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--हाईकोर्ट ने कहा, बच्चों के जरूरी शिक्षा पाने के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए
प्रयागराज, 18 अक्टूबर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्राइमरी स्कूलों में टीचरों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव, एसीएस बेसिक व अन्य अधिकारियों को जरूरी निर्देश जारी किया है। हाईकोर्ट ने अपने पारित आदेश में कहा है कि बच्चों के लिए जरूरी शिक्षा पाने के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।
यह आदेश जस्टिस पीके गिरी ने बांदा की एक टीचर इंदिरा देवी की याचिका पर पारित किया है। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि सरकार स्कूलों में टीचरों के डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था करें तथा जिला एवं ब्लॉक स्तर पर एक ऐसा टास्क फोर्स का गठन करें जिससे उनकी स्कूलों में हाजिरी सुनिश्चित हो सके। कोर्ट ने बांदा के डीएम व बीएसए से अपने जिले की रिपोर्ट मांगी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार ने उनकी उपस्थिति के लिए डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था की है, परन्तु वह अभी धरातल पर नहीं है।
अपने पारित विस्तृत आदेश में कोर्ट ने कहा कि टीचर गुरु है और वह परम ब्रह्म के समान है। कोर्ट ने इसे उद्धित किया “गुरूर ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः“।
मामले के अनुसार याची टीचर कंपोजिट स्कूल तिंदवारी, बांदा में तैनात है। उसकी स्कूल में गैरमौजूदगी को लेकर बीएसए बांदा ने 30 अगस्त 2025 को एक आदेश जारी किया था जिसे याची ने याचिका में चुनौती दी है। टीचर इंचार्ज हेड मास्टर है। आरोप है कि वह डीएम के निरीक्षण के दौरान स्कूल में नहीं थी। हस्ताक्षर कर स्कूल से गायब रही। हाईकोर्ट ने कहा कि टीचरों के स्कूल में गैरमौजूदगी से बच्चों के मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 का उलंघन हो रहा है। गरीब बच्चों के शिक्षा पाने के मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है।
हाईकोर्ट ने कहा कि टीचरों के स्कूलों में न जाने से बच्चों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गरीब बच्चे प्राइवेट ट्यूशन का खर्च नहीं उठा सकते। टीचरों की गैरहाजिरी के चलते स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति दिनों दिन कम होती जा रही है। बच्चे ही देश के भविष्य हैं। हाईकोर्ट इस याचिका पर 30 अक्टूबर को पुनः सुनवाई करेगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे