Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत केवल भौगोलिक या राजनीतिक रूप से एक राष्ट्र नहीं है; यह एक सभ्यता और संस्कृति है, जिसकी पहचान हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति में निहित है। भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ केवल व्यक्तिगत या धार्मिक कल्याण का संदेश नहीं है, यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर शांति और समरसता की भावना को भी दर्शाता है। वेदों और उपनिषदों में उल्लिखित ‘द्यौ: शान्ति:, अन्तरिक्ष शान्ति:’ जैसे मंत्र इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय सभ्यता हमेशा विश्व कल्याण और मानव कल्याण को प्राथमिकता देती रही है
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक संबोधन में अवैध घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1951 से 2011 तक हिंदू आबादी का प्रतिशत 84.1% से घटकर 79% हो गया, जबकि मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 9.8% से बढ़कर 14.2% तक पहुंच गया ( केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का आधिकारिक X हैंडल)। 2001-2011 की अवधि में हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर 16.8% थी, जबकि मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर 24.6% थी (जनगणना 2011, भारत सरकार, मंत्रालय आबादी एवं सामाजिक कल्याण)। अमित शाह ने इन आंकड़ों को प्रस्तुत करते हुए इसे अवैध घुसपैठ और वोट बैंक राजनीति से जोड़कर समझाया।
वस्तुत: यहां शाह का कहना है कि अवैध घुसपैठ केवल सीमाओं का सवाल नहीं है। राजनीतिक दलों द्वारा घुसपैठियों को आश्रय देने की नीति ने जनसंख्या संतुलन को प्रभावित किया है। यदि घुसपैठ पर रोक नहीं लगी तो देश ‘धर्मशाला’ बन जाएगा, जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक अखंडता के लिए गंभीर खतरा है। अब बात यहां इसमें हिन्दू सभ्यता और संस्कृति की है, जिसके कारण से भारत की मूल पहचान उसके होने से है। ये सच तो स्वीकारना ही होगा कि हिंदू संस्कृति सिर्फ धार्मिक पहचान नहीं है, यह समाज में नैतिक और आध्यात्मिक दिशा भी प्रदान करती है। ऋषियों द्वारा गाए गए ‘विश्व तक्षु’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ जैसे मंत्र समाज के हर व्यक्ति को यह सिखाते हैं कि अन्य लोगों के सुख और शांति में ही अपना सुख और शांति निहित है इसलिए, जब हिंदू जनसंख्या घटती है, तो यह केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी कमजोर होता हुआ दिखता है।
अमित शाह जब ये कहते हैं कि शरणार्थियों और घुसपैठियों में अंतर है। धार्मिक प्रताड़ना से बचने वाले लोग शरणार्थी हैं और उनका स्वागत भारत हमेशा करेगा, विशेषकर पड़ोसी देशों के प्रताड़ित हिंदुओं का, इसके विपरीत, आर्थिक कारणों से अवैध रूप से आने वाले लोग घुसपैठिये हैं, जिन पर सख्ती से अंकुश लगेगा, तब यह समझलीजिए कि शाह यह पूरी तरह से स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि भले ही भारत का विभाजन धर्म के आधार पर इस्लामवादियों की जिद के चलते हुआ हो, किंतु अखण्ड भारत (1947 पूर्व) के क्षेत्र में यदि कहीं भी हिन्दू जीवन जी रहे व्यक्ति को दिक्कत आएगी तो उसका मूल संरक्षण क्षेत्र भारत ही हो सकता है, ऐसे में उसकी चिंता करना भारत का मूल कर्तव्य है, क्योंकि जो विभाजन हुआ वह उसकी मंशा नहीं थी, ऐसे में उसे इसकी सजा मिले, यह उचित नहीं हो सकता। पर जिन्होंने मजहब को आधार बनाकर भारत को टुकड़ों में बांटा है, वास्तव में उनके लिए शेष भारत अपने दरवाजे खुले नहीं छोड़ सकता।
देखा जाए तो यह नीति न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि सांस्कृतिक अखंडता और हिंदू संस्कृति की सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है। क्योंकि जनसंख्या असंतुलन का महत्व केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है। यह समाज में संरचना और सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित करता है। अमित शाह ने उदाहरण के रूप में झारखंड में जनजातीय आबादी की गिरावट को बांग्लादेश से घुसपैठ से जोड़ा है, इसलिए ही उन्होंने हाई-पावर्ड डेमोग्राफिक मिशन की घोषणा की है ताकि अवैध प्रवासन के व्यापक अध्ययन और नियंत्रण को सुनिश्चित किया जा सके।
अमित शाह की चिंता का केंद्र केवल राजनीतिक नहीं है; यह सांस्कृतिक अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। हिंदू संस्कृति की मूल विशेषता है अहिंसा, सहिष्णुता और सार्वभौमिक कल्याण की भावना। इसके मंत्र ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ और ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय समरसता का भी मार्गदर्शन करते हैं। इस संस्कृति के संरक्षण के बिना भारत की असली पहचान खतरे में पड़ती है। अमित शाह ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों द्वारा अवैध प्रवासियों को संरक्षण देने की नीति से जनसंख्या संतुलन बिगड़ता है और यह देश की सांस्कृतिक पहचान पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, इसलिए भाजपा की नीति ‘डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट’ अवैध घुसपैठियों के नियंत्रण और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
ऐसे में कहना यही होगा कि हिंदू संस्कृति का संरक्षण केवल धार्मिक मुद्दा नहीं है; यह सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। जनसंख्या संतुलन बनाए रखना, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करना और अवैध घुसपैठ पर नियंत्रण रखना एक साथ भारत के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक है। अमित शाह ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची शुद्धिकरण (SIR) प्रक्रिया के माध्यम से अवैध रूप से आए लोगों की पहचान की जाएगी, लेकिन देश में रह रहे मुस्लिमों के अधिकारों पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जाएगा (स्रोत: मतदाता सूची शुद्धिकरण (SIR) प्रक्रिया, चुनाव आयोग, भारत)। दूसरी ओर हिंदू संस्कृति का वैश्विक संदेश मानवता के लिए प्रेरक है। इसके सिद्धांत समाज और राष्ट्र की नैतिक दिशा तय करते हैं। जब भारत में हिंदू जनसंख्या घटती है, तो इसका असर सांस्कृतिक आधार और राष्ट्रीय पहचान पर भी पड़ता है इसलिए यह आवश्यक है कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और हिंदू संस्कृति को संरक्षित किया जाए।
भारत का अस्तित्व केवल भौगोलिक और राजनीतिक नहीं है; यह एक सभ्यता, संस्कृति और धर्म पर आधारित पहचान है। अमित शाह की चिंता कि भारत का भारत बने रहना चाहिए, केवल राजनीतिक बयान नहीं है; यह सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्तित्व की चुनौती है। हिंदू संस्कृति, जो विश्व कल्याण और सर्वे भवंतु सुखिन: की भावना में निहित है, केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है (स्रोत: वेदों और उपनिषदों में उल्लिखित मंत्र, ऋषि परंपरा, भारत)।
कुल निष्कर्ष यह है कि जनसंख्या असंतुलन, अवैध घुसपैठ और वोट बैंक की राजनीति इस संस्कृति और देश की पहचान के लिए खतरा हैं, अत: यह आवश्यक है कि भारत अपने सांस्कृतिक मूल्यों, हिंदू संस्कृति और जनसंख्या संतुलन को संरक्षित करे। जब तक हिंदू संस्कृति जीवित है और उसके मूल सिद्धांतों का पालन होता है, तब तक भारत वास्तव में भारत है। आज सभी ये समझें कि भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक सभ्यता और संस्कृतिपरक पहचान है। इस पहचान की रक्षा करना, जनसंख्या संतुलन बनाए रखना और अवैध घुसपैठियों पर नियंत्रण रखना केवल राजनीतिक आवश्यकता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय कर्तव्य भी है, जिसे हम सभी को मिलकर पूरा निभाना है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी