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--भारत ईरान सम्बंधों को दर्शाता शैक्षिक भ्रमण : पर्यटक
प्रयागराज, 29 अक्टूबर (हि.स.)। कल्चर प्रमोशन हेतु भारत आयी ईरानी पर्यटकों की सोलह सदस्यीय टीम बेलाल अस्दक के नेतृत्व में जनपद प्रयागराज में अवस्थान के दौरान राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय में अपनी सांस्कृतिक विरासत को नजदीक से अवलोकन कर प्रसन्नचित्त हुए।
बुधवार काे पुस्तकालय में पाण्डुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर के निर्देशन में प्राविधिक सहायक फारसी डॉ शाकिरा तलत द्वारा फारसी के लगभग एक दर्जन से अधिक पाण्डुलिपियों का अवलोकन कराया गया। प्राविधिक सहायक संस्कृत हरिश्चन्द्र दुबे ने उन्हे संकृत पाण्डुलिपियों का अवलोकन कराया तथा उनका महत्व भी बताया। पाण्डुलिपियों का अवलोकन करने के बाद टीम ने संयुक्त रूप से अपना वक्तव्य दिया।
उन्होंने कहा कि “आज हमें प्रयागराज स्थित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय का भ्रमण करने का बहुमूल्य अवसर प्राप्त हुआ। यह यात्रा हमारी यात्रा के सबसे यादगार शैक्षणिक अनुभवों में से एक साबित हुई। क्योंकि हमें मुगल काल की फ़ारसी पांडुलिपियों का एक अद्भुत संग्रह देखने को मिला दुर्भाग्य से, ये कृतियाँ ईरानी विद्वानों के लिए अभी भी काफी हद तक अपरिचित हैं। इस बहुमूल्य संग्रह में, अवेस्ता और अन्य प्राचीन ईरानी-भारतीय ग्रंथों के मुद्रित और हस्तलिखित संस्करण मुझे विशेष रूप से आकर्षक लगे, जो ईरान और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच गहन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अंतर्संबंधों को दर्शाते हैं।
हम डॉ.बिलाल असदक, डॉ.शाकिरा तलत और गुलाम सरवर के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं, जिनके उदार सहयोग और मार्गदर्शन से यह शैक्षिक भ्रमण संभव हो पाई। निःसंदेह, इस खजाने की पहचान और ईरानी तथा अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक समुदाय के समक्ष विद्वत्तापूर्ण परिचय भारत में मुगल काल और पूरे उपमहाद्वीप में संरक्षित फ़ारसी साहित्यिक एवं बौद्धिक विरासत पर शोध के नए रास्ते खोल सकता है।
“इमाम खुमैनी अंतरराष्ट्रीय क़ज़्विन विश्वविद्यालय में फ़ारसी भाषा और साहित्य की प्रोफ़ेसर शिरीन सादिग ने बताया कि इस सांस्कृतिक यात्रा में राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय की पांडुलिपियों के दर्शन से हमें यह ज्ञात हुआ कि भारत सरकार ऐसी प्राचीन कलाकृतियों के संरक्षण के प्रति कितनी सजग है, इससे हमें प्रोत्साहन और खुशी मिली। इस सांस्कृतिक यात्रा ने हमें पहले से कहीं अधिक यह सिद्ध कर दिया है कि ईरान और भारत के बीच का संबंध दोनों देशों के गहरे इतिहास में निहित है, जो सांस्कृतिक समानताओं पर आधारित है। यह अनमोल विरासत वर्तमान युग में दोनों देशों के संबंधों को और मज़बूत बनाने के लिए एक अपूरणीय धरोहर है।
उन्होंने आशा जताई कि इस तरह की सांस्कृतिक विरासत के कार्यक्रमों के विस्तार से ईरान से और अधिक शोधार्थी शैक्षिक भ्रमण पर आएंगे तथा इन साझा धरोहरों पर अनुसंधान कर इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने का कार्य करेंगे। और दोनों देश का सांस्कृतिक सेतु पहले से भी अधिक मज़बूत होगा। हमारी मनोकामना है कि इस साझा विरासत के आलोक में यह दीर्घकालिक सम्बंध दिन-प्रतिदिन और मजबूत होता जाए, तथा सभी क्षेत्रों में अधिक संवाद और सहयोग का मार्ग खुले।
16 सदस्यीय निम्न पर्यटकों में मासूम तगा दुसी, मेंहदी फाजली, मेंहदी बाबई, श्रीमती शिरीन सड़ेगी, नाज़नीन हैदरी, एम.आर. मोहम्मद मोहम्मद तगवा, जेईना, मुस्तफा अब्बासी, फॉरजाने, अब्बास अस्नासरी, जैनब, मरियम आदि को तारीख ए आलमगीर, गुलिस्तान ए सादी ,उर्दू भाषा के भागवत और रामायण, महाभारत, कुरान शरीफ़, आइना ए अकबरी, वाल्मीकि रामायण संस्कृत, 4 फीट लंबा तोगरा, खतूत-ए-आलम गिरी, मुगल बादशाहों के फरमान, रामायण मसीही, तारीख ए हिंद आदि ग्रंथों का अवलोकन कराया गया। पर्यटकों द्वारा उत्सुकतावश पांडुलिपियों का चित्र भी कमरे में कैद किया गया। पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने आए अतिथियों के प्रति आभार प्रकट एवं स्वागत किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र