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ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाली संस्था के प्रतिनिधि मंडल ने पुलिस कमिश्नर को सौंपा ज्ञापन
वाराणसी, 7 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाली संस्था 'सत्या फाउण्डेशन' ने पुलिस कमिश्नरेट के सभी थानों और चौकियों को डेसीबल मीटर प्रदान करने की मांग पुलिस कमिश्नर से की है।
संस्था के संस्थापक सचिव, चेतन उपाध्याय ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो पूरे उत्तर प्रदेश में वाराणसी ऐसा पहला जिला बन जाएगा जहां पर सभी थानों और चौकियों के पास डेसीबल मीटर उपलब्ध होगा। रविवार को चेतन उपाध्याय ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बीते शनिवार को मांगों का ज्ञापन वाराणसी के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल को सौंपा गया। पुलिस कमिश्नर ने संस्था के प्रतिनिधि मंडल से कहा कि इस पर गम्भीरतापूर्वक करेंगे।
क्या होगा डेसीबल मीटर का फायदा?
चेतन उपाध्याय ने बताया कि भारत सरकार के ध्वनि प्रदूषण (विनियमन व नियंत्रण) नियम-2000 (कृपया इसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम - 1986 के साथ जोड़कर पढ़ा जाए) के मुताबिक, रात के समय यानी रात 10 बजे से सुबह 6 बजे की बीच तो साउंड को पूरी तरह से स्विच ऑफ करने का प्रावधान है और इस दौरान साउंड सिस्टम को सीज करने और मुकदमा करने के लिए किसी डेसीबल मीटर की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मगर भारत सरकार के उक्त नियम के अनुसार ही, दिन के लिए भी डेसीबल की ऊपरी सीमा तय है और इसका उल्लंघन होने के कारण लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तेज कंपन के कारण कहीं घर की दीवार गिर जाती है तो कहीं लोगों को हार्ट अटैक आ जाता है। वैसे तो आजकल, दिन के दौरान भी तेज ध्वनि की शिकायत मिलने पर पुलिस मौके पर जाती है, मगर डेसीबल मीटर के अभाव में कई बार कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित नहीं हो पाती। डेसीबल मीटर होने से दिन के दौरान भी तेज आवाज पर रोकथाम और प्रभावी कानूनी कार्रवाई हो सकेगी।
ध्वनि प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए मांग
चेतन उपाध्याय ने बताया कि देखने में आ रहा है कि रात दस बजे के बाद पुलिस के ध्वनि प्रदूषण बंद कराने के बाद, कुछ 'मजबूत' लोग दोबारा से ध्वनि प्रदूषण करना शुरू कर दे रहे हैं। जो सीधे-सीधे देश के कानून और पुलिस के इकबाल को चुनौती देने जैसा है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि लोगों को यह लगता है कि इसमें कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। अतः यह आवश्यक है कि रात 10 बजे के बाद पुलिस टीमें गठित करके इलाकेवार पुलिस टीम स्वत: संज्ञान लेते हुए, साउंड सिस्टम को ज़ब्त करके पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत मुकदमा करने के कार्य को मिशन मोड में करें।
उन्होंने बताया कि उत्सव या धार्मिक कार्यक्रम करने वाला हर व्यक्ति / धार्मिक स्थल / संगठन एक दिन की बात कह कर ध्वनि की दिन की डेसीबल सीमा या /और रात की समय सीमा का उल्लंघन करने को जायज सिद्ध करना चाहता है। और कुछ पुलिसकर्मी भी, 'एक दिन की बात' वाले तर्क को स्वीकार कर, मांगलिक और धार्मिक कार्यक्रमों में, कथित तौर पर 'धीमी आवाज' में साउंड सिस्टम को बजाने की अलिखित अनुमति दे देते हैं और आसपास की जनता परेशान होती रहती है, जबकि रात 10 से सुबह 6 बजे तक साउंड को 100 फीसद स्विच आफ करने का नियम है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी