भारतीय ज्ञान परम्परा की अमूल्य निधि मंडन मिश्र: शंकराचार्य शास्त्रार्थ
डाक प्रमंडल


सहरसा, 17 अक्टूबर (हि.स.)। शास्त्रार्थ परम्परा को जीवन्त करने के उद्देश्य से नव पीढ़ी के लिए भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट के जारी कर चरितार्थ किया है। पिछले दिनों बिहार डाक परिमंडल पटना द्वारा मंडन मिश्र शंकराचार्य शास्त्रार्थ को चित्रकार कर बाईपेक्स, बिहार राज्य स्तरीय डाक टिकट संग्रह प्रदर्शनी के माध्यम से आम लोगों के मध्य प्रदर्शित किया।

आठवीं शताब्दी के महान मीमांसक पंडित मंडन मिश्र का जन्म सहरसा जिले के प्रसिद्ध गांव महिषी में हुआ जिसका प्राचीन नाम माहिष्मति नगरी था। दक्षिण भारत केरल से शंकाराचार्य सनातन धर्म के प्रचार के अखिल भारतीय भ्रमण के क्रम में मिथिला के इस पावन भूमि पर शास्त्रार्थ करने आए जहां उन्होंने मंडन मिश्र और उनकी धर्मपत्नी भारती से वेदांत दर्शन के विभिन्न विषयों पर गूढ़ मंतव्य रखे।

अति प्राचीन और पवित्र नदी धर्ममूला नदी के तट पर आज भी महिषी में मंडन मिश्र धाम अवस्थित है। जहां प्रति वर्ष असंख्य पर्यटकों का आना होता है।मंडन मिश्र ने भारतीय दर्शन के मीमांसा पर अनेकों ग्रंथों की रचना की जिनमें ब्रह्मसिद्धि, स्फोटसिद्धि, भावना विवेक, मीमांसानुक्रमणिका आदि प्रमुख हैं।

ब्रह्मसिद्धि पर विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में शोध हुए हैं और हो भी रहे हैं। जिनमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका से एलेन थ्रेसर की पीएचडी थीसिस विद्वत जनों में खास स्थान रखता है।भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा मंडन मिश्र शंकराचार्य शास्त्रार्थ को यादगार बनाने के उद्देश्य से आज संदर्भ में डाक टिकट के माध्यम से सामने आने से बिहार की समृद्ध विरासत को एक अलग स्थान मिलेगा।

डाक विभाग द्वारा इस महती कार्य को संपन्न करने के लिए अनेकों प्रबुद्ध जनों ने प्रसन्नता व्यक्त की है जिनमे प्रमुख रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के क्षेत्रीय निदेशक रह चुके डॉ फ़णीकांत मिश्र, प्रो उदयनाथ झा अशोक, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, पुरी, उड़ीसा, प्रो पंकज कुमार मिश्र, सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली, श्री उग्रतारा न्यास के उपाध्यक्ष प्रमिल कुमार मिश्र आदि शामिल हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / अजय कुमार