदेश दिया, जिसके उपरांत भगवान श्रीकृष्ण ने उनके नाम से यह व्रत स्थापित किया।
महंत रोहित शास्त्री ने भक्तों से आह्वान किया कि वे इन पाँच दिनों में संयम, भक्ति और सेवा के साथ व्रत करें। उन्होंने कहा, किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा है। यदि व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और नियमों के साथ निभाता है, तो उसके मन, शरीर और भविष्य पर शुभ प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि व्रत के दौरान तामसिक वस्तुओं से परहेज, ब्रह्मचर्य का पालन, पवित्रता और संयम बनाए रखना चाहिए। भीष्म पंचक व्रत करने वाले भक्तों को सुख, समृद्धि और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा