(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) जब रामायण पर धारावाहिक फिल्म बनाने का प्रयास हुआ
अजय कुमार शर्मा टीवी धारावाहिक रामायण की लोकप्रियता से कौन परिचित न होगा। रामानंद सागर द्वारा निर
मशहूर टीवी धारावाहिक रामायण का दृश्यः फोटो-सोशल मीडिया


अजय कुमार शर्मा

टीवी धारावाहिक रामायण की लोकप्रियता से कौन परिचित न होगा। रामानंद सागर द्वारा निर्मित निर्देशित इस धारावाहिक की पहली कड़ी 25 जनवरी 1987 को दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित हुई थी। उस समय इसकी लोकप्रियता का आलम यह था कि जब यह धारावाहिक प्रसारित होता था तो मानो पूरे देश में कर्फ्यू लग जाता था। इसकी अंतिम कड़ी 31 जुलाई 1988 को प्रसारित हुई। कुल 78 एपिसोड दिखाए गए थे। बाद में वीडियो कैसेट के रूप में भी यह दुनिया में व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित हुआ और विश्व के पांच महाद्वीपों के 53 देशों में इसका प्रसारण हुआ। बीबीसी के अनुसार रामायण के पास 6500 लाख दर्शक होने का विश्व कीर्तिमान है। आज भी इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। कोरोना के पहले चरण में लगे लॉक डाउन में भी इसका प्रसारण खूब लोकप्रिय हुआ।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रामायण को धारावाहिक फिल्म (उस समय तक देश में टीवी की शुरुआत नहीं हुई थी) के रूप में बनाने का प्रयास बहुत पहले 1945 में ही किया गया था। इस प्रयास के पीछे थे बरेली के प्रख्यात कथावाचक राधेश्याम और रांची के एक सेठ राधाबाबू । राधेश्याम कथावाचक होने के साथ ही पारसी थियेटर के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक भी थे। उन्होंने शंकुतला , श्री सत्यनारायण फिल्में भी लिखीं थी । रांची में एक कथा के दौरान वहां की प्रसिद्ध फर्म चुन्नीलाल गणपतिराम के एक सेठ राधा बाबू (राधाकृष्ण बुधिया) ने उन्हें रामायण कथा को कई भागों में फिल्म के रूप में बनाने का प्रस्ताव रखा। राम वनवास, लंका युद्ध, भरत मिलाप, लव कुश कांड जैसे 8 भागों की योजना बनाई गई। माया मोह से विरक्त हो चले राधेश्याम जी ने पहले इसके लिए काफी मना किया पर राधा बाबू के इस प्रस्ताव पर कि दोनों लोग लाभ की राशि धर्मार्थ कार्यों के लिए खर्च कर देंगे वह इसके लिए तैयार हो गए।

रामजन्म शीर्षक से पहले भाग की तैयारी शुरू हुई। बंबई (अब मुंबई) आकर राधेश्याम जी पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर, केदार शर्मा,और विजय भट्ट के संपर्क में आए। सबने उन्हें इसका खर्च 6 लाख से 15 लाख के बीच बताया। कोल्हापुर और पूना के स्टूडियो से भी राधेश्याम जी ने बात की। बंबई में प्रख्यात अभिनेता चंद्रमोहन ने रावण की भूमिका निभाने की स्वीकृति दी साथ ही इसे चंदूलाल शाह के स्टूडियो में सस्ते में शूट करवाने का आश्वासन भी दिया। इस बीच राधा बाबू के विमर्श के बाद एक बार कोलकाता में भी खर्च का हिसाब लिया जाए की बात तय हुई।

राधेश्याम जी इसके लिए कोलकाता पहुंचे। इस यात्रा में उनके साथ प्रख्यात संपादक सत्यदेव विद्यालंकार भी थे। बाद में गोविंद बल्लभ पंत, नरोत्तम व्यास भी उनके साथ जुड़े। यह 1946 का समय था। मुंबई यात्रा के दौरान उनके बड़े पुत्र घनश्याम एक बार फिर बीमार पड़े और वह कोलकाता की यात्रा स्थगित कर बरेली आ गए। 1947 के आरंभ में उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर के गंगा किनारे रहकर राम जन्म की कथा लिखना प्रारंभ किया। अप्रैल 1947 में कथा संवाद लिखकर वे कोलकाता के लिए रवाना हुए। इस यात्रा में उन्होंने अपनी खोज अभिनेता फिदा हुसैन नरसी को भी अपने साथ लिया था। वहां भारत लक्ष्मी स्टूडियो के मालिक बाबूलाल चोखानी, देवकी बोस, काली फिल्म कंपनी आदि से मिलने के बाद तीन लाख का बजट फाइनल किया गया और निर्देशक के रूप में रामेश्वर शर्मा का चयन हुआ।

कोलकाता प्रवास में राधेश्याम जी को खांसी और कफ के साथ खून भी आया और इस बीच वहां हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। अपने पुत्र बलराम के साथ वे तुरंत बरेली लौट आए । उनके पुत्र घनश्याम फिर बीमार पड़े। आखिर वह घड़ी आ गई जिससे राधेश्याम जी लगातार डर रहे थे। तीन अक्टूबर, 1947 को उनके बड़े पुत्र घनश्याम नहीं रहे जो उस समय मात्र 37 वर्ष के थे। अपने कमजोर दिल के कारण अपने पुत्र की मृत्यु की विभिन्न रस्मों में राधेश्याम जी शामिल नहीं हुए। उनकी पत्नी पुत्र वियोग में अंधी हो गई । इस बीच राधाबाबू और रामेश्वर शर्मा भी परलोक सिधार गए और इस तरह रामायण पर एक क्रमबद्ध धारावाहिक फिल्म बनाने की योजना अधूरी ही रह गई।

चलते-चलते

रामानंद सागर ने रामायण के चौदह से अधिक प्रारूपों को पढ़ा, शोध किया, समझा, जिया और अंततः संत तुलसीदास के 'रामचरितमानस' का मुख्य स्रोत के रूप में अनुकरण करने का निर्णय किया था ।अपने अगले कदम के रूप में रामानंद सागर ने देश के प्रख्यात विद्वानों, शोधकर्ताओं, ज्ञानियों, पंडितों, चिंतकों की एक समिति का गठन किया, जिसमें डॉ. शिव मंगल सिंह सुमन- उपाध्यक्ष, कालिदास अकादमी, उज्जैन, डॉ. एल.वी. सिंघवी (डॉ. लक्ष्मीमहल सिंघवी ) - न्यायशास्त्री और यू. के. में भारतीय उच्चायुक्त, विद्वान् रामायण व्याख्याता, लेखक पं. चंद्रशेखर पांडेय-प्रोफेसर भवन्स कॉलेज आदि सम्मिलित थे।

रामानंद सागर ने दूरदर्शन के लिए जब रामायण धारावाहिक का निर्माण किया था तो आधार ग्रंथ के रूप में राधेश्याम कथावाचक की लोकप्रिय राधेश्याम रामायण का उल्लेख तो किया ही था उनके नाम का आभार भी प्रकट किया। लेकिन कुछ समय बाद ही राधेश्याम कथावाचक के परिवार से विवाद के कारण उन्होंने क्रेडिट से उनका नाम हटा दिया था।

(लेखक, वरिष्ठ कला एवं संस्कृति समीक्षक हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद