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--देवउठनी एकादशी पर परिक्रमा करने व दान-पुण्य का भी महत्व
अयोध्या, 31 अक्टूबर (हि.स.)। देवाेत्थानी एकादशी की पूर्व संध्या पर सुप्रसिद्ध कर्मकांड वेदाचार्य अशोक वैदिक ने कहा कि सनातन हिन्दू धर्म में देवउठनी एकादशी का बड़ा महत्व है। इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह वह शुभ दिन है जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योग-निद्रा से जागते हैं और इसी के साथ सृष्टि का संचालन फिर से शुरू होता है। देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।
मान्यता है कि, इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद जागृत होते हैं। इसी दिन से शुभ कार्यों का आरम्भ पुनः किया जाता है। जैसे- विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ आदि। उन्हाेंने कहा कि इस दिन चातुर्मास का समापन होता है और भगवान विष्णु नींद से जागृत होते हैं। इसलिए देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का विधान है।
मान्यता है कि सच्चे मन से उपासना करने से जीवन के दु:ख और दर्द दूर होते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ और पीले रंग के वस्त्र पहनें। क्योंकि यह रंग भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। फिर भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें और पूजा आरम्भ करें। देव उठनी एकादशी पर कंबल, स्वेटर और चादर का दान कर सकते हैं। मीन राशि के जातक देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए पीले रंग के वस्त्र, केला, केसर, चने की दाल आदि चीजों का दान करें।
देवउठनी एकादशी पर परिक्रमा करने व दान-पुण्य का भी महत्व है। इस दिन बड़ी संख्या में लाेग अयोध्या धाम की पाैराणिक पंचकाेसी परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा पवित्र सरयू नदी में स्नान और दान-पुण्य कर अपना जीवन धन्य बनाते हैं। देवाेत्थानी एकादशी पर किया गया दान कभी व्यर्थ नहीं जाता है। उससे अपार पुण्य की प्राप्ति हाेती है।
हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय