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अनूपपुर, 22 अक्टूबर (हि.स.)। मां नर्मदा की उद्गम स्थली व पवित्र नगरी अमरकंटक में बुधवार को धर्म,संस्कृति और परंपरा के त्रिवेणी संगम पर जब श्रद्धा की दीपशिखा प्रज्वलित होती है, तब ऐसा दृश्य साक्षात दिव्यता का आभास कराता है। ऐसी ही एक अनुपम झांकी मां नर्मदा की पुण्यभूमि पर देखने को मिली, जब सागर जिले के कनैय खेड़ा ग्राम से पधारे पटैल–कछवाहा समाज के 45 श्रद्धालुओं लोक परंपरा का अनुपम उत्सव लेकर यहाँ पहुँचे।
दीपावली के दूसरे दिवस, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बुंदेलखंड अंचल में 'गौ-पूजन एवं मौन व्रत यात्रा' की परंपरा सजीव होती है। इस दिन समाज के सदस्य गौ माता के चरणों में लोटते हुए,मौन व्रत धारण कर,पवित्र वेशभूषा में 12 किलोमीटर की धार्मिक पदयात्रा पूर्ण करते हैं। श्वेत वस्त्रों में धोती,परद्नी व बनियानी में सुसज्जित मुंह पर दूर्वा धारण किए यह श्रद्धालु पूरे मार्ग में ढोलक,मंजीरा, टिमकी, बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मधुर स्वर-लहरियों के साथ झूम-झूमकर नृत्य करते हुए लोक-गीतों के स्वरों में भक्ति उल्लास व परंपरा का गान गुंजायमान किया। नर्मदा मंदिर परिसर तथा नगर के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर समाज द्वारा उत्सव मनाया गया, जो न केवल श्रद्धा का प्रदर्शन था बल्कि बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत दस्तावेज भी बन गया।
इस दौरान पर्यटक व तीर्थयात्री भी लोकमंगल यात्रा के साक्षी बने। कई श्रद्धालु नर्तक दल के साथ थिरकते हुए इस अनुपम उत्सव का आनंद लिया। क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पूजन के दिन गौ माता के नीचे से निकलने से समस्त पाप कटते हैं व पुण्य की प्राप्ति होती है। गौ पूजन कर मौन व्रत रख जंगल की ओर गाय,बछड़ा लेकर जाते है और शाम को वापस घर लाते है। इस पूरे समय मौन व्रत रखा जाता है। गौ पूजन कर मौन व्रत,उपवास पूर्ण करते है । साधक अपने भीतर की आत्मशक्ति को जागृत कर लोककल्याण की भावना से ओतप्रोत होता है। बुंदेलखंड की यह परंपरा आज भी संस्कार, संस्कृति व समाज की एकता का दिग्दर्शक बनी हुई है, जिसे पटैल-कछवाहा समाज हर वर्ष श्रद्धा व भक्ति के साथ आगे बढ़ा रहा है ।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश शुक्ला