हाईकोर्ट के आदेश पर कोर्ट में पेश शाने अली व रश्मि को कोर्ट ने स्वतंत्र किया
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


-कहा, दोनों बालिग हैं अपनी मर्जी से रह सकते हैं -पुलिस कार्रवाई को अवैध बताया और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई कर रिपोर्ट पेश करने का दिया निर्देश प्रयागराज, 18 अक्टूबर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अलीगढ़ पुलिस द्वारा अवैध रूप से निरूद्ध शाने अली व रश्मि को स्वतंत्र कर दिया है और कहा है कि दोनों बालिग हैं जहां चाहे अपनी मर्जी से जाने के लिए स्वतंत्र हैं।कोर्ट ने बिना कानूनी प्राधिकार के रश्मि व शाने अली की अभिरक्षा में रखने की पुलिस कार्यवाही को अवैध व जीवन के मूल अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है और एसएसपी अलीगढ़ को इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच करने तथा एक माह में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। याचिका की अगली सुनवाई 28 अक्टूबर को होगी।यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय तथा न्यायमूर्ति डी सी सामंत की खंडपीठ ने तहसीम व अन्य की तरफ से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।दीपावली अवकाश के बावजूद नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कोर्ट बैठी और दोनों अंतर धार्मिक शादी करने वाले बालिग जोड़े को पुलिस के चंगुल से छुड़ाया। पुलिस ने 15 अक्टूबर को हाईकोर्ट आये दोनों रश्मि व शाने अली को पकड़कर अलीगढ़ ले गयी थी।जहां शाने अली को थाने में अभिरक्षा में रखा और रश्मि को वन स्टाप सेंटर भेज दिया था। 17 अक्टूबर को लड़की न्यायिक मजिस्ट्रेट अलीगढ़ के समक्ष पेश की गई,जहां उसका बयान दर्ज किया गया। उसने बताया कि अपनी मर्जी से गई थी और उन्होंने शादी कर ली है। अपने शौहर के साथ रहना चाहती है। कोर्ट ने पाया कि वह बालिग है, उसे स्वतंत्र करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दोनों को पेश करने का निर्देश दिया था। जिस पर पुलिस ने उन्हें पेश किया। कोर्ट ने उनसे पूछताछ की।बालिग नागरिकों को अवैध निरुद्धि के सवाल पर शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि अंतर धार्मिक शादी को लेकर समाज में तनाव था। समाज के दबाव के कारण दोनों की पुलिस ने अभिरक्षा ली। कोर्ट इस सफाई से संतुष्ट नहीं हुई और कहा पुलिस के खिलाफ विभागीय जांच कार्यवाही की जाय।कोर्ट ने स्वतंत्र किये गये जोड़े के विवेचना अधिकारी को निर्देश दिया कि पुलिस सुरक्षा में जहां चाहें उन्हें पहुंचाया जाय। साथ ही कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर प्रयागराज, एसएसपी अलीगढ़, एस एसपी बरेली को भी जोडे की सुरक्षा करने का आदेश दिया है और सुनवाई की अगली तारीख 28 अक्टूबर को जांच रिपोर्ट के साथ कोर्ट में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।कोर्ट ने कहा कि सामाजिक तनाव व सामाजिक दबाव के कारण किसी नागरिक की निरूद्धि को उचित नहीं ठहराया जा सकता। सामाजिक दबाव में निरूद्धि गैर कानूनी है। गणतांत्रिक देश में कानून का शासन होता है। समाज के दबाव में शासन काम नहीं करता। राज्य व कानून लागू करने वाले तंत्र से उम्मीद की जाती है कि अपनी कानूनी शक्ति का इस्तेमाल नागरिक की सुरक्षा के लिए करें न कि सामाजिक दबाव में गलत इस्तेमाल करें।सामाजिक दबाव में पुलिस किसी नागरिक के जीवन के मूल अधिकारों में कटौती नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में शादी वैध है या नहीं, विचार नहीं किया जा सकता। रश्मि व शाने अली का यह अन्तर धार्मिक जोड़ा इसी सप्ताह की शुरुआत में अदालत में पेश होने के तुरंत बाद कथित तौर पर लापता हो गया था, जिसके बाद उनकी सुरक्षा और स्वतंत्रता को लेकर चिंताएं बढ़ गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट सुनवाई के लिए छुट्टी में भी बैठी।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि बालिग दम्पति, शाने अली और रश्मि, 15 अक्टूबर को उच्च न्यायालय परिसर से निकलने के बाद लापता हो गए, जहां वे अपने रिश्ते से संबंधित आपराधिक रिट याचिकाओं में उपस्थित हुए थे।याचिका के अनुसार, सुनवाई पूरी होने के बाद दोनों अदालत परिसर से चले गए और तब से उन्हें नहीं देखा गया। उसी दिन शाम लगभग 5 बजे, शाने अली ने कथित तौर पर अपने भाई को फोन करके बताया कि वह और रश्मि प्रयागराज के पीवीआर सुभाष चौराहे के पास एक ई-रिक्शा में हैं और रश्मि के पिता और कुछ अन्य लोग उनका पीछा कर रहे हैं। इस कॉल के कुछ ही देर बाद शाने अली का फोन बंद हो गया। तब से न तो उसका और न ही रश्मि का कोई पता चल पाया है।याचिका में आरोप लगाया गया है कि उसी शाम यह घटना अदालत के संज्ञान में लाई गई थी, जिसके बाद सरकारी वकील को प्रयागराज के सिविल लाइंस थाने के प्रभारी को सूचित करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, याचिका में कहा गया है कि परिवार द्वारा थाने जाने के बावजूद कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई और पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल खड़े किए गए हैं। याचिका में यह भी बताया गया है कि 15 अक्टूबर की सुनवाई के दौरान, रश्मि ने पीठ के समक्ष बयान दिया था कि वह अपनी मर्जी से शाने अली के साथ रह रही है और उससे शादी करना चाहती है।जोड़े ने पहले भी रश्मि के परिवार से मिल रही धमकियों का हवाला देते हुए सुरक्षा की गुहार लगाई थी। याचिका के अनुसार, इस साल की शुरुआत में उच्च न्यायालय ने रश्मि और शाने अली को दो महीने की सुरक्षा भी प्रदान की थी। इसके बावजूद पुलिस ने “सुरक्षा प्रदान नहीं की और शाने अली के परिवार के सदस्यों को परेशान करना जारी रखा।“ याचिका में शाने अली के भाई को सितंबर में कथित रूप से अवैध हिरासत में रखने का भी उल्लेख किया गया है, जिसे एक अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के बाद रिहा किया गया था।याचिका में दावा किया गया है कि रश्मि और शाने अली दोनों बालिग हैं, सहमति से साथ रह रहे हैं, और उनके लापता होने के पीछे रश्मि के परिवार की भूमिका होने की आशंका है। मामले की गंभीरता और मानव स्वतंत्रता के हनन की आशंका को देखते हुए, उच्च न्यायालय ने अब खुद मामले को अपने हाथ में लिया है और विशेष सुनवाई का फैसला किया।

हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे