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कानपुर, 13 मार्च (हि.स.)। कोलेस्ट्राल कम करने के लिए बाजार में नियासिन जैसी सैंकड़ों दवाइयां प्रचलित हैं, लेकिन यह देखा जा रहा है कि कुछ मरीजों पर इसका साइड इफेक्ट भी पड़ता है। यानी उसके शरीर की त्वचा लालिमा और खुजली होने लगती है। इसको लेकर आईआईटी कानपुर में शोध कार्य हुआ जो सफल भी रहा। यह शोध कार्य प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में भी प्रकाशित हो गया।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के जैविक विज्ञान और बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व वाली टीम ने यह जानने का प्रयास किया कि नियासिन जैसी कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं आणविक स्तर पर कैसे काम करती हैं। टीम अत्याधुनिक क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) तकनीक का उपयोग करते हुए नियासिन और अन्य संबंधित दवाओं द्वारा सक्रिय प्रमुख लक्ष्य रिसेप्टर अणु को दृष्टिगोचर करने में सफल हुई । यह शोध, जिसमें कम दुष्प्रभावों के साथ कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए नई दवाओं के विकास की संभावना है। प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।
प्रोफेसर शुक्ला ने बताया कि नियासिन आमतौर पर खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने के लिए निर्धारित दवा है। हालांकि कई रोगियों में दवा के दुष्प्रभाव होते हैं जैसे कि त्वचा की लालिमा और खुजली, जिसे फ्लशिंग प्रतिक्रिया कहा जाता है। इससे मरीज अपना इलाज बंद कर देते हैं और उनके कोलेस्ट्रॉल स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसको लेकर शोध कार्य शुरु हुआ और आण्विक स्तर पर नियासिन के साथ रिसेप्टर अणु GPR109A के तालमेल का विजुलाइजेशन कराया गया। इस प्रक्रिया से नई दवाओं के निर्माण के लिए आधार तैयार किया गया जो अवांछनीय प्रतिक्रियाओं को कम करते हुए प्रभावकारिता बनाए रखेगी। यह शोध कोलेस्ट्रॉल के लिए संबंधित दवाएं और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी अन्य स्थितियों के लिए दवाएं विकसित करने में भी मदद करेगा।
आईआईटी के निदेशक प्रो. एस. गणेश ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण सफलता है क्योंकि यह दवा-रिसेप्टर इंटरैक्शन के बारे में हमारी समझ को गहरा करती है और बेहतर चिकित्सीय एजेंटों के डिजाइन के लिए नए रास्ते खोलती है। यह उपलब्धि अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से वास्तविक दुनिया की स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के प्रति हमारे समर्पण का उदाहरण देती है। नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशन के लिए इस शोध की स्वीकृति आईआईटी कानपुर में अनुसंधान एवं विकास की गुणवत्ता और उच्च मानकों का प्रमाण है।
प्रोफेसर अरुण के शुक्ला की टीम में डॉ. मनीष यादव, परिश्मिता सरमा, जगन्नाथ महाराणा, मणिसंकर गांगुली, सुधा मिश्रा, अन्नू दलाल, नशराह जैदी, सायंतन साहा, गार्गी महाजन, विनय सिंह, सलोनी शर्मा और डॉ. रामानुज बनर्जी शामिल थे।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय/बृजनंदन