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-चार दशकों का है यह सफर
पटना, 31 अक्टूबर (हि.स.)। बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आज पहले नंबर की पार्टी है। बिहार विधानसभा में यह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। शून्य से आरंभ होकर सबको पीछे छोड़ने तक का यह सफर चार दशकों का है। आपातकाल की तपिश झेलकर निकली भाजपा ने बिहार की राजनीति में अपनी पहली दस्तक 1980 के चुनाव से दी थी।
बिहार में पिछले 45 साल के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार है कि भाजपा बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित है। अब उसके 80 विधायक हैं। सुनने में तो यह उपलब्धि बहुत अच्छी लगती है, लेकिन हकीकत में वह मुश्किलों के पहाड़ पर खड़ी है।
दरअसल, जनसंघ से भाजपा में बदल चुकी पार्टी ने तब सिर्फ छह महीने के भीतर पहली बार मैदान में उतरकर 8.41 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। यह वह दौर था, जब देश आपातकाल से उबर रहा था और राजनीति में नई ऊर्जा का संचार हो रहा था। इसी उथल-पुथल में भाजपा ने बिहार में 18, 91,325 मत और 21 सीटें जीतकर चौथे स्थान से शुरुआत की, लेकिन यहीं से तय हो गया कि अब राजनीति में यह पार्टी स्थायी होने आई है।
1985 से 1990 : राम मंदिर आंदोलन ने बदला पार्टी का मिजाज
बिहार में हुए 1985 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 234 सीटों पर दांव लगाया, 7.54 प्रतिशत वोट पाए और 16 सीटें जीतीं। तब तक राम मंदिर आंदोलन अपनी जमीन पकड़ने लगा था। 1990 में उसी आंदोलन की लहर ने भाजपा को नई उड़ान दी। 237 सीटों पर चुनाव लड़कर 39 सीटों पर विजय मिली। मत प्रतिशत बढ़कर 11.61 प्रतिशत पहुंच गया। यह पहला मौका था जब भाजपा ने 'राम भरोसे राजनीति' की नई पहचान बनाई और जनसंघ की छवि से बाहर निकलकर जनआंदोलन की पार्टी बन गई।
1995 में यशवंत सिन्हा बने चेहरा, भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी
बात 1995 की करें, तो बिहार में भाजपा ने यशवंत सिन्हा के नेतृत्व में 315 सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी ने 41 सीटें जीतकर अपनी अब तक की सबसे बड़ी छलांग लगाई। उसे 44,80,363 मत (12.96 प्रतिशत) मिले और वह बिहार की मुख्य विपक्षी ताकत बनकर उभरी। यही दौर था जब भाजपा के संगठन और कैडर ने गांव-गांव में अपनी जड़ें जमाना शुरू किया।
2000 में सुशील मोदी के नेतृत्व में नई पहचान
साल 2000 के चुनाव में सुशील कुमार मोदी भाजपा का चेहरा थे। पार्टी ने 67 सीटें जीतकर खुद को बिहार की सत्ता समीकरणों का अहम हिस्सा बना लिया। उस चुानव में भाजपा को 14.64 प्रतिशत मत मिले और यह लगातार दूसरे चुनाव में नंबर-2 पार्टी बनी रही। इसके बाद 2005 में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन ने भाजपा को नई रणनीतिक पहचान दी। 103 सीटों पर लड़ी और 37 सीटें जीतीं। फरवरी 2010 के चुनाव में भाजपा ने 102 सीटों पर 55 सीटें जीतकर 15.65 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया।
2010 में बगावत के बीच विजय, संगठन की शक्ति दिखी
2010 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए भीतर से भी जंग था। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने अपने बेटे को टिकट न मिलने पर प्रचार से दूरी बना ली थी। फिर भी भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 सीटें जीत लीं यानी 36 सीटों की जबरदस्त बढ़त। उसे 47,90,436 मत (16.49 प्रतिशत) मिले और तब यह साबित हुआ कि भाजपा अब किसी एक चेहरे पर नहीं, बल्कि अपने संगठन के दम पर खड़ी है।
2015 में मोदी लहर के बावजूद नीतीश अलग, भाजपा फिर भी वोट शेयर में नंबर-1
2015 तक देश में मोदी युग शुरू हो चुका था। बावजूद इसके नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर नया गठबंधन बना लिया,पर भाजपा ने अकेले मैदान में उतरने का साहस दिखाया। परिणामों में भाजपा ने 157 सीटों पर चुनाव लड़कर 53 सीटें जीतीं। सीटें घटीं, लेकिन 24.4 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भाजपा पहली बार वोट प्रतिशत में नंबर-1 पार्टी बनी। राजग के सहयोगियों लोजपा, रालोसपा और हम को कुल 5 सीटें मिलीं।
2020 में नीतीश की घरवापसी, भाजपा का स्ट्राइक रेट 65 प्रतिशत
2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ लौटे। सर्वे कह रहे थे कि राजग सत्ता से बाहर होगा, लेकिन भाजपा ने समीकरण पलट दिया। पार्टी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और 74 सीटें जीतीं यानी 65 प्रतिशत स्ट्राइक रेट। भाजपा को 82,02,067 मत (19.46 प्रतिशत) मिले और यह पार्टी बिहार की सियासत में निर्णायक खिलाड़ी बनकर उभरी।
'हम में नहीं, हम सबमें है भाजपा'
भाजपा के प्रदेश सचिव संतोष रंजन राय कहते हैं कि आज भाजपा किसी एक बिरादरी की पार्टी नहीं, बल्कि सर्वसमाज की पार्टी है। हर वर्ग, हर क्षेत्र, हर विचारधारा के लोग भाजपा की सोच से जुड़ रहे हैं। हमारी पार्टी ‘मैं नहीं, हम’ की भावना पर चलती है। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजेश