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बलरामपुर, 23 अक्टूबर (हि.स.)। रामानुजगंज का रिंग रोड इन दिनों ‘रोशनी’ नहीं बल्कि ‘अंधेरे का स्मारक’ बन चुका है। जहां कभी स्ट्रीट लाइटें नगर की शोभा बढ़ाती थीं, वहीं अब रात ढलते ही यह सड़क ऐसी लगती है मानो किसी भूतिया फिल्म का सेट हो बस कैमरा और निर्देशक की कमी है।
रात होते ही यह सड़क रिंग रोड नहीं बल्कि डर रोड बन जाती है। महीनों से बुझी लाइटों के नीचे अब सन्नाटा और साया राज करता है। सड़क के दोनों किनारों पर बैठे मवेशी अचानक ऐसे सामने आ जाते हैं जैसे ट्रैफिक पुलिस की भूमिका निभा रहे हों रुको ज़रा, पहले हमें जाने दो। नतीजा आए दिन वाहन चालकों को चोटें और हादसे झेलने पड़ रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि, शाम होते ही यहां गुजरना किसी परीक्षा से कम नहीं। लोग अब मोबाइल की टॉर्च और वाहन की हेडलाइट के भरोसे जीवन का रोड टेस्ट दे रहे हैं। स्कूटी सवार महिलाएं, स्कूल-कॉलेज के छात्र और पैदल लौटने वाले मजदूर सभी के लिए यह सड़क अब डर की गलियारा बन चुकी है।
जानकारी अनुसार, लाइट का काम तीन विभागों के द्वारा करवाया गया था। पीडब्ल्यूडी, एरिगेशन और इंडम। यानी तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा’। तीनों की फाइलें चलती रहीं, लेकिन बल्ब नहीं जल पाए। जनता पूछ रही है कि, जब जिम्मेदारी इतनी साझा है, तो जवाबदेही इतनी गुमनाम क्यों है?
नगरपालिका सीएमओ सुधीर कुमार का कहना है कि, लाइट लगाने का काम इन्हीं तीन विभागों द्वारा करवाया गया था। अब करीब 70 लाख रुपये का एस्टीमेट तैयार कर कलेक्टर के पास भेजा गया है। उनका कहना है कि जैसे ही फंड की व्यवस्था होगी, लाइटें फिर से जल उठेंगी।
लेकिन सवाल यह है कि क्या रोशनी लौटने के लिए जनता को अगली दीपावली तक इंतज़ार करना होगा? रिंग रोड पर अंधेरा अब सिर्फ बिजली का नहीं, बल्कि सिस्टम का भी है। जहां फाइलें चमकती हैं, पर सड़कें नहीं। संक्षेप में कहा जाए तो, रामानुजगंज का रिंग रोड आज व्यवस्था की ब्लैक आउट रिपोर्ट बन गया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय