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मुंबई,21 अक्टूबर ( हि.स.) । दिवाली की रौशनी शुरू हो गई है। सड़कें, सोसाइटियाँ और बगीचे हर जगहज्वलनशील दीयों की रोशनी से जगमगा रहे हैं। हालाँकि, इस कृत्रिम रोशनी के कारण पेड़ों की साँसें प्रभावित हो रही हैं। इस गंभीर और भावनात्मक मुद्दे पर, ठाणे के पर्यावरणविद् डॉ. प्रशांत सिनकर ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पर्यावरण मंत्री पंकजा मुंडे को एक ज्ञापन भेजकर पेड़ों पर बिजली की रोशनी पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की माँग की है।
डॉ. सिनकर ने अपने बयान में बताया कि, जो पेड़ हमें दिन-रात ऑक्सीजन देते हैं, उन्हें दीयों की मालाओं से बाँधना उनकी साँस लेने की प्रक्रिया में उनके लिए आत्मघाती है। डॉ प्रशांत सिनकर ने बताया कि पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण नामक प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश पानी और हवा से कार्बन डाई ऑक्साइड का उपयोग कर शर्करा ( ग्लूकोज) बनाते हैं।अब इस भांति प्राप्त ऊर्जा से पौधे अपनी बुद्धि व विकास का कार्य करते हैं।लेकिन जब पेड़ों को कृत्रिम रोशनी से सजाते है तो वह तेज लाइट उनके लिए घातक हो सकती है।इस तरह त्यौहार का आनंद प्रकृति की बलि देकर नहीं मनाया जाना चाहिए।
राज्य में कई जगहों पर पेड़ों को हैलोजन, एलईडी और रंग-बिरंगे दीयों की मालाओं से सजाया जाता है। यह रोशनी, जो एक पल के लिए आकर्षक लग सकती है, पेड़ों के जीवन चक्र को गंभीर रूप से बाधित करती है। सूर्यास्त के बाद, पेड़ आराम करने लगते हैं, लेकिन कृत्रिम प्रकाश उनकी जैविक घड़ी या ऊर्जा चक्र को बाधित करता है, जिससे उनकी वृद्धि और स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
इस प्रकाश से न केवल पेड़, बल्कि पक्षी और निशाचर जीव भी परेशान होते हैं। भटकाव, घोंसले का गिरना और अंधेरे में रहने के आदी जानवरों का जीवन बर्बाद हो जाता है। डॉ. सिनकर ने रेखांकित किया, पेड़ों पर प्रकाश बंद करना न केवल सौंदर्यबोध के लिए, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी आवश्यक है।
मुख्यमंत्री फडणवीस और पर्यावरण मंत्री पंकजा मुंडे को दिए एक बयान में उन्होंने कहा कि, त्योहार आनंद, प्रकाश और उत्साह के होते हैं, लेकिन ये प्रकृति की कीमत पर नहीं होने चाहिए। पेड़ों, मिट्टी, पानी और पशु-पक्षियों का सम्मान करके ही हम सच्ची 'प्रकृति' की पूजा कर सकते हैं। इसलिए, आगामी त्योहारों के मौसम में पेड़ों पर कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था पर सख्ती से प्रतिबंध लगाने के आदेश जारी किए जाने चाहिए।
दिवाली, क्रिसमस, नए साल जैसे हर त्योहार पर पेड़ों पर बिजली की रोशनी सुंदर तो लगती है, लेकिन पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है। उन्होंने यह भी बताया कि इससे मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे अनिद्रा, तनाव और सिरदर्द जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
इस बीच, ठाणे नगर निगम ने भले ही पर्यावरण-अनुकूल दिवाली का नारा दिया हो, लेकिन असल में शहर के पेड़ रोशनी से जगमगा रहे हैं। पर्यावरणविदों की आलोचना है कि नगर निगम का पर्यावरण महज़ दिखावा है और पेड़ों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं देता।
पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ प्रशांत सिनकर ने बताया कि दिवाली का असली उजाला प्रकृति के हृदय में है, पेड़ों के ज़ख्मों में नहीं। रोशनी से सजा पेड़ सुंदर तो लगता है, लेकिन उस रोशनी में एक जीव का दम घुट रहा है...!
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हिन्दुस्थान समाचार / रवीन्द्र शर्मा