Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
बांकुड़ा, 21 अक्टूबर (हि. स.)। बांकुड़ा में काली पूजा के दिन मनाया जाने वाला पारंपरिक रिवाज़ ‘मशाल जले इंजो लो पिंजो लो’ अब धीरे-धीरे इतिहास का हिस्सा बनता जा रहा है। इस रिवाज़ में पाटकाठी की छोटी-छोटी लकड़ियों की गठरी जला कर मशाल बनाई जाती थी। कल रात यह त्यौहार बांकुड़ा के ग्रामीण क्षेत्रों में मनाई गई गांव के ज्यादा से ज्यादा लोग परिवार समेत उत्सव में शिरकत किया।
छोटे बच्चों ने सदियों से इस परंपरा को गीत और छंदों के माध्यम से जीवित रखा था। परंपरागत छंदों में बच्चे कहते थे - “इंजला पिंजला धाय, माशा धाय / जितने माशा हैं सब कालीतलाय जाएं।”
“इंजल काठी पिंजल काठी, बूढ़ा दादु के स्वर्ग में बत्ती।”
स्थानीय वरिष्ठों का कहना है कि शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली के चलते यह परंपरा अब कम होती जा रही है। बच्चे अब इसे जानने या निभाने में कम रुचि दिखा रहे हैं।
सांस्कृतिक विशेषज्ञों ने बताया कि यदि स्थानीय समुदाय इस रिवाज़ को संरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठाता, तो यह धरोहर पूरी तरह से लुप्त हो जाएगी।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / अभिमन्यु गुप्ता