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जोधपुर, 29 अप्रेल (हि.स.)। दिव्यांग श्रेणियों में ऑटिज्म भी एक चिकित्सकीय कमी का परिणाम है ना कि किसी देवी प्रकोप या आध्यात्मिक दोष का फल। हमें ऐसे बच्चों के साथ विशेष थेरेपी और एजुकेटर के माध्यम से उनकी दिनचर्या को सरल बनाना है। ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों पर सैन्य क्षेत्र की आशा स्कूल में संचालित पाठ्यक्रमों का अवलोकन करने के उपरांत स्पेशल मदर से बात करते हुए एडवोकेट श्वेता देवड़ा ने यह विचार प्रकट किए।
शिक्षा मनोवैज्ञानिक डॉ. बीएल जाखड़ ने प्रकृति के इस दोष को बच्चों की सजा नहीं मानकर अभिभावक द्वारा विशेष प्रयास करके उनकी दिनचर्या को सरल बनाने का आह्वान किया। कर्नल चिन्मय नायर ने आर्मी वाइब्स वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वावधान में संचालित आशा स्पेशल स्कूल के रिसोर्स रूम, गतिविधि कक्ष, हाइड्रो लैब सहित नवीनतम तकनीक का परिचय दिया और भारतीय पुनर्वास परिषद के निर्देशानुसार सैन्य क्षेत्र में संचालित विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अधिगम को सरल बनाने के लिए विभिन्न उपकरणों व शिक्षण गतिविधियों की जानकारी दी। स्पेशल एजुकेटर कोमल शर्मा ने मानसिक विमंदता व ऑटिज्म में भिन्नता को बताया। प्राचार्य सेवादास वैष्णव ने आशा स्कूल की स्थापना से आज तक के 25 वर्षों की विकास यात्रा को बताया तथा विद्यार्थियों की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। वहीं विभिन्न विषयों के विशेष शिक्षाविद सुमित्रा चौधरी, कमलजीत सलूजा, वंदना पारीक, निशा शर्मा, शिखा धवन, दिव्यांशी ने विविध श्रेणियां की दिव्यांगता को परिभाषित किया और उन पर संस्था में किए जाने वाले कामों की रूपरेखा प्रस्तुत की। सैन्य अधिकारी कर्नल चिन्मय नायर ने बताया कि हाल ही में इस विद्यालय में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों को ध्यान में रखकर उपकरणों और भवन को डिजाइन किया गया और उसी अनुरूप इन बच्चों पर कार्य हो रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार/सतीश/संदीप