देवउठनी एकादशी एक नवंबर को, सुहागिनें रखेंगी व्रत
आचार्य चेतन पांडेय


चतरा, 31 अक्टूबर (हि.स.)। देव जागरण का महापर्व देवउत्थान शनिवार को झारखंड के विभिन्‍न जिलों में मनाया जायेगा। शुक्रवार को व्रत का नहाय-खाय और संयत किया गया। देवोत्थान एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी और देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। चतरा के आचार्य चेतन पाण्डेय ने बताया कि श्रीहरि प्रबोधिनी एकादशी व्रत एक नवंबर दिन शनिवार को ही मनाया जाएगा, क्योंकि इसी दिन उदय कालीन एकादशी तिथि है।

उन्‍होंने बताया कि एकादशी तिथि का प्रारंभ शुक्रवार को रात्रि हो जाएगा। जो शनिवार की देर रात 2.57 तक रहेगा। दो नवंबर रविवार को उदय कालीन द्वादशी तिथि रहेगा। पुरे चार माह शयन के बाद भगवान नारायण देवोत्थान के दिन निद्रा से जागते हैं। उनके जागरण के साथ ही 4 माह से बंद शुभ और मांगलिक कार्य एक बार फिर शुरू हो जाते हैं। भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए शयन में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। आचार्य ने कहा कि इस बार देवोत्थान शनिवार को मनाया जाएगा। देवोत्थान के साथ ही चार माह का चतुर्मास समाप्त हो जाएगा। चतुर्मास समाप्त के साथ ही सभी प्रकार के मांगलिक कार्य एक बार फिर शुरू हो जाएंगे। हालांकि मासान्त दोष होने के कारण इस बार शादी का लग्न 21 दिन बाद से शुरू होंगे। लग्न 21 नवंबर को होगा। लग्न प्रारंभ होते ही शादी की शहनाई गूंजने लगेंगी। विवाह सहित अन्य मांगलिक कार्य भी जोर पकड़ने लगेंगे।

एकादशी के दिन चतुर्मास होगा समाप्त

उन्‍होंने कहा कि देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास समाप्त होता है। देवोत्थान के दिन हिंदू घरों में भगवान नारायण और तुलसी माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। तुलसी चौरा (तुलसी पींडा) के पास ईख से भव्य मंडप बनाए जाते हैं। आंगन में आकर्षक चौका (रंगोली) बनाए जाते हैं और पूरे घर आंगन को सजाया जाता है। इस दिन चावल के आटे और सिंदूर से पूरे घर को जगाने की प्राचीन परंपरा भी रही है। कई जगहों पर इसे देव दिवाली के रूप में मनाया जाता है। आस्था है कि इस दिन घर में तुलसी विवाह का पूजन करने और घर आंगन को जगाने से पूरे 1 वर्ष तक घर परिवार में देवता जगे रहते हैं और उनकी कृपा बरसती रहती है। सुहागिन महिलाएं दिनभर उपवास रहकर संध्या बेला में भगवान नारायण की पूजा अर्चना करते हैं और देवोत्थान एकादशी व्रत की कथा का श्रवण करती हैं। उसके बाद शंख ध्वनि और विभिन्न वाद्ययंत्र की मधुर ध्वनि गुंजायमान कर भगवान् नारायण को जगाती हैं। भगवान नारायण के जगने के साथ ही चातुर्मास का दोष समाप्त होता है और मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं।

वहीं देवोत्थान व्रत को लेकर जिले में विशेष तैयारियां की गई है। सुहागिन महिलाएं शुक्रवार को नहाय-खाय और व्रत का संयत किया। शनिवार को दिनभर उपवास रखकर संध्या बेला में पूजा-अर्चना करेंगी। व्रत को लेकर घर आंगन को साफ स्वच्छ किया गया है। कई महिलाएं शुक्रवार को व्रत को लेकर पूजन सामग्रियों की खरीदारी की। कई घरों में देवोत्थान का व्रत पूरे धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी