शिमला के धामी में मनाया गया अनोखा पत्थर मेला, लोगों ने एक-दूसरे पर बरसाए पत्थर
पत्थर मेले का आयोजन


शिमला, 21 अक्टूबर (हि.स.)। शिमला के हलोग धामी में मंगलवार को दिवाली के दूसरे दिन सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार आयोजित पत्थर मेला इस वर्ष भी पुराने उत्साह और जोश के साथ संपन्न हुआ। इस अनोखी परंपरा में स्थानीय लोग दो टोलियों में बंटकर एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। यह खेल तब तक चलता है जब तक किसी एक पक्ष के किसी सदस्य को चोट लगकर रक्तस्राव नहीं होता। इस वर्ष भी करीब 40 मिनट तक दोनों पक्षों के बीच जबरदस्त पत्थरबाजी हुई। इसमें कटेड़ू टोली के सुभाष के हाथ में पत्थर लगने से उनका खून बहा। उनके रक्त से मां भद्रकाली का तिलक किया गया और उसके बाद ही खेल का समापन हुआ।

धामी में पत्थर मेले का आयोजन राजपरिवार की ओर से तुनड़ू, जठौती और कटेड़ू परिवार की टोली और दूसरी ओर जमोगी खानदान की टोली के बीच होता है। स्थानीय लोग मेले का आनंद देखने आते हैं, लेकिन वे खुद पत्थर नहीं फेंक सकते। इस बार भी पूरी रस्मों और मान्यताओं के अनुसार पत्थर मेला आयोजित किया गया और जमोगी टोली विजयी रही।

पत्थर मेले में चोट लगने के बाद सुभाष के हाथ से खून बहा। उन्होंने कहा, मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि इस आयोजन के दौरान पत्थर लगने से मेरा खून निकला। यह आयोजन हमारी आस्था और परंपरा का प्रतीक है। इसके लिए हम अपने खून निकलने की परवाह नहीं करते। हमारी मान्यता के अनुसार यह खेल चलता है और भगवान हमारी सुरक्षा खुद करते हैं।

मेला कमेटी के महासचिव रणजीत सिंह कंवर ने बताया कि यह मेला हर साल दिवाली के अगले दिन होता है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। राजपरिवार के जगदीप सिंह ने भी इस आयोजन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पत्थर मेला हमारे समाज की आस्था और एकता का प्रतीक है।

इस मेला की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी काफी रोचक है। माना जाता है कि पहले यहां हर वर्ष मां भद्रकाली को नरबलि दी जाती थी। लेकिन धामी रियासत की रानी ने अपने सती होने से पहले नरबलि बंद करने का आदेश दिया। इसके बाद पशुबलि की परंपरा शुरू हुई, जो कई दशक पहले बंद कर दी गई। तत्पश्चात पत्थर मेला शुरू हुआ और तब से यह अनोखी परंपरा हर साल दिवाली के दूसरे दिन धामी में आयोजित हो रही है।

पत्थर मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय लोगों के उत्साह, साहस और सामूहिक भागीदारी का प्रतीक भी बन चुका है। पत्थर मेले में चोट और खून निकलना इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि रक्त से तिलक करने की रस्म मां भद्रकाली की कृपा और सुरक्षा का प्रतीक है।

धामी शिमला शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है और शहरी हलकों से यह क्षेत्र ग्रामीण और पारंपरिक मान्यताओं का केंद्र माना जाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा