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जबलपुर, 22 अक्टूबर (हि.स.)। मप्र की संस्कारधानी जबलपुर में इस वर्ष दीपावली के पर्व पर मां नर्मदा के तटों पर प्रशासनिक प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए जमकर आतिशबाजी की गई। आश्चर्य की बात यह रही कि यह आतिशबाजी केवल दीपावली की रात तक सीमित नहीं रही, बल्कि अगले दिन भी घाटों पर धमाकों की गूंज सुनाई देती रही। मां नर्मदा के संरक्षण हेतु जहां घाटों और उनके आसपास आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध है, वहीं नियमों की खुलेआम अनदेखी ने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रत्येक वर्ष दीपावली पर मां नर्मदा के पावन तटों पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु दीपदान करने पहुंचते हैं। इस बार भी ऐसा ही दृश्य देखने को मिला, परंतु श्रद्धा के इस माहौल में कुछ युवाओं ने नियमों की परवाह किए बिना पटाखे फोड़कर न केवल प्रदूषण फैलाया, बल्कि घाट की पवित्रता को भी भंग किया। कई स्थानों पर आतिशबाजी इतनी तीव्र रही कि धुआं और बारूद की गंध से वातावरण दूषित हो गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन ने पहले से ही स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि मां नर्मदा के घाटों पर किसी भी प्रकार की आतिशबाजी सख्त वर्जित है। इसके बावजूद घाटों पर पुलिस बल की मौजूदगी न के बराबर रही। इस लापरवाही का फायदा उठाते हुए कुछ युवाओं ने न केवल आतिशबाजी की बल्कि खुलेआम शराब सेवन भी किया। इससे घाटों की पवित्रता को ठेस पहुंची और श्रद्धालुओं में रोष फैल गया।नागरिकों का कहना है कि यदि प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर घाटों की निगरानी करें तो इस तरह की लापरवाहियों पर रोक लगाई जा सकती है।
एडवोकेट धनन्जय सिंह का कहना है कि मां नर्मदा की स्वच्छता को लेकर प्रदेश और केंद्र सरकार कई योजनाएं चला रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का असर नजर नहीं आ रहा। हर वर्ष दीपावली, नर्मदा जयंती या अन्य आयोजनों के दौरान प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। आतिशबाजी से उठने वाला धुआं, फोड़े गए पटाखों का कचरा और प्लास्टिक सामग्री नर्मदा के जल में मिलकर उसकी निर्मल धारा को दूषित करते हैं।
शहर के पर्यावरणप्रेमियों का कहना है कि मां नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि प्रदेश की जीवनधारा हैं। उनके संरक्षण के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। घाटों पर आतिशबाजी, शराबखोरी और कचरा फैलाने वालों पर त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस तरह की हरकत करने से पहले सौ बार सोचे।
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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक