नरसिंहपुर : दुर्गम जनजातीय अंचलों में दीपोत्सव की उजास बिखेरते मुकेश बसेड़िया
बसेंडिया l


नरसिंहपुर , 21 अक्टूबर (हि.स.)। दीपों के पर्व दीपावली पर जब नगरों की गलियाँ रंगीन रोशनी और आतिशबाज़ी से जगमगा उठती हैं, उसी समय मध्‍य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा नगर के वरिष्ठ समाजसेवी मुकेश बसेड़िया सुदूर जनजातीय अंचलों की ओर निकल पड़ते हैं। उनका उद्देश्य केवल दीप जलाना नहीं होता, बल्कि उन चेहरों पर मुस्कान बिखेरना होता है जहाँ अब भी त्योहारों की रौनक पहुंच नहीं पाई।

दरअसल, हर वर्ष की तरह इस बार भी उन्होंने धनतेरस से अपनी सेवा यात्रा की शुरुआत की। तीन दिन तक वे कठिन पहाड़ियों और दुर्गम वनपथों से होकर बेरबन, पीपला, टोला, कुक्लोर, छीरई, पिपरिया, आफ़तगंज, गंगडोर, हरसुआ जैसे सुदूर वन ग्रामों में पहुंचे। अपने साथ वे दीपावली की उजास लेकर गए; दीपक, तेल, बाती, प्रसादी और माँ लक्ष्मी के छायाचित्र। प्रत्येक जनजातीय परिवार के घर में जब बसेड़िया ने दीप जलाया, तो वहाँ के लोगों की आंखों में चमक और दिलों में अपनत्व की गर्माहट भर उठी।

सेवा का विस्तार: वस्त्र, अन्न और शिक्षा का संदेश

बसेड़िया केवल दीप सामग्री ही नहीं लेकर गए थे। उन्होंने वृद्धजनों, महिलाओं और युवाओं को साड़ियां, गर्म वस्त्र, कंबल, कुर्ता-धोती, रुमाल जैसे उपयोगी सामान भेंट किए। छोटे बच्चों को उन्होंने पठन-पाठन सामग्री, वस्त्र, खिलौने, टॉफियां, पटाखे और श्रृंगार सामग्री देकर नन्हे चेहरों पर खुशियाँ लौटा दीं। सेवा यात्रा के दौरान उन्होंने जनजातीय बंधुओं को नशे से दूर रहने और बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की शपथ दिलाई। उनका मानना है कि समाज का वास्तविक उत्थान शिक्षा और जागरूकता से ही संभव है।

एक दशक से अधिक समय से सतत सेवा

यह पहली बार नहीं है जब मुकेश बसेड़िया ने यह मिसाल कायम की हो। वे पिछले ग्यारह वर्षों से लगातार स्वयं के खर्च पर जनजातीय क्षेत्रों में जाकर इस प्रकार की सेवाएं कर रहे हैं। दीपावली, होली, रक्षाबंधन या मकर संक्रांति, हर बड़े पर्व को वे उन्हीं लोगों के साथ मनाते हैं जो मुख्यधारा से अब भी दूर हैं।

सर्दियों के मौसम में वे नियमित रूप से पहाड़ी और वनांचल ग्रामों में जाकर ठंड से जूझते परिवारों को कंबल, मच्छरदानी, राशन और अन्य आवश्यक सामग्री वितरित करते हैं। उनका कहना है कि “त्योहार केवल शहरों के लिए नहीं होते, उनका अर्थ तब ही पूर्ण होता है जब दूर बसे लोगों के जीवन में भी वही उजास पहुंच सके।”

कठिन रास्तों में समर्पण की मिसाल

इस बार का अभियान भी आसान नहीं था। बसेड़िया ने अपने सहयोगियों के साथ तीन दिन तक कठिन और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों पर पैदल यात्रा की। कहीं जीप रास्ते में ही रुक गई, तो कहीं सामग्री सिर पर रखकर ले जानी पड़ी। लेकिन उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उनका कहना था कि “थोड़ी मेहनत और कुछ कदम आगे बढ़ने से किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाए, तो वही सच्ची पूजा है।”

सेवा कार्य में उनके साथ प्रिंस बसेड़िया, तनुश्री बसेड़िया, मनोज भारिया, कडोरी भारिया और गुड्डू भारिया जैसे साथी लगातार सक्रिय रहे। उन्होंने भी समान रूप से सामग्री वितरण और जनजातीय बस्तियों में उत्सव आयोजन में सहयोग किया।

सच्ची संपदा है मुस्कान

बसेड़िया कहते हैं, “मेरे लिए गरीबों, असहायों और मासूम बच्चों की सेवा सोना-चांदी से भी बढ़कर है। इंसान के जीवन का असली धन उसकी सेवा भावना है, क्योंकि यही साथ जाती है, बाकी सब यहीं रह जाता है।” उनकी यह सोच ही उनके कार्यों का प्रेरणास्त्रोत है। समाज के अनेक लोग अब उनकी इस पहल से जुड़ रहे हैं। कई युवा स्वयंसेवक दीपोत्सव के समय उनके साथ जनजातीय क्षेत्रों की ओर जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

मानवता का उजाला

गाडरवारा नगर में बसेड़िया को लोग केवल एक समाजसेवी के रूप में नहीं, बल्कि “मानवता के दीपक” के रूप में जानते हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि संवेदना और करुणा के दीपक जब जलते हैं, तो वे सबसे अंधेरे कोनों को भी रोशन कर सकते हैं। उनके कार्यों ने यह संदेश दिया है कि त्योहार केवल रोशनी और मिठाइयों का नहीं, बल्कि साझेदारी और संवेदना का पर्व भी है। जब समाज का हर वर्ग खुशियों में सहभागी बने, तभी सच्चे अर्थों में दीपावली का प्रकाश पूर्ण होता है।

उल्‍लेखनीय है कि मुकेश बसेड़िया का यह प्रयास यह भी दर्शाता है कि सेवा और समर्पण की भावना आज भी जीवित है। कठिन परिस्थितियों, सीमित संसाधनों और थकाऊ यात्राओं के बावजूद उनका कार्य यह याद दिलाता है कि जब नीयत साफ हो, तो कोई राह कठिन नहीं होती। इस दीपावली, गाडरवारा से लेकर नरसिंहपुर के सुदूर वनांचलों तक, बसेड़िया और उनके साथियों ने जो उजाला फैलाया, वह आज मानवता के प्रकाश से जगमगाता दीपोत्सव के रूप में यहां जनजाति समाज जन के बीच दिखाई दे रहा है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / भागीरथ तिवारी