Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
जम्मू, 18 अक्तूबर (हि.स.)। डोगरा सदर सभा के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ठाकुर गुलचैन सिंह चाढ़क को हजारों की संख्या में लोगों ने आज नम आंखों से अंतिम विदाई दी। उनका शुक्रवार को उनके निवास स्थान ग्रेटर कैलाश जम्मूू में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। वह 83 वर्ष के थे। आज मंडल श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान राजनीतिक जगत की कई प्रमुख हस्तियां मौजूद रहीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों की आवाज बुलंद करने में समर्पित कर दिया था।
वह अपने पीछे अपनी पत्नी, दो बेटे और और बेटियां और उनके परिवार को छोड़ गए। सांबा जिले के रहने वाले चाड़क का जन्म वर्ष 1942 में ठाकुर मलूक सिंह चाड़क के घर में हुआ था जो वर्ष भारतीय सेना में थे।
वह गाँव बस्सी कलां, तहसील साम्बा, ज़िला साम्बा (जम्मू और कश्मीर) और वर्तमान चाडक निवास लेन संख्या 20, ग्रेटर कैलाश जम्मू के रहने वाले थे। वह हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, डोगरी, पंजाबी और मराठी भाषा जानते थे। वह 1997 में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जम्मू-कश्मीर विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए। पुंछ और राजौरी के सीमावर्ती जिलों के लिए जिला विकास बोर्ड के अध्यक्ष रहे। जम्मू-कश्मीर विधानमंडल की आचार समिति के अध्यक्ष भी रहे। जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टी) के प्रदेश अध्यक्ष और सीडब्ल्यूसी, एआईसीसी (टी) के सदस्य नियुक्त हुए। वह श्री अमर क्षत्रिय राजपूत सभा के अध्यक्ष भी रहे।
उनके अंतिम संस्कार में उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमन भल्ला, पूर्व मंत्री चौधरी लाल सिंह, चंद्र प्रकाश गंगा, सुरजीत सिंह सलाथिया सहित कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के नेताओं ने पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके राजनीतिक जीवन को याद किया। बड़ी संख्या में आम लोग और समर्थक भी उनके अंतिम दर्शन के लिए मंडल पहुंचे।
गुलचैन सिंह चाढ़क का जन्म 1942 में जम्मू में चाढ़क वंश के क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनका परिवार देश सेवा के गौरवशाली इतिहास से जुड़ा रहा है। उनके पिता ठाकुर मलूक सिंह चाढ़क प्रथम विश्व युद्ध में अपनी बहादुरी के लिए सम्मानित सूबेदार रहे।
चाढ़क ने राजनीति में प्रवेश के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार में लोक निर्माण (पीडब्ल्यूडी) और मैकेनिकल इंजीनियरिंग मंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री तथा विधान परिषद के उच्च सदन के नेता के रूप में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहते हुए उन्होंने 2002 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 25 वर्षों बाद सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के सदस्य, कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य रहे और पंजाब, बिहार और चंडीगढ़ के प्रभारी के रूप में भी उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूत किया।
राजनीतिक जीवन के साथ-साथ गुलचैन सिंह चाढ़क ने शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने डोगरा लॉ कॉलेज सहित कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों की स्थापना की, जिनके माध्यम से उन्होंने युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास किया। सामाजिक क्षेत्र में भी उनका योगदान अमूल्य रहा। उन्होंने उग्रवाद के दौर में सांप्रदायिक सौहार्द और शांति बनाए रखने के लिए “जम्मू पीस काउंसिल” की स्थापना की। वर्ष 1994 में उन्होंने जम्मू में पहली ‘गोलमेज़ सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसने शांति और आपसी सद्भाव की दिशा में नई पहल की शुरुआत की।
डोगरी भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने डोगरी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के आंदोलन का नेतृत्व किया और डोगरा अस्मिता के संरक्षण के लिए लगातार संघर्षरत रहे। वह श्री अमर क्षत्रिय राजपूत सभा के अध्यक्ष भी रहे और इस दौरान उन्होंने सभा में पुंछ और राजौरी के राजपूत मुसलमानों को राजपूर सभा में मताधिकार देने का ऐतिहासिक और साहसिक फैसला लिया। गुलचैन सिंह चाढ़क का जीवन राजनीति, शिक्षा, सामाजिक समरसता, सनातन धर्म और प्रकृति संरक्षण के प्रति समर्पण का प्रतीक रहा। उनके निधन से जम्मू-कश्मीर की राजनीति और समाज ने एक सच्चे जननेता को खो दिया है।
हिन्दुस्थान समाचार / अमरीक सिंह