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बाराबंकी, 29 अक्टूबर (हि.स.)। जब-जब धरा पर पापाचार व अत्याचार बढता है और आसुरी शक्तियाँ भक्तों को नुकसान पंहुचाना चाहती हैं तब तब भगवान भक्त की रक्षा करते हैं। उक्त प्रवचन मथुरा वृंदावन से आए बाल शुक सत्यम जी महराज ने कस्बे के मोहल्ला धमेडी चार निवासी आशीष उपाध्याय के निवास पर चल रही श्रीमद भागवतकथा में दूसरे दिन कही।
उन्होंने परीक्षित के जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि जब अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त होते हैं तो उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ में पांडव वंश का अंतिम वारिस पल रहा था। अश्वत्थामा का ब्रह्मास्त्र उसे नष्ट करने के लिए छोड़ा जाता है किन्तु भगवान कृष्ण गर्भ में जाकर शिशु को बचाते हैं। उसी दिव्य रक्षा के कारण बालक का नाम रखा जाता है परीक्षित। उसके जन्म के समय शरीर के चारों ओर तेज आभा थी और जन्म लेते ही अपने हाथों को ऐसे हिलाने लगा जैसे भगवान की कृपा उस पर हो रही हो। कहा जाता है कि बालक जन्म से ही भगवान कृष्ण के रूप का अनुसंधान करता था क्योंकि उसने गर्भ में ही कृष्ण के दिव्य स्वरूप का दर्शन किया था। उन्होंने आगे कहा कि परीक्षित बड़े होकर पांडवों के उत्तराधिकारी और हस्तिनापुर के राजा बने। उनके ही पौत्र जनमेजय ने आगे चलकर महाभारत कथा सुनवाई और उन्हीं की शंका से श्रीमद्भागवत महापुराण का प्राकटीकरण हुआ। कलियुग में भागवत संकीर्तन से ही सभी जीवों का उद्धार संभव है। इस अवसर पर मीनाक्षी देवी, संत कुमार, निशा, उषा, डा अखिलेश, इंद्र मणि श्याम,अभिषेक,ऋषभ,गौरव,महेश ,राज बहादुर आदि मौजूद रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / पंकज कुमार चतुवेर्दी