भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत में छिपा है विश्वगुरु का सूत्र
कानपुर, 10 जून (हि.स.)। पं. दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में चल रहे विश्व हिन्दू परिषद के शि
भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत में छिपा है विश्वगुरु का सूत्र


भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत में छिपा है विश्वगुरु का सूत्र


कानपुर, 10 जून (हि.स.)। पं. दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में चल रहे विश्व हिन्दू परिषद के शिक्षा वर्ग में शनिवार को अवध प्रान्त के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह भदौरिया पहुंचे।

उन्होंने कहा कि डेढ़ लाख वर्ग किलोमीटर में फैले हिमालय हिंदुकुश क्षेत्र से लगभग 16 देशों की व्यवस्था जुड़ी है, उनको प्राण मिलते हैं। संस्कृति का आविर्भाव ही तिब्बत क्षेत्र से हुआ, जलवायु वर्षा नदियों आदि महत्वपूर्ण जीवनदायी घटक हिमालय क्षेत्र के कारण ही अनुकूल वातावरण बनाते हैं। एक ओर सांस्कृतिक विकास हो अथवा दूसरा आर्थिक विकास हो, दोनों में ही हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा परंपराओं को जानना आवश्यक है।

नरेन्द्र सिंह ने कहा कि वेदों की रचना, पुराण उपनिषद अध्यात्म धर्म ग्रंथ, उनपर टीकाएं टिप्पणियां, प्रश्न आदि से अध्यात्म को समझने की स्वतंत्रता। साथ ही योग प्राणायाम ध्यान से मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य का संतुलन दोनों ही का हमारे ऋषियों मनीषियों ने समुचित ध्यान रखा। शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ गुरु रामदास जी ने देशभर में 25 हजार हनुमान मंदिर बनवाए, उनमें संचालित होने वाले अखाड़े युवाशक्ति को अनुशासित संस्कारित और सबल बनाने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। स्वयं शिवाजी महाराज ने ही नौसेना तथा छापामार युद्ध की शैलियां विकसित कर सीमित संसाधनों से ही दुश्मनों को धूल चटा दी।

उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से भी भारत की संपन्नता किसी से छिपी नहीं थी, यूं ही नहीं विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत सबसे बड़ा साझीदार रहा है। सोने की चिड़िया बोले जाने वाले भारत के तक्षशिला नालंदा आदि आवासीय विश्वविद्यालयों में विश्व के हजारों छात्र शिक्षा लेने आते थे। बख्तियार खिलजी जैसे मतांधों ने जब नालंदा को जलाया तो महीनों पुस्तकालय की 90 लाख से अधिक पांडुलिपियां पुस्तकें आदि जलती रहीं। परंतु उस ज्ञान की परंपराएं गांव गांव गुरुकुलों के माध्यम से जीवित रहीं।

अतीत में देखने पर पता चलता है कि भारत की सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था महाजनपदों में नीतियों पर आधारित चलती थी, जिसमें राजा प्रजा को जनार्दन मानकर व्यवस्था अपने गुरुओं के मार्गदर्शन में चलाता था। आज भी आवश्यक है कि हम अपने गौरवशाली अतीत से सीखें तथा उसे अपने वर्तमान में उतारकर समृद्ध शक्तिशाली भारतवर्ष बनाकर पुनः विश्वगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करें।

उल्लेखनीय है कि कानपुर प्रान्त के 21 जिले तथा अवध प्रान्त के 25 जिलों एवं नेपाल से कुलमिलाकर लगभग 300 शिक्षार्थी भाई बहनों का बौद्धिक तथा शारीरिक प्रशिक्षण चल रहा है। वर्ग में क्षेत्र तथा दोनों प्रान्तों के पदाधिकारी भी उपस्थित हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/मोहित/राजेश