मैं नालंदा हूं ...
नालंदा विवि


नालंदा विवि स्तूप


रामानुज शर्मा

नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (हि.स.)। मैं नालंदा हूं। मेरा इतिहास न केवल गौरवशाली है अपितु मेरी विरासत और संस्कृति बहुत ही समृद्ध, सशक्त और अनूठी है। इसके कण कण में भारतीयता का गान और मान है। मुझे फिर से पुनर्जीवित होने जा रही अपनी धरोहर का गौरव है। इस पर मुझे न केवल बहुत अभिमान है वरन पूरा भराेसा और विश्वास है कि मैं अपने मूल गौरवशाली परंपरा और सम्मान को फिर पा सकूंगा, जाे पहले की ही तरह अत्यधिक वैभवशाली, आकर्षक और सुदृढ़ हाेगी।

मेरे आसमान सरीखे सम्मान-स्वाभिमान को धारण करने वाले दुनिया के सबसे बृहद शैक्षिक केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास प्राचीन भारत से शुरू हुआ। इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त ने की थी। यह एक महान बौद्ध महाविहार था, जो 12वीं शताब्दी तक लगभग 800 वर्षों तक शिक्षा का एक बृहद केंद्र रहा, जिसमें हजारों छात्र और विद्वान होते थे। तब यह शिक्षा का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र था।

मैं (नालंदा) एक प्रशंसित महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (अब बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था। यह बिहार शरीफ शहर के पास पटना से करीब 90 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है। शिक्षा का यह बौद्धिक केंद्र दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है। यह केवल बौद्ध धर्म ही नहीं, बल्कि सभी प्रकार के ज्ञान का केंद्र था। यहाँ गणित, खगोल विज्ञान और अन्य विषयों पर शिक्षा दी जाती थी। इसका वैभव हर्षवर्द्धन और पाल वंश के शासनकाल में अपने चरम पर था। यहाँ पर 2,000 शिक्षक और 10,000 छात्र थे।

ऐसा बताया जाता है कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 415 ईस्वी में तत्कालीन सम्राट कुमार गुप्त ने की थी। उत्तर भारत में गुप्त शासनकाल की शुरुआत तीसरी शताब्दी में सम्राट गुप्त के द्वारा की गई थी। कुमार गुप्त सातवें शासक थे, जिनका कार्यकाल 415-455 तक माना जाता है। यह भी उल्लिखित है कि 401 ईस्वी में प्रथम चीनी यात्री फाहियान यहां पर आया था। लेकिन उसके यात्रा वृत्तांत में नालंदा विश्वविद्यालय का कोई जिक्र नहीं है। उसने लिखा है कि नालो (नालंदा) सारिपुत्र का जन्म स्थान है, यहां उसके परिनिर्वाण स्थल पर एक स्तूप है।

दूसरा चीनी यात्री ह्वेनसांग 645 ईस्वी के आसपास तत्कालीन कन्नौज शासक हर्षवर्धन के समय आया था, तब यह अपने उत्कर्ष पर था। 670-685 ईस्वी के बीच इत्सिंग नामक चीनी यात्री आया था और उसने पूरे भारत के बौद्ध विहारों का भ्रमण किया था। उसने बताया है कि नालंदा विश्वविद्यालय के चारों तरफ दस से अधिक तालाब थे, जिसमें यहाँ के भिक्षु सुबह में भोजन से पूर्व नियमित स्नान करने जाते थे। उसके लिए घंटी बजती थी। सभी तालाब एक हेक्टेयर के आसपास थे।

महान शिक्षा केंद्र के वैभव का ऐसे हुआ पतन-

मेरे इस वैभवशाली शिक्षा केंद्र का पतन दुनिया के लाेगाें काे झकझाेरने, संस्कृति, वैभव और पुरातन परंपरा काे बर्बाद करने वालाें के प्रति कलंकित इतिहास के रूप में दर्ज है। इस महान शिक्षा के केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय काे 12वीं शताब्दी के अंत में बख्तियार खिलजी ने हमला कर उसे जलाकर नष्ट कर दिया था और यह खंडहर में बदल गया।

भारतीय पुरातत्वविद और पुरालेखशास्त्री हीरानंद शास्त्री के नालंदा विश्वविद्यालय में कराई गई खुदाई में मिले साक्ष्यों से यह पता चलता है कि बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला कर उसे बर्बाद किया था।

पर्शियन इतिहासकार मिंहाज सिराज की पुस्तक तबकात ए नासिरी पुस्तक के अनुसार बख़्तियार ख़िलजी सिर्फ धनवान राजा और उनकी राजधानी को लूटता था। वह एक लुटेरा था। उसने उदन्तपुरी को लूटा था, जो तत्कालीन पाल शासकों की राजधानी थी, जिसका वर्णन निम्नलिखित रूप में दिया गया है। यह बिहार किला यानी उदन्तपुरी जाे आज का बिहार शरीफ है। इस रूप में है। मिन्हास की पुस्तक तबकात ए नासरी का अनुवाद मेजर एचजी राॅवर्टी ने भी किया है। इसमें खिलजी वंश के मुहम्मद-ए-बख्त-यार (बख्तियार खिलजी) के बारे में उल्लेख है, जिसमें वह अपने साहस के बल पर उस स्थान बिहार किला यानी उदन्तपुरी जाे आज का बिहार शरीफ के प्रवेशद्वार के पिछले भाग में छलांग लगा दी थी। उसने किले पर कब्जा कर भारी लूटपाट की थी।

प्रधानमंत्री माेदी ने किया नालंदा विवि का उद्घाटन-

मेरा (नालंदा विश्वविद्यालय) पुनरुद्धार 800 से अधिक वर्षों के बाद वर्ष 2014 में फिर से हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए परिसर का उद्घाटन किया है, जो इसे फिर से सभ्यतागत संवाद और ज्ञान का केंद्र बनाने का प्रतीक है। मैं प्राकृतिक आकर्षण काे समेटे राजगीर की पहाड़ियों के किनारे अब मैं पुनर्जीवित हाे चुका हूं। मेरा यह आह्वान और ध्येय वाक्य है, सीखना ही यहाँ होना है। इस बौद्धिक परिदृश्य में होने का अनुभव, प्रकृति और मनुष्य के बीच जीवन सीखने के सह-अस्तित्व काे सशक्त बनाता है।

मेरा यह क्षेत्र भगवान बुद्ध, भगवान महावीर जैसे आध्यात्मिक महापुरुषों के प्रदत्त सकारात्मकता से ओतप्रोत है, जिन्होंने इस क्षेत्र में ध्यान और चिंतन किया था। नागार्जुन, आर्यभट्ट, धर्मकीर्ति जैसे महान आचार्यों की विकसित विद्वत्तापूर्ण परंपराएं इस प्राचीन नालंदा काे समृद्ध बनाती थीं। उनके मेरे यहां दिए गए प्रवचन आज भी प्रासंगिक और सारगर्भित हैं। प्राचीन मगध की यह बौद्धिक उथल-पुथल शायद ही मानवता काे कभी पता चले। इसके संबंध में विस्तृत विवरण चीनी विद्वानों से प्राप्त हुए हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध विद्वान ह्वेन त्सांग हैं, जो सैकड़ों ग्रंथ अपने साथ ले गया था, जिनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया।

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने रखा नालंदा के पुनरुद्धार का प्रस्ताव-

28 मार्च 2006 में बिहार राज्य विधानसभा के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन नालंदा यानी मेरे पुनरुद्धार का प्रस्ताव रखा। प्राचीन नालंदा की पुनर्स्थापना की मांग को लेकर सहमत विचार एक साथ आए। सिंगापुर सरकार, फिलीपींस में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) के सोलह सदस्य राज्यों के नेताओं और चौथे ईए शिखर सम्मेलन थाईलैंड में ऐसे ही प्रस्ताव आए। देश की संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 पारित किया और सितंबर 2014 में मेरे यहां छात्रों के पहले बैच का नामांकन हुआ।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने एक महत्वपूर्ण स्थान पर मेरे (विश्वविद्यालय) परिसर के लिए 455 एकड़ जमीन आवंटित करने में देर नहीं लगाई। बी.वी. दोशी ने प्राचीन नालंदा के वास्तु को प्रतिबिंबित करते हुए विश्व मानकों के अनुरूप सभी आधुनिक सुविधाओं को समाहित करते हुए, पर्यावरण-अनुकूल वास्तुकला का डिज़ाइन तैयार किया है। यह एक विशाल कार्बन-फुटप्रिंट-मुक्त, नेट-ज़ीरो परिसर है, जो एकड़ों हरियाली और 100 एकड़ जलाशयों में फैला है और वास्तव में शिक्षा का एक केंद्र है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार की पहल का दुनिया भर में सर्वसम्मति और उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया है।

करीब 60 एकड़ में फैला था मेरा प्राचीन परिसर-

भारत के इस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पुरातात्विक स्थल करीब 23 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। पुराने नालंदा शहर के बारे में उल्लेख है कि यह लगभग 16 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला था, जिसमें से केवल 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र की ही खुदाई की गई है। यह खुदाई हीरानंद शास्त्री ने करायी थी, जिससे यह पता चलता है कि बख्तियार खिलजी ने नालंदा विवि के वैभव को कैसे नष्ट किया। मेरे नए नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के लिए 455.19 एकड़ जमीन दी गई है।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानुज शर्मा