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उदय कुमार सिंह
बिहार में विधानसभा के लिए इस बार दो चरणों में चुनाव होने हैं। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को, जबकि दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। इसके बाद पता चल सकेगा कि बिहार में सत्ता की बागडोर किसके हाथ में जाएगी। इन नतीजों से पहले चलिए जानते हैं कि बिहार में पिछले चुनावों का इतिहास क्या रहा है? बिहार की जनता ने कब, कौन-सी पार्टी को राज्य की ज़िम्मेदारी सौंपी? साल 1951 से शुरू हुए बिहार विधानसभा के चुनावी सफर में साल 2020 तक कुल 17 चुनावों की गिनती पूरी हुई है।कई दिलचस्प मोड़ भी आए जिसमें साल 2005 का विधानसभा चुनाव है जब नतीजों के बाद सरकार का गठन नहीं होने पर कुछ माह में दोबारा चुनाव कराने पड़े।
साल 2020 का विधानसभा चुनावसबसे पहले बात करते हैं साल 2020 के विधानसभा चुनाव की। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने साथ मिल कर लड़ा था। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में इन दोनों दलों के अलावा जीतराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) भी शामिल थी। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने राजग से अलग होकर चुनाव लड़ा था। दूसरी ओर महागठबंध में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वाम दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (सीपीआई-एमएल), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीएम) का गठजोड़ था। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 75 सीटें जीत कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा। भाजपा ने 74 सीटें जीती और वह दूसरे स्थान पर रही। नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जदयू को केवल 43 सीटें मिल पाई। कांग्रेस को 19 सीटों पर सफलता मिली, जबकि एलजेपी एक सीट जीतने में सफल रही। राजग की सरकार बनी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने।
2015 का विधानसभा चुनावइससे पहले अक्टूबर-नवंबर 2015 में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव पांच चरणों में पूरे हुए थे। इन चुनावों में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकपा), इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ चुनावी मैदान में उतरा था। 2015 का चुनाव सभी 243 सीटों पर हुआ था, जिसमें बहुमत के लिए 122 सीटों की ज़रूरत थी। इस चुनाव में लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने 41 और भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजे आने पर राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जदयू को 71 सीटें और भाजपा को 53 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। इन चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, साल 2017 में जदयू महागठबंधन से अलग हो गया और नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई।
2010 विधानसभा चुनावबात 2010 के विधानसभा चुनाव की करें, तो साल 2010 में हुआ विधानसभा चुनाव को छह चरणों में बांटा गया। 243 सीटों पर हुए इन चुनावों में नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इन चुनावों में राजग गठबंधन में जदयू और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और उनके सामने राजद और लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन था। इन चुनावों में जदयू ने 141 में से 115 सीटें और बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीतीं। वहीं, राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 22 सीटें जीत सका, जबकि लोजपा 75 सीटों में से तीन सीटें लेकर आई। कांग्रेस ने पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे सिर्फ़ चार सीटें ही मिली थीं। इस चुनाव में बिहार की बड़ी पार्टी माने जाने वाली राजद का प्रदर्शन बहुत खराब रहा, जो फरवरी 2005 के चुनावों की 75 सीटों के मुक़ाबले सिमटकर 22 सीटों पर आ गई। 2010 में राजग की सरकार बनी और नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया गया।
2005 का विधानसभा चुनाव
साल 2005 में ऐसा पहली बार हुआ, जब एक ही साल के अंदर दो बार बिहार में विधानसभा चुनाव कराने पड़े। साल 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक शक्ति पार्टी, जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया था। तब लालू यादव के करीबी रहे नीतीश कुमार ने उन्हें विधानसभा चुनाव में बड़ी चुनौती दी। फरवरी 2005 में हुए इस चुनाव में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिलीं। वहीं, जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़कर 55 सीटें जीतीं और भाजपा 103 में से 37 सीटें लेकर आई। कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस इस विधानसबा चुनाव में 84 में से 10 सीटें ही जीत पाई। इस चुनाव में 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत ना मिल पाने के कारण कोई भी सरकार नहीं बन पाई और कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। दूसरे विधानसभा चुनाव में जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने 102 में से 55 सीटें हासिल की थीं। वहीं, राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीतीं, लोजपा को 203 में से 10 सीटें मिलीं और कांग्रेस 51 में से नौ (09) सीटें ही जीत पाई। साल 2000 में ही लोजपा का गठन हुआ था। इन चुनावों में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
साल 2000 का विधानसभा चुनावयदि बात साल 2000 के विधानसभा चुनाव की करें, तो इस चुनाव से पहले बिहार में काफ़ी उथल-पुथल मचा था। लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपनी जगह बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था और 1997 में लगभग तीन हफ़्तों का राष्ट्रपति शासन भी लगा था। इसके बाद मार्च 2000 में विधानसभा चुनाव हुए। ये वो समय था, जब बिहार से अलग करके झारखंड राज्य नहीं बनाया गया था। साल 2000 के नवंबर में झारखंड का गठन हुआ था। तब बिहार में 324 सीटें हुआ करती थीं और बहुमत के लिए 162 सीटों की ज़रूरत होती थी। इन चुनावों में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 124 सीटें मिली थीं। वहीं, भाजपा को 168 में से 67 सीटें हासिल हुईं। इसके अलावा समता पार्टी को 120 में से 34 और कांग्रेस को 324 में से 23 सीटें हासिल हुई थीं। 2000 के चुनाव के बाद राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी थीं।
1995 का विधानसभा चुनावबिहार विधानसभा का यह वो चुनाव था, जब ना तो बिहार में राजद थी और ना जदयू। हालांकि, 1994 में नीतीश कुमार ज़रूर समता पार्टी बनाकर लालू यादव से अलग हो गए थे। तब लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल ने 264 सीटों पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और वो 167 सीटें जीतने में सफल हुई। भाजपा ने 315 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन सिर्फ़ 41 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 29 सीटें जीतीं। उस समय भी बिहार में 324 सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया था। संयुक्त बिहार में हुए इस आखिरी चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने 63 में से 10 सीटें जीतीं और समता पार्टी को 310 में से सात (07) सीटें मिली थीं। इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के साथ लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन साल 1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण लालू यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। उनके इस फैसले की काफ़ी आलोचना हुई और पार्टी में फूट भी पड़ गई। 1997 में ही राष्ट्रीय जनता दल का भी गठन हुआ।
1990 विधानसभा चुनाव1990 के विधानसभा चुनाव में कई दलों के विलय से बने जनता दल ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। जनता दल 276 सीटों पर चुनाव लड़कर 122 सीटों पर जीत हासिल की और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 162 सीटों का था। वहीं, कांग्रेस को 323 सीटों में से 71 सीटें और भाजपा को 237 सीटों में से 39 सीटों हासिल हुईं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 109 सीटों पर चुनाव लड़कर 23 सीटें जीतीं। जेएमएम 82 में से 19 सीटें जीत पाई थी। तब बिहार में लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी। इस चुनाव के बाद ही बिहार में एक ही कार्यकाल में कई मुख्यमंत्री बनने का दौर ख़त्म हुआ।
1985 विधानसभा चुनावकांग्रेस 1985 के बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस को 323 में से 196 सीटें मिली थीं, जो बहुमत से कहीं ज़्यादा थीं। इसी चुनाव के बाद बिहार में एक ही कार्यकाल में चार मुख्यमंत्री बने थे। इस चुनाव में लोकदल को 261 में से 46 और भाजपा को 234 में से 16 सीटें मिली। उस समय जनता पार्टी भी चुनावी मैदान में थी, जो बाद में जनता दल में शामिल हो गई। जनता पार्टी को 229 में से 13 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में 1985 से 1988 तक बिंदेश्वरी दुबे बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद लगभग एक साल भागवत झा आज़ाद, फिर कुछ महीनों के लिए सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने थे।
1980 का विधानसभा चुनावबिहार में साल 1980 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस (इंदिरा) को 311 में से 169 सीटें मिली थीं और कांग्रेस (यू) को 185 में से 14 सीटें मिली थीं। तब भाजपा ने 246 में से 21 सीटें जीती थीं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 135 में से 23 सीटें हासिल की थीं। जनता पार्टी (एससी) को तब 254 में से 42 सीटें मिली थीं। इस कार्यकाल में भी लगभग चार महीने राष्ट्रपति शासन लागू रहा। उसके बाद करीब तीन साल के लिए जगन्नाथ मिश्र और एक साल के लिए चंद्रशेखर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे।
1977 विधानसभा चुनावसाल 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने राज्य की 311 सीटों पर चुनाव लड़ा और 214 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस को इस चुनाव में 286 में से 57 सीटें मिली। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 73 में से 21 सीटें हासिल की। बिहार में जनता पार्टी की सरकार बनी। पहले लगभग दो महीने राष्ट्रपति शासन लागू रहा। उसके बाद लगभग एक-एक साल के लिए 1979 तक कर्पूरी ठाकुर और फिर 1980 तक रामसुंदर दास बिहार के मुख्यमंत्री बने।
1972 विधानसभा चुनावयदि बात 1972 के विधानसभा चुनाव की करें, तो इसमें कांग्रेस की जीत हुई और उसे 259 में से 167 सीटें मिली। कांग्रेस (ओ) 272 में से 30 सीटें ही मिल पाई। इसके अलावा भारतीय जनसंघ को 270 में से 25 सीटें हासिल हुई थीं। तब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 256 सीटों पर चुनाव लड़ कर 33 सीटें मिलीं। इस कार्यकाल में भी लगभग दो महीने राष्ट्रपति शासन लगा रहा और उसके बाद केदार पांडे, अब्दुल गफ़ूर और जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
1969 का विधानसभा चुनावसाल 1969 के चुनाव में भी इंडियन नेशनल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। उस समय बिहार में 318 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव हुआ था और जीत के लिए 160 सीटों की ज़रूरत थी। कांग्रेस को 318 में से 118 सीटें मिलीं और भारतीय जनसंघ को 303 में से 34 सीटें हासिल हुईं। इस चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 191 में से 52 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 162 में से 25 सीटें मिलीं। इस कार्यकाल में भी राष्ट्रपति शासन के बाद दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर और भोला पासवान शास्त्री कुछ-कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने।
1967 विधानसभा चुनाव1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 318 में से 128, एसएसपी को 199 में से 68 और जन क्रांति दल को 60 में से 13 सीटें मिली थीं। इन तीनों राजनीतिक दलों से थोड़े-थोड़े समय के लिए कुल चार मुख्यमंत्री रहे थे। इन चुनावों में भारतीय जनसंघ ने 271 में से 26 सीटें हासिल की थीं।
1951, 1957 और 1962 के चुनावदेश की आज़ादी के बाद पहली बार हुए साल 1951 के चुनाव में कई पार्टियों ने भाग लिया लेकिन कांग्रेस ही उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 322 में से 239 सीटें मिली। श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने। साल 1957 के चुनाव में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसे 312 में से 210 सीटें मिली थीं। साल 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस को 318 में से 185 सीटों के साथ बहुमत हासिल हुआ था। उसके बाद स्वतंत्र पार्टी को सबसे अधिक 259 में से 50 सीटें मिली थीं।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / उदय कुमार सिंह