दिनकर जयंती : राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा ''जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध''
बेगूसराय, 24 सितंबर (हि. स.)। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जयंती समारोह के दसवें दिन रविवार को दिनक
कार्यक्रम


कार्यक्रम


कार्यक्रम


कार्यक्रम


बेगूसराय, 24 सितंबर (हि. स.)। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जयंती समारोह के दसवें दिन रविवार को दिनकर पुस्तकालय सिमरिया के सभागार में ''दिनकर और हमारा समय'' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित किया गया। राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विकास समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जनपद से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के साहित्यकार शामिल हुए।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर प्रो. ईश मिश्रा ने कहा कि आज सत्ता चुप रहने को बोल रही है, अगर बोलो, तो भजन गाओ। ऐसे में दिनकर की कविता और अधिक प्रासंगिक हो उठती है। क्योंकि जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उसका भी अपराध। कुरुक्षेत्र का पूरा संदेश युद्ध विरोधी है, क्योंकि युद्ध हमेशा विनाशकारी होता है।

उन्होंने कहा कि जन साधारण भारतीय एकता की बात को सुनना चाहता है, भारतीय संस्कृति का इतिहास संस्कृतियों का इतिहास है। राष्ट्रवाद प्राचीन विचारधारा नहीं है, भारत का राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी था। भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा को जोड़ने के लिए धर्म का राष्ट्रवाद की शुरुआत हुई। साम्प्रदायिकता राष्ट्रवाद नहीं है। हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रवाद की बात करना संविधान पर आघात है। जब भी मुसीबत आती है, तो दिनकर की पंक्ति याद आ जाती है।

दूरदर्शन कोलकात्ता जोन के अपर महानिदेशक रहे वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु रंजन ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर अपनी भावनाओं को बड़ी ईमानदारी से रखते हैं। जो सम्मान दिनकर को गांव में मिल रहा है, ऐसा कम देखने के लिए मिलता है। उन्होंने कहा कि जो कविता लोगों के जुबान पर आ जाए समझो वो कवि कितने बड़े होंगे और दिनकर के सैकड़ो कविताएं लोगों के जुबान पर है। दिनकर पर और काम करने की जरूरत है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि जिस तरह बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर को लोग याद करते हैं। उसी तरह हिंदी पट्टी में लोग दिनकर को याद करते हैं। दिनकर संघर्ष करना सिखाते हैं, वे हमेशा सत्ता से सवाल करते रहे हैं। दिनकर का राष्ट्रवाद महात्मा गांधी का राष्ट्रवाद है। भारत को राजनेताओं से अधिक साहित्यकारों एवं कवियों ने समझा है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के प्रो. रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर की जन्मस्थली सिमरिया की धरती कोई सामान्य धरती नहीं, यह मिथिला का काशी है। धर्म, अध्यात्म और संस्कृति की धरती है। सिमरिया राष्ट्र स्तर पर नवजागरण का केंद्र है, जिससे पूरा देश प्रेरणा ले रहा है। आज देश में ऐसी कोई दीवारें नहीं जहां विज्ञापन नहीं है। लेकिन सिमरिया के दीवारों पर विज्ञापन नहीं, दिनकर की कविताएं है। देश में जब-जब धर्म पर संकट आया है, तो धर्म के खिलाफ धर्म ही सामने आया है। दिनकर का राष्ट्रवाद गांधी का राष्ट्रवाद है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. भगवान प्रसाद सिन्हा, संचालन दिनकर पुस्तकालय के सदस्य राजेश कुमार एवं स्वागत पत्रकार प्रवीण प्रियदर्शी ने किया। अतिथियों ने राष्ट्रकवि दिनकर एवं उनके पुत्र केदारनाथ सिंह के तैल चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शरुआत की। मौके पर पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, साहित्यकार अशांत भोला, कमल वत्स, श्याम नंदन निशाकर, रामनाथ सिंह, विनोद बिहारी, अमरदीप सुमन एवं दीनबंधु सहित अन्य उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा