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जगदलपुर, 22 अक्टूबर (हि.स.)। बस्तर में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की तैयारी जाेर-शाेर से जारी है, नदी एवं तालाब के किनारे की साफ-सफाई के साथ पूजा स्थल की रंगाई पाेताई की जा रही है। हिंदू धर्म में कार्तिक मास व्रतों और त्योहारों का महीना माना जाता है, 20 अक्टूबर को पूरे देश में दिपावली मनाई गई, अब लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। छठ पूजा छठी मैया और भगवान सूर्य की पूजा का त्योहार है। इस त्योहार में प्रकृति और आस्था का संगम देखने को मिलता है।
इस पर्व में महिलाओं और पुरुषों द्वारा संतान के जीवन की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष छठ पूजा की शुरुआत 25 अक्टूबर से होगी, और 28 अक्टूबर तक चलेगा। मिथिला समाज के शंकर झा ने बताय कि 25 अक्टूबर को छठ पर्व नहाय-खाय के साथ शुरू होगा, दूसरे दिन 26 अक्टूबर को खरना होगा, फिर तीसरे दिन 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। वहीं छठ पूजा के आखिरी दिन 28 अक्टूबर को उदयागामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, इसी के साथ यह छठ पर्व समाप्त हो जाएगा।
शंकर झा ने बताया कि पहले दिन व्रती सुरज निकलने से पहले पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं, यानी स्नान करते हैं। इसके बाद घरों में साफ-सफाई की जाती है, फिर चना दाल, कद्दू और चावल का प्रसाद तैयार किया जाता है। यह प्रसाद व्रती और उसके परिवार द्वारा ग्रहण किया जाता है। उन्हाेंने बताया कि स्कंद पूराण में बताया गया है कि इस दिन से छठी मैया की कृपा शुरु होती है। दूसरे दिन छठ पूजा के दूसरे दिन खरना होता है, इस दिन व्रतियों द्वारा लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर और रोटी बनाई जाती है। फिर इसके बाद व्रती प्रसाद को खाते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत, मान्यताओं के अनुसार, खरना के बाद से छठी मैया घर में विराजमान होती हैं। छठ पूजा के तीसरे दिन निर्जला उपवास रखते हुए डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्यदेव को यह अर्घ्य बांस के सूप में फल, ठेकुआ और मिठाई के साथ दिया जाता है। छठ पूजा के चौथे यानी आखिरी दिन व्रती नदी किनारे उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। फिर उसके बाद सात या ग्यारह परिक्रमा करते हैं, इसके बाद व्रत खोलते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे