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भोपाल, 16 अप्रैल (हि.स.)। राघोघढ़ के महाराजा दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने इस बार राजगढ़ लोकसभा चुनाव से उम्मीदवार बनाया है। वह 33 साल बाद अपने इस गढ़ से चुनाव मैदान में हैं। उन्होंने मंगलवार को राजगढ़ कलेक्ट्रेट पहुंचकर अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। वहीं, राजगढ़ सीट पर पिछले एक दशक से भाजपा का कब्जा है। पिछले दो चुनावों से भाजपा ने यहां से लगातार जीत हासिल की है और अब तीसरी बार भाजपा ने राजगढ़ से मौजूदा सांसद रोडमल नागर को मैदान में उतारा है। ऐसे में दिग्विजय सिंह के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती होगी।
दरअसल, राजगढ़ लोकसभा सीट पर 30 साल से दिग्विजय सिंह के परिवार का प्रभाव रहा है, लेकिन 2014 में सियासी समीकरण बदल गए और भाजपा ने इस सीट पर पहली बार जीत का स्वाद चखा।। फिर अगले 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर में कांग्रेस चारों खाने चित्त हो गई। साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने नारायण सिंह आमलाबे को लगातार दूसरी बार मैदान उतारा था, जबकि भाजपा ने रोडमल नागर को टिकट दिया था। नागर ने इस चुनाव में राघोगढ़ किले (कांग्रेस) के उम्मीदवार को दो लाख 28 हजार के बड़े अंतर से हराया। इसके बाद 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने मोना सुस्तानी पर भरोसा जताया तो भाजपा ने फिर रोडमल नागर को मैदान में उतारा। इस चुनाव में भाजपा और रोडमल नागर और ताकतवर होकर उभरे और किले की नींव भरभराकर ढह गई, क्योंकि नागर ने रिकार्ड चार लाख 31 हजार के बड़े अंतर से मोना सुस्तानी करारी शिकस्त दी थी।
पिछले दोनों चुनावों में दिग्विजय सिंह ने जिन दो उम्मीदवारों पर हाथ रखा, उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे में अपना गढ़ बचाने के लिए इस बार दिग्विजय सिंह खुद अपना किला बचाने के लिए मैदान में हैं, जबकि भाजपा से लगातार दो बार सांसद निर्वाचित हुए रोडमल नागर लगातार तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। दिग्विजय सिंह राजगढ़ से 33 साल बाद चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें भोपाल से मैदान में उतारा था, लेकिन भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने उन्हें करारी शिकस्त दी थी।
राजगढ़ में दिग्विजय सिंह का 1980 से प्रभाव रहा है। साल 1984 में वे यहां से पहली बार सांसद चुने गए थे। इसके बाद 1989 का लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखने पड़ा था, लेकिन दो साल बाद 1991 में हुए चुनाव में वह फिर सांसद चुने गए। इसके बाद उन्हें राजगढ़ से मौका नहीं मिला। कांग्रेस ने 1994 के उपचुनाव और 1996, 1998, 1999 व 2004 के चुनाव में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को मैदान में उतारा और उन्हें जीत हासिल की, जबकि 2009 में दिग्विजय सिंह के करीबी नारायण सिंह सांसद चुने गए। इस तरह दिग्विजय सिंह का यहां लंबे समय प्रभाव रहा, लेकिन इसके बाद 2014 से राजगढ़ सीट पर भाजपा का कब्जा है।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/संजीव