छठ महापर्व के सूप-दउरा से होते हैं सबके मनोरथ पूरे
सूप दउरा बनाते महली जाती के लोग


छठ को लेकर सूप दउरा बनाते महली जाती की महिलाएं


धनबाद, 23 अक्टूबर (हि.स.)। लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत इसी सप्ताह शनिवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है। छठ को लेकर बाजारें भी सजने लगी हैं। वहीं अर्ध्य के लिए सूप और दउरा का छठ में विशेष महत्व है। वहीं बांस से बनने वाले सूप और दउरा के कारीगर छठ को लेकर लगातार सूप और दउरा बनाने में लगे हैं। छठ महापर्व के सूप और दउरा से सभी के मनोरथ पूरे होते हैं।

बलियापुर स्थित मोहलीडीह बस्ती में रहने वाले मोहली समाज के लोग वर्षों से बांस से बनने वाले सूप और दउरा का निर्माण करते आ रहे हैं। बांस से बने सूप और दउरा का निर्माण कर रही निशा देवी ने बताया कि वे साल भर सूप और दउरा बनाने का काम करती हैं, लेकिन छठ महापर्व पर सूप और दउरा की काफी अच्छी मांग रहती है। बाजार से खुद दुकानदार उनके यहां आकर सूप और दउरा ले जाते हैं। लेकिन सामान्य दिनों में बिक्री काफी कम रहती है। उन्होंने बताया कि लेकिन मेहनत के अनुसार मेहनताना उन्हें उतना नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि बांस खरीदकर लाते हैं, उसे छिलते हैं, फिर सुखाते हैं। उसके बाद दउरा-सूप बनाने का काम करते हैं।

वहीं बुजुर्ग महिला कारीगर शांति देवी ने बताया कि बांस को काटकर ई-रिक्‍शा से लाते हैं। दो दिनों तक बांस में ही मेहनत करना पड़ता है, जबकि दुकानदार मात्र 30 से 40 रुपए ही एक सूप या दउरा का दाम देते हैं जो उनकी मेहनत के अनुरूप नहीं है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी वे यही काम करते आ रही हैं। जब वह छोटी थी उस वक्त से ही सूप और दउरा बना रहे हैं।

सुनील मोहली ने बताया कि सूप और दउरा का बाजार में सही से कीमत नहीं मिल पाती है। सूप का 25 रुपया और दउरा का 100 रु मिलता है। एक पीस बांस की ही कीमत 80 से 100 रुपये है। एक बांस से 4 पीस सूप तैयार होता है, जबकि दउरा 2 पीस ही बन पाता है। इसी काम से उनका घर का भरण पोषण चलता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / राहुल कुमार झा