देहरादून, 10 जून (हि.स.)। नीति आयोग के सदस्य और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. वीके सारस्वत ने कहा कि आज ऊर्जा के विकल्पों पर काम करना होगा। कार्बन उत्सर्जन के दुष्परिणामों के संकेत पर्यावरण पर स्पष्ट दिख रहे हैं।
शनिवार को पद्मभूषण डॉ. विजय कुमार सारस्वत ने ग्राफिक एरा पर्वतीय विश्वविद्यालय में आयोजित डॉ. वीके सारस्वत एंडोमेंट लेक्चर समारोह को संबोधित करते हुए यह बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि फॉसिल फ्यूल पर आधारित ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के दुष्परिणामों का प्रभाव पर्यावरण पर साफ दिख रहा है।
प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. सारस्वत ने कहा कि फॉसिल फ्यूल आधारित ऊर्जा के संसाधनों से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड, ग्रीन हाउस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। भारत में प्रदूषण की समस्या के कारणों में थर्मल पावर प्लांट और औद्योगिक गतिविधियों के बाद सबसे ज्यादा परिवहन क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जित होता है। जिसके दुष्परिणाम क्लाइमेट पर साफ दिख रहे हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के संकेत मिल रहे हैं। विश्व के वैज्ञानिक मंचों पर इस पर चिंतन किया जा रहा है।
डॉ. सारस्वत ने कहा कि इन समस्याओं और चुनौतियों को समझते हुए कई सकारात्मक लक्ष्य रखे गए हैं। जिनमें कार्बन फ्यूल पर निर्भरता और इंटेंसिटी को कम करना और रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन बढ़ाने के लिए देश ने प्रतिबद्धता जताई है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, शोधकर्ताओं और शैक्षणिक संस्थाओं को आगे आकर इस दिशा में काम करना होगा। हमें अपनी ऊर्जा उत्पादन की रणनीति बदलनी होगी। ज्यादा से ज्यादा प्रदूषण रहित रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन करना होगा। साथ ही हमें परिवहन सेक्टर के लिए अल्टरनेट क्लीन फ्यूल के साथ-साथ इलैक्ट्रिक, हाइब्रिड इंजन के क्षेत्र में और अधिक इनोवेटिव रिसर्च करनी होगी।
डॉ. सारस्वत ने छात्र-छात्राओं से कंबशन साईंस से जुड़े अपने अनुभव भी साझा किये। उन्होंने कंबशन साईंस के क्षेत्र में की बढ़ती मांग और इस में उपयोग होने वाले नवीनतम आईओटी, एआई जैसी तकनीक के लिए ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी में एक कंबशन साइंस रिसर्च सेंटर की स्थापना का भी सुझाव दिया। ताकि अलग-अलग इंजीनियरिंग के क्षेत्र के छात्र-छात्राएं और शिक्षक कंबशन साइंस से जुड़ सकें।
विश्वविद्यालय के केपी नौटियाल ऑडिटोरियम में आयोजित इस समारोह में ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. कमल घनशाला ने कहा कि डॉ. सारस्वत का अनुभव और शोध कार्य का क्षेत्र विशाल है। उनके व्यक्तित्व से छात्र-छात्राओं ,शोधकर्ताओं और शिक्षकों को प्रेरणा मिलेगी।
प्रख्यात वैज्ञानिक और ब्रह्मोस एयरोस्पेस के पूर्व सीईओ और प्रबंध निदेशक डॉक्टर सुधीर मिश्रा ने ब्रह्मोस मिसाइल के विकास और उसकी चुनौतियां व समाधान विषय पर अपनी प्रस्तुति दीं। उन्होंने भारत के मिसाइल कार्यक्रमों के इतिहास पर प्रकाश डाला। साथ ही भारत और रूस के सहयोग से विकसित दुनिया की सबसे घातक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस प्रोजेक्ट के विकास की जानकारी दी।
अशोका लीलैंड कंपनी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉ. कृष्णन सदगोपान ने कहा कि वायु प्रदूषण जैसी समस्याओं और बढ़ती फ्यूल एनर्जी कंजप्शन के लिए हमें सभी तरह के मोटर इंजनों की तकनीकों में भी बदलाव करना होगा, जिससे कार्बन उत्सर्जन की समस्या के साथ-साथ ऊर्जा की खपत भी कम हो। अपने प्रेजेंटेशन में उन्होंने नए विकसित इंजनों के मॉडलों पर भी विस्तार से चर्चा की।
ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो डॉ संजय ,अमेरिका की बेलकन कंपनी के एडवाइजर पी के पांडे ने कंबशन इंस्टिट्यूट की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉक्टर नरपिंदर सिंह, ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के प्रो. चांसलर प्रोफेसर डॉ. जे कुमार, डीजी प्रोफेसर डॉ. एचएन नागराजा, प्रो. वीसी, प्रोफेसर डॉ. आर गौरी,सी एल आर आई के साइंटिस्ट डॉ. पी शनमुगुण, एनएएल बंगलौर के प्रिंसिपल साइंटिस्ट, डॉ. वेंकट एस आयंगर,आईआईटी बॉम्बे के प्रो. डॉ सुदर्शन कुमार,वीआईटी वेल्लोर के प्रो. ई पोर्पथम,आईआईटी मद्रास के डॉ. वी रामानुजाचार्य, आईआईएस बेंगलुरु के प्रो. आर वी रविकृष्ण, के साथ-साथ दोनों विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार डीन, डायरेक्टर, शिक्षक ओर छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश