- दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'स्वत्व: पूर्ण स्वराज की दिशा' का हुआ समापन
भोपाल, 24 सितंबर (हि.स.)। पद्मश्री से सम्मानित कपिल तिवारी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा विभिन्न धाराओं का संगम है। इस परंपरा में ज्ञान न तो प्राचीन है और न ही नवीन है। यह सनातन है। भारतीय ज्ञान हमें सिखाता है कि जमीन को न जीता जाता है, न ही हम इसे हार सकते हैं। भारत जमीन जीतने वाली संस्कृति का देश नहीं है। जैसे ही हम इसे मातृभूमि कहते हैं, तभी हम इसके विजयी भाव से मुक्त हो जाते हैं।
तिवारी रविवार को भोपाल के रवीन्द्र भवन में स्वराज संस्थान संचालनालय, धर्मपाल शोधपीठ और दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'स्वत्व: पूर्ण स्वराज की दिशा' दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सनातन का अर्थ है जो हर समय नया है। भारत की ज्ञान परंपरा सनातन रही है। भारत के संयुक्त परिवारों का टूटना एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक घटना है और समाज जिस रास्ते पर चल पड़ा है उसमें अब एकल परिवारों का बचना भी मुश्किल लगता है।
उन्होंने कहा कि जनजातीय संस्कृति में प्रकृति के लिए कोई शब्द ही नहीं है, क्योंकि जनजातीय संस्कृति प्रकृति के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। तिवारी ने कहा कि जनजातियों के बीच किसी तरह की राज्य व्यवस्था की आवश्यकता नहीं रही है। जनजातीय लोग सामुदायिक अनुशासन में रहते हैं। कार्यक्रम का संचालन दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने किया। आभार स्वराज संस्थान के उप संचालक संतोष कुमार वर्मा ने माना।
आज रिवर्स माइग्रेशन की आवश्यकता: तिवारी
'वैश्विक समस्याओं के समाधान का भारतीय मार्ग' विषय पर आयोजित पंचम तकनीकी सत्र में लेखक एवं पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने रिवर्स माइग्रेशन के लिए आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि हम गांव की ओर लौटें। उन्होंने कहा कि धर्मपाल एवं दत्तोपंत ठेंगड़ी बीसवीं सदी के ऋषि थे। ठेंगड़ी द्वारा दिखाया गया 'थर्ड वे' ही एकमात्र वे' है, जो भारत ही नहीं, विश्व को मार्ग दिखाएगा। इस सत्र में प्रो. अल्पना त्रिवेदी ने कहा कि भारत के अपने प्रश्न हैं और अपने उत्तर है, हमको उनकी ओर देखना चाहिए। प्राचीनकाल में गुरुकुलों में विद्यार्थी 20 से अधिक विषयों का अध्ययन करते थे।
भारत की संस्कृति टोलरेंस की नहीं, एक्सेप्टेंस की है: अरुण आनंद
'दत्तोपंत ठेंगड़ी का भारत बोध' विषय पर आयोजित तृतीय तकनीकी सत्र में स्वतंत्र लेखक अरुण आनंद ने कहा कि भारत के इतिहास को समझने के लिए भारतबोध होना आवश्यक है। भारत की संस्कृति टोलरेंस की नहीं, एक्सेप्टेंस की रही है। इस सत्र के मुख्य वक्ता पूर्व कुलपति प्रो संजीव शर्मा ने कहा कि प्रश्न पूछना आवश्यक है, उसी से समाधान होता है और सत्य का अनुभव होता है। इस सत्र की अध्यक्षता मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष प्रो भरत शरण सिंह ने की।
आधुनिकीकरण का अर्थ पश्चिमीकरण नहीं: महाजन
'आधुनिकता, स्वदेशी एवं सर्वसमावेशी भारत' विषय पर आयोजित चतुर्थ तकनीकी सत्र में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो अश्वनी महाजन ने कहा कि आधुनिकीकरण का अर्थ पश्चिमीकरण नहीं है, लेकिन देश में इस तरह की भ्रांति पैदा हो गई कि जो भी पश्चिम से आया है वह आधुनिक है। इसे आगे ले जाने का कार्य ही आधुनिकता है। उन्होंने कहा कि 1991 में दुनिया में जो आर्थिक नीति लागू हुई उसकी वजह से देश 30 साल पीछे चला गया। भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण के अर्थव्यवस्था के कारण यूरोप कर्ज में डूबा हुआ है। औद्योगिक क्रांति के कारण आज भारत कई क्षेत्रों में सिरमौर बना हुआ है।
इस सत्र के मुख्य वक्ता अर्थशास्त्री तुलसी टावरी ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में अमेरिका में 30 प्रतिशत लोग गरीब हो गए हैं। आम अमेरिकी नागरिक 50-55 वर्ष की आयु में अपने बच्चों की शिक्षा के लिए दो नौकरियां कर रहा है। आज हम हवाई जहाज में सीट खरीद रहे हैं, यह अशुभ लाभ की अर्थव्यवस्था है। इस व्यवस्था के कारण विश्व में पिछले 200 सालों में अमीर और गरीब की बीच असमानता बढ़ी है और पूंजी का एकत्रीकरण हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो खेम सिंह डहेरिया ने सत्र की अध्यक्षता की।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश