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ग्वालियर, 12 दिसंबर (हि.स.)। संगीत नगरी ग्वालियर में संगीत सम्राट तानसेन की स्मृति में इस साल 15 से 19 दिसम्बर तक सिटी ऑफ म्यूजिक ग्वालियर में शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश और दुनिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव तानसेन समारोह का आयोजन होने जा रहा है। इस साल समारोह का शताब्दी वर्ष है। संगीत सम्राट तानसेन से जुड़ा एक प्रसंग यहां उल्लेखनीय है, जिसमें दो बिछड़े मित्रों का फिर से आत्मीय मिलन हुआ।
प्रसंग यह है कि वल्लभ संप्रदाय के मूर्धन्य संत एवं कृष्ण भक्ति की गायकी में निपुण सूरदास और गान महर्षि तानसेन के बीच बचपन में ही घनिष्ठ मित्रता हो गई थी। दोनों ने अपने जन्म स्थान ग्वालियर में ध्रुपद गायकी का ककहरा सीखा। सूरदास ने ग्वालियर के तत्कालीन महान संगीतज्ञ बैजू बाबरा से गुरु-शिष्य परंपरा के तहत ध्रुपद गायकी सीखी थी।
समय के साथ सूरदास ने बृज की राह पकड़ी तो तानसेन राजा रामचंद्र की राजसभा बांधवगढ़ होते हुए आगरा पहुँचे और मुगल बादशाह अकबर के दरबार में नवरत्न में शामिल होकर सुर सम्राट तानसेन के रूप में प्रतिष्ठित हुए। पावन बृज की धरा पर कृष्ण भक्ति में डूबे सूरदास को वल्लभाचार्य ने अष्टछाप में सम्मिलित कर प्रतिष्ठित स्थान दिया।
कालान्तर में वृद्धावस्था को प्राप्त कर चुके सूरदास एक दिन खड़ाऊ से खटपट करते और हाथ में लकुटिया थामे फतेहपुर सीकरी में मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पहुँचे। तानसेन के जरिए अकबर ने सूरदास की महिमा सुन रखी थी। अकबर ने उन्हें जागीर और प्रतिष्ठित राजकीय पद देने का आग्रह किया। मगर सूरदास ने इस प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। सूरदास ने कृष्ण भक्ति के कुछ पद गाकर अकबर को सुनाए और यह बूढ़ा बाबा खटपट करता हुआ पुन: गोकुल पहुँच गया।
तानसेन की बृज यात्रा के दौरान बचपन में बिछड़े मित्रों सूरदास और तानसेन का आत्मीय मिलन हुआ था। उस समय तानसेन ने भाव विभोर होकर सूरदास की प्रशंसा में एक दोहा सुनाया। जिसके बोल थे –किधौं सूर कौ सर लग्यौ, किधौं सूर की पीर ।किधौं सूर कौ पद लग्यौ, तन-मन धुनत सरीर ॥यह दोहा सुनकर सूरदासजी कहाँ रुकने वाले थे। उन्होंने बड़े मार्मिक भाव से अपने बचपन के मित्र गान मनीषी तानसेन की प्रशंसा करते हुए कालजयी दोहा गाकर सुनाया। जिसके बोल थे –विधना यह जिय जानिकैं, सेसहिं दिए न कान ।धरा मेरू सब डोलते, सुन तानसेन की तान ॥तानसेन की बृज यात्रा के बारे में विन्सेण्ट स्मिथ ने अपनी पुस्तक “अकबर द ग्रेट मुगल” में उल्लेख किया है। साथ ही डॉ. हरिहर निवास द्विवेदी द्वारा रचित “तानसेन” पुस्तक में भी सूरदास और सुर सम्राट तानसेन की मित्रता का उल्लेख मिलता है।--------------
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर