32 साल पुराने हत्या मामले में तीन आरोपी बरी
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जोधपुर, 18 अक्टूबर (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने 32 साल पुराने हत्या के एक मामले में तीन आरोपियों को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर तीनों आरोपियों को बरी किया है। जस्टिस फरजंद अली ने ये फैसला सुनाया।

जस्टिस फरजंद अली ने अपने रि-पोर्टेबल जजमेंट में रामस्वरूप, दलीप सिंह और ताराचंद को निचली कोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा रद्द कर सभी आरोपों से बरी किया है। कोर्ट ने पाया कि मृतक काशीराम को लगी गंभीर चोटें केवल दो अन्य आरोपियों फुलाराम और रामचंदर द्वारा वार करने से लगी थी, जिनकी अपील के लंबित रहते मौत हो चुकी है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि केवल घटनास्थल पर मौजूदगी से अपराध साबित नहीं होता। दरअसल, यह मामला 12 सितंबर 1992 को श्रीगंगानगर जिले के गांधी बाड़ी, तहसील बादरा में हुई एक हत्या से संबंधित है। उस दिन सुबह नौ बजे आरोपी फूलाराम ने सिंगाराम के घर जाकर गालियां दीं और जब उनकी पत्नी रेशमा ने विरोध किया तो उसे लाठी से मारा। इसके बाद जब सिंगाराम अपने रिश्तेदारों काशीराम, रामकृष्ण और शंकरलाल को बुलाने गए और वापस लौट रहे थे, तो फूलाराम के घर के पास से गुजरते समय फूलाराम, रामचंदर, दलीप सिंह, ताराचंद, बलुराम और सुभाष ने लाठियों के साथ हमला कर दिया। काशीराम जमीन पर गिर गए और बाद में चोटों से उनकी मौत हो गई। इस मामले में पुलिस ने पांचों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। ट्रायल कोर्ट ने 13 अगस्त 1993 को फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को दोषी माना।

मेडिकल सबूत ने बदला फैसला

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों की बहस सुनी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ कि मृतक काशीराम के दो घाव थे, जिन पर टांके लगे थे। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में रामस्वरूप, दलीप सिंह और ताराचंद द्वारा वार करने या इनके पास कोई घातक हथियार मिलने का कोई आरोप नहीं था। यहां तक कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने भी केवल मौके पर मौजूदगी की ही पुष्टि की, न कि हत्या करने में शामिल होना बताया। कोर्ट ने फैसले में लिखा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ताओं रामस्वरूप, दलीप सिंह और ताराचंद ने काशीराम की हत्या के सामान्य उद्देश्य के साथ गैरकानूनी सभा बनाई थी। न ही कोई सबूत मिला कि उनके पास घातक हथियार थे या वे दंगा करने में शामिल थे। ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों पर केवल निकटता के आधार पर धारा 149 आईपीसी लागू कर दी, जो कानूनी रूप से गलत है। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 13 अगस्त 1993 का फैसला रद्द कर दिया और रामस्वरूप, दलीप सिंह तथा ताराचंद की सजा और दोषसिद्धि रद्द कर दी। तीनों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / सतीश