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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
दुनिया के देशों की पांच बड़ी चिंताओं में आज सबसे बड़ी चिंता अपराध और हिंसा होती जा रही है। बेरोजगारी भ्रष्टाचार या सामाजिक या लैंगिक असमानता इसके आसपास भी नहीं दिखाई देती है। दरअसल, दुनिया के देशों के लोग आज सबसे अधिक अपराध और हिंसा से प्रताड़ित हैं। कहीं भी और किसी भी देश के समाचार पत्र या मीडिया चैनलों को देखेंगे तो अपराध और हिंसा की खबरों की भरमार मिल जाएगी। दुनिया के देशों के लोगों से संवाद कायम कर सर्वे के माध्यम से रुझानों की जानकारी देने वाली संस्था इप्सांस की हालिया रिपोर्ट तो यही कहानी कहती है। इप्सांस की रिपोर्ट की मानें तो दुनिया की पांच बड़ी चिंताओं में 32 प्रतिशत चिंता अपराध और हिंसा की है तो 30 प्रतिशत चिंता सरकारों द्वारा लोगों पर लगाये जाने वाले कर प्रावधानों को लेकर है। सामाजिक असमानता की चिंता 29 प्रतिशत है तो राजनीतिक भ्रष्टाचार और बढ़ती बेरोजगारी चिंता का कारण केवल 28 प्रतिशत बन पा रही है। यह तो उदाहरण मात्र है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अपराध और हिंसा आज वैश्विक समस्या बनती जा रही है। दुनिया के देशों में कहीं ना कहीं से प्रतिदिन अपराध और हिंसा की खबरें प्रमुखता से सामने आ रही है। जहां तक हिंसा का प्रश्न है, उसके विषय में तो यह कहना ही पर्याप्त होगा कि जैसे कहावत है कि फलां के तो नाक पर ही गुस्सा बैठा रहता है, लगभग यह स्थिति आज के युवाओं में ही नहीं अपितु अधिकतर नागरिकों में होती जा रही है। घरेलू हिंसा से लेकर संस्थागत हिंसा यानी वर्ग विशेष द्वारा सामूहिक योजनाबद्ध हिंसा आम हो गई है। दुनिया के देशों में राजनीतिक अस्थिरता के चलते असंतोष के हालात, अन्य देशों में अवैध प्रवेश, अवैध निवास, शरणार्थिंयों की बड़ती भीड़ और हथियारों की सहज उपलब्धता के कारण हिंसा आम होती जा रही है। कई देशों में तो शरणार्थियों या विदेशी प्रवासियों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से हिंसा के हालात पैदा किए जा रहे हैं तो देशों के बीच युद्ध के हालातों के कारण भी हिंसा आम होती जा रही है।
हिंसा का एक बड़ा कारण नई पीढ़ी में बढ़ता असंतोष है। जीवन शैली और रहन-सहन में बदलाव के कारण संवेदनशीलता और आपसी संबंध कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के कारण कुंठा, संत्रास और मानसिक तनाव बढ़ रहा है और यह गुस्से के रुप में सामने आता है। यही कारण है कि गाड़ी टच होने भर या साइड नहीं देने के मामूली वाद-विवाद में बात एक-दूसरे की जान लेने तक पहुंच जाती है।
इसी तरह कई देशों में शरणार्थी या अवैध निवास या अन्य कारणों से संगठित रूप से माहौल खराब करने की प्रवृत्ति आम हो गयी है। फ्रांस में आए दिन होने वाली घटनाएं इसका उदाहरण हैंं। पिछले दिनों इस तरह की घटनाएं अमेरिका सहित दुनिया के बहुत से देशों में देखी गई है। राजनीतिक अस्थिरता की घटनाएं बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में देखी जा सकती है तो पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जो कुछ घटित हो रहा है वह सामने हैं।
दुनिया के देशों में अपराध और अपराध के तरीकों में भी काफी बदलाव आया है। भारत सहित दुनिया के अधिकांश देश साइबर ठगी के बढ़ते ग्राफ से दो-चार हो रहे हैं। ठग साइबर ठगी के नित नए रास्ते निकालते हैं। कभी कॉल करके तो कभी क्लोन बनाकर सीधे ही राशि हड़प जाते हैं। इसी तरह अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट का नया रास्ता निकाला है। डिजिटल अरेस्ट के शिकार होने वाले साधारण आदमी ना होकर उच्च शिक्षित और संपन्न नागरिक हो रहे हैं। हालात यह हो रहे हैं कि अपराधी पढ़े-लिखे लोगों को ही ना जाने क्या-क्या कल्पित भय दिखाकर बड़ी राशि ठगने में सफल हो जाते हैं। इसी तरह तकनीक का सहारा लेकर सेक्सटोर्सन आम होता जा रहा है। पैसों वाले लोगों को इस तरह के ठग महिलाओं का गिरोह बनाकर आसानी से शिकार बना रहे हैं।
दुनिया के लगभग सभी देशों में अपराधियों द्वारा ठगी के लिए तकनीक का इस्तेमाल आम होता जा रहा है। लाख प्रयास के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। दरअसल, अपराध के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं। अपराधियों की आरएण्डडी अधिक कारगर होती दिख रही है क्योंकि समग्र प्रयासों के बावजूद अपराध की कोई ना कोई नई तकनीक ले आते हैं। जब तक एक तरीके का तोड़ ढूंढा जाता है तब तक अपराध का नया तरीका सामने आ जाता है। ऐसे में दुनिया के देशों को हिंसा और अपराध पर अंकुश लगाने के लिए अपराधियों के समानांतर आरएण्डडी सेल विकसित करनी होगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश