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शिमला, 31 अक्टूबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को मजबूत बनाने की दिशा में राज्य सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। जल शक्ति विभाग और ग्रामीण विकास विभाग के बीच शुक्रवार को फीकल स्लज यानी शौचालयों से निकलने वाले अपशिष्ट के सुरक्षित उपचार के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता हिमाचल में अपशिष्ट जल प्रबंधन को सुदृढ़ करने और जल स्रोतों के प्रदूषण को रोकने के उद्देश्य से किया गया है।
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में फीकल स्लज प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। प्रदेश के अधिकांश ग्रामीण घरों में सिंगल पिट शौचालय बनाए गए हैं, जो भर जाने पर पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश एक प्रमुख पर्यटन राज्य होने के कारण यहां पर्यटकों, मजदूरों और अस्थायी आबादी के उपयोग से कई स्थानों पर शौचालय पिट ओवरफ्लो हो जाते हैं। कई बार इनका गंदा पानी खुले क्षेत्रों या नालों में छोड़ा जाता है, जिससे नदियों, झीलों और तालाबों का पानी प्रदूषित होता है और जनस्वास्थ्य के लिए खतरा बनता है।
इस समस्या के समाधान के लिए ग्रामीण विकास विभाग ने वॉश इंस्टीट्यूट के सहयोग से पूरे राज्य में सर्वेक्षण करवाया है, अभियंताओं को प्रशिक्षण दिया है और फीकल स्लज के सुरक्षित निपटान के लिए योजनाएं तैयार की हैं। इस पूरी प्रक्रिया में जल शक्ति विभाग की भी सक्रिय भूमिका रही है। विभाग ने राज्य के 22 मौजूदा सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की पहचान की है, जहां फीकल स्लज के उपचार के लिए आवश्यक ढांचा विकसित किया जा रहा है।
पायलट परियोजना के रूप में कांगड़ा जिले के पालमपुर और मंडी जिले के सुंदरनगर स्थित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को क्रियाशील किया गया है। इन संयंत्रों में आसपास के ग्रामीण इलाकों से एकत्र किए गए फीकल स्लज का वैज्ञानिक और सुरक्षित निपटान किया जा रहा है। आने वाले समय में जल शक्ति विभाग के सभी उपयुक्त ट्रीटमेंट प्लांट्स को इस योजना से जोड़ा जाएगा, जिससे अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में फीकल स्लज का सुरक्षित उपचार सुनिश्चित हो सकेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा