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जयपुर, 18 अक्टूबर (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि 16 से 18 साल के बीच की उम्र के बाल अपचारी गंभीर अपराध के मामले में किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 के तहत जमानत का अधिकार रखते हैं। इसके साथ ही अदालत ने कोटा में रील बनाते समय गोली चलने से युवक की मौत के मामले में आरोपी किशोर को जमानत दी है। अदालत ने कहा कि गंभीर अपराध के मामले में भी संप्रेक्षण गृह को अंतिम उपाय के रूप में देखना चाहिए। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश आरोपी किशोर की ओर से अपनी मां के जरिए दायर रिवीजन याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। इसके साथ ही अदालत ने किशोर बोर्ड और बाल न्यायालय, कोटा के आदेश को निरस्त कर दिया है। अदालत ने आरोपी किशोर के अभिभावकों को कहा है कि वह किशोर की देखभाल करें और यह सुनिश्चित करें कि वह अपराधियों की संगत में ना पडे।
याचिका में अधिवक्ता कपिल गुप्ता ने बताया कि प्रार्थी और अन्य आरोपियों की ओर से रील बनाने के दौरान गोली चलने से एक युवक की मौत हो गई थी। घटना के समय प्रार्थी की उम्र 16.2 साल थी। मामला बाल न्यायालय में आने पर अदालत ने धारा 15 के तहत उसके खिलाफ वयस्क आरोपी के रूप में कार्रवाई करने के आदेश दिए। वहीं उसकी जमानत अर्जी को भी खारिज कर दिया गया। इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 के तहत उसे जमानत लेने का अधिकार है और अपराध की गंभीरता के आधार पर उसे जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं राज्य सरकार और शिकायतकर्ता की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि उसकी ओर से चलाई गोली से दूसरे युवक की मौत हुई है। ऐसे में उसे जमानत नहीं दी जाए। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के आदेश देते हुए किशोर बोर्ड और बाल न्यायालय के आदेश रद्द कर दिए हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक