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गुवाहाटी, 22 अक्टूबर (हि.स.)। असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया ने गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर पिछले महीने सिंगापुर में गायक जुबीन गर्ग की मौत की जांच की निगरानी के लिए एक स्पेशल बेंच बनाने की अपील की है।
गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बुधवार काे लिखे एक विस्तृत पत्र में, सैकिया ने कई एजेंसियों द्वारा की जा रही ओवरलैपिंग जांच पर गंभीर चिंता जताई और चेतावनी दी कि पैरेलल सिस्टम जांच की ईमानदारी से समझौता कर सकते हैं और सबूतों में दिक्कतें पैदा कर सकते हैं।
प्रसिद्ध असमिया गायक की 19 सितंबर को सिंगापुर में मौत हो गई, जिससे पूरे राज्य के लोगों में भारी गुस्सा व्याप्त है। इस मामले को लेकर गलत जानकारी और विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी 60 से अधिक प्राथमिकी असम में दर्ज की गई हैं, और कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं।
अभी, इस मामले की जांच दो अलग-अलग बॉडी कर रही हैं। एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) जो 24 सितंबर को असम पुलिस एक्ट के तहत बनी थी और जस्टिस सौमित्र सैकिया की अगुवाई में एक सदस्यीय कमीशन ऑफ इंक्वायरी, जो 3 अक्टूबर को कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट, 1952 के तहत बना था।
सैकिया ने तर्क दिया कि यह दोहरा तरीका संवैधानिक सही होने, इंस्टीट्यूशनल काबिलियत, अधिकार क्षेत्र की सीमाओं और जांच प्रक्रिया में कई चीजों और दोहरेपन के जोखिम से जुड़े बड़े सवाल खड़े करता है।
विपक्ष के नेता ने दोनों तरीकों में बुनियादी सीमाओं पर जाेर दिया। उन्होंने कहा कि जांच कमीशन के पास न्यायिक शक्तियां नहीं होतीं और वे जरूरी निर्देश जारी नहीं कर सकते, जैसा कि राम कृष्ण डालमिया बनाम जस्टिस एसआर तेंदुलकर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बताया गया है। 24वीं लॉ कमीशन रिपोर्ट में इस बात पर भी जाेर दिया गया है कि ऐसे कमीशन सिर्फ फैक्ट-फाइंडिंग और सिफारिश करने की हैसियत से काम करते हैं।
इससे भी ज़्यादा जरूरी बात यह है कि सैकिया ने एसआईटी के लिए अधिकार क्षेत्र की रुकावटों की ओर इशारा किया, जो असम पुलिस एक्ट के तहत काम करती है। चूंकि गर्ग की सिंगापुर में मौत हो गई, इसलिए भारतीय पुलिस के पास विदेशों में सीधे तौर पर कार्रवाई करने की कोई शक्ति नहीं है। उन्होंने लिखा, एसआईटी...को सिर्फ़ घरेलू जांच का अधिकार है और विदेश में पूछताछ करने के लिए उसके पास देश के बाहर का अधिकार नहीं है। उन्होंने सिंगापुर की ऑटोप्सी रिपोर्ट, हॉस्पिटल रिकॉर्ड या गवाहों के बयान देखने के लिए म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी या लेटर रोगेटरी की ज़रूरत का ज़िक्र किया।
विपक्षी नेता ने जांच का कॉन्फिडेंशियल मटीरियल मीडिया में लीक होने पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, चल रही जांच से जुड़ी कई और अलग-अलग रिपोर्ट चुनिंदा और गलत तरीके से मीडिया में लीक की गई हैं, जिसमें कॉन्फिडेंशियल और पर्सनल मटीरियल भी शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे जांच की निष्पक्षता और पवित्रता कम हुई है।
करूर भगदड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट की हालिया गाइडेंस से तुलना करते हुए, सैकिया ने ज़ोर दिया कि न्यायिक निगरानी वाली जांच ज़रूरी है, जहां जांच करने वाली अथॉरिटी पर एग्जीक्यूटिव कंट्रोल के कारण संभावित हितों का टकराव होता है।
उन्होंने तीन खास सुझाव दिए हैं: एक सदस्यीय कमीशन का नोटिफिकेशन वापस लेना, सीआईडी के कामों के साथ ओवरलैप खत्म करने के लिए एसआईटी को एक ही फ्रेमवर्क में शामिल करना, और सबसे ज़रूरी, जांच की निगरानी के लिए गौहाटी हाई कोर्ट की एक स्पेशल बेंच बनाना।
प्रस्तावित स्पेशल बेंच प्रोग्रेस पर नज़र रखेगी, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के तहत प्रोसीजरल सेफगार्ड का पालन पक्का करेगी, इंटरनेशनल मदद को कोऑर्डिनेट करेगी, और हर महीने प्रोग्रेस रिपोर्ट लेगी।
सैकिया ने विनीत नारायण बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में तय मिसाल का ज़िक्र करते हुए कहा कि ज्यूडिशियल निगरानी कई तरह की जांच को खत्म करेगी, डुप्लीकेसी को रोकेगी, और प्रोसीजरल गड़बड़ियों से बचाएगी, जिससे यह पक्का होगा कि जांच में कमी या भेदभाव की वजह से कोई भी आरोपी जवाबदेही से बच न सके।
पत्र के आखिर में चीफ जस्टिस से मामले का रिव्यू करने और असम सरकार को ज्यूडिशियल निगरानी में एक निष्पक्ष, भरोसेमंद और प्रोसीजरल रूप से सही जांच पक्का करने के लिए गाइड करने के लिए सुझाव देने की अपील की गई है।------------------
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय