जम्मू, 24 सितंबर (हि.स.)। नटरंग की संडे थिएटर सीरीज में रविवार को यहां नटरंग में राहुल सिंह के निर्देशन में दंगों पर गुलज़ार की साहित्यिक रचनाओं का एक कोलाज 'ख़राशें' की दिल छू लेने वाली प्रस्तुति प्रस्तुत की गई। इस नाटक ने सांप्रदायिक सद्भाव और जबरदस्त देशभक्ति की भावना को बखूबी जगाया। प्रसिद्ध कवि और लेखक गुलज़ार द्वारा लिखित एक ही कथानक पर तीन अलग-अलग कहानियाँ प्रस्तुत की गईं। श्रृंखला में प्रदर्शित कहानियों में 'रावी पार', 'हिल्सा' और 'खुदा हाफ़िज़' शामिल हैं।
'रवि पार' विभाजन के समय के भारत की कहानी है। दोनों पक्षों के धार्मिक कट्टरपंथियों ने अपने धर्म में विश्वास न करने वाले किसी भी व्यक्ति पर कोई दया नहीं दिखाई, विभाजन के बाद दर्शन सिंह और उनका परिवार पास के एक गुरुद्वारे में शरण लेते हैं। तमाम उथल-पुथल के बीच 'शाहनी' ने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया लेकिन पैदा हुए जुड़वाँ बच्चों में से एक बहुत कमजोर था और उसके बचने की संभावना बहुत कम थी। इसी बीच दर्शन सिंह को भारत से एक विशेष ट्रेन के आने की खबर मिलती है जो लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए आयी है।
दर्शन सिंह हड़बड़ी में स्टेशन पहुंचता है और उसे पता चलता है कि ट्रेन में बहुत भीड़ है, किसी तरह वह ट्रेन की छत पर अपने और अपने परिवार के लिए जगह ढूंढता है। रात होने और ट्रेन के स्टेशन छोड़ने के बाद दर्शन सिंह ने देखा कि उनमें से एक बच्चा अब हिल नहीं रहा था और उसे ठंड लग रही थी, तब उसे एहसास हुआ कि बच्चा मर चुका है। जैसे ही ट्रेन रावी नदी के ऊपर से गुजरी, किसी ने दर्शन सिंह के कान में फुसफुसाया कि उसे मृत बच्चे को नदी में फेंक देना चाहिए। असहाय महसूस करते हुए वह चुपचाप बच्चे को 'शाहनी' से दूर ले जाता है और नदी में फेंक देता है। बच्चे को फेंकते समय वह रोने की आवाज सुनता है और चौंककर केवल 'शाहनी' की ओर मुड़ता है और पाता है कि वह अभी भी मृत बच्चे को गले लगा रही है।
दूसरी कहानी 'हिल्सा' एक बंगाली जोड़े के घर से शुरू होती है जहां 'कंचन' मछली साफ कर रही है जिसे उन्हें दोपहर के भोजन में खाना है, 'भिभूति', उसका पति खाली हाथ बाजार से वापस लौटता है क्योंकि उसे अखबार नहीं मिल सका। किसी तरह अखबार भी उनके घर पहुंच गया, जो दंगों की वीभत्स घटनाओं की खबरों और तस्वीरों से भरा हुआ था। एक दिल दहला देने वाली कहानी में एक लड़की की बलात्कार के बाद मृत्यु हो गई जब वह गर्भवती थी। लेखक ने लड़की के दर्द को बहुत ही सूक्ष्मता और खूबसूरती से उस 'हिल्सा' मछली के दर्द से जोड़ा है जिसे तब पकड़ा गया था जब वह गर्भवती थी।
तीसरी कहानी 'खुदा हाफ़िज़' दो घबराए हुए दंगा पीड़ितों के बारे में है जो एक टूटी-फूटी जगह पर शरण ले रहे हैं। एक-दूसरे से अनजान होने के कारण शुरुआती दिक्कतें आती हैं लेकिन आतंक अंततः उनके बीच दोस्ती बढ़ाने में मदद करता है। नाटक में शानदार अभिनय करने वाले नटरंग कलाकारों में ब्रिजेश अवतार शर्मा, सुमित बंदराल, अमित ब्राह्मी, शेरयार सलारिया, वंदना ठाकुर शामिल थे।
हिन्दुस्थान समाचार/राहुल/बलवान