अध्यात्म का अर्थ स्वभाव में स्थित होना : अवधेशानंद
-श्रीमद्भगवद्गीता में योग परम्परा विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ हरिद्वार, 01 जून (हि.स.)। योग विज्ञा
अध्यात्म का अर्थ स्वभाव में स्थित होना : अवधेशानंद


-श्रीमद्भगवद्गीता में योग परम्परा विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ

हरिद्वार, 01 जून (हि.स.)। योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय और विश्वगीताप्रथिष्ठानम के श्रीमद्भगवद्गीता में योग परम्परा विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि अध्यात्म का अर्थ स्वभाव में स्थित होना होता है। किसी भी प्रकार की कृत्रिमता हमें स्वाभाव से दूर ले जाती है।

स्वामी अवधेशानंद गिरि श्रीमद्भागवद गीता का निरंतर स्वाध्याय, चिंतन-मनन हमें निज स्वभाव के समीप लेकर आता है। और यही महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में कही है। कर्म की कुशलता से तात्पर्य है कि कर्म को पूरी लगन, तन्मयता के साथ, उल्लास और उमंग के साथ संपन्न करें। प्रत्येक कर्म को उत्सव बना लें, लेकिन कर्म आसक्ति का कारण न बनें। आगे उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि श्रीमद्भागवद्गीता योग शास्त्र है, यह योग परम्परा का संवाहक ग्रन्थ है। यह हमें अज्ञान अवसाद से दूर ले जाने में सहायक है। अतः इसका स्वाध्याय अपने जीवन में निरंतर करते रहना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि प्रो. ईश्वर भारद्वाज ने कहा कि गीता का स्वाध्याय दैनिक जीवन में प्रत्येक योगाभ्यासी को करना चाहिए। तभी जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बुराइयों से बचे रहना संभव है। विश्वगीता प्रथिष्ठानम के अध्यक्ष प्रो. जवाहर लाल द्विवेदी ने कहा कि हमारी संस्था विश्वगीताप्रथिष्ठानम सम्पूर्ण विश्व में गीता स्वाध्याय के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता को संविधान में राष्ट्रग्रन्थ घोषित कराने तथा इसकी शिक्षाओं को सामान्य शिक्षा पद्धति में सम्मिलित कराने के उद्देश्य से विश्वगीताप्रतिष्ठानम् सम्पूर्ण विश्व में गीता ज्ञान के प्रचार-प्रसार और तदनुसार आचरण करने की प्रेरणा देने के लिए विभिन्न प्रकार की शैक्षणिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय गतिविधियों का सञ्चालन करता है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर हम इस प्रकार आयोजन सतत रूप से भविष्य में करते रहेंगे।

कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. सोमदेव शतांशु ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयोग, कर्म योग और भक्तियोग का प्रमुख ग्रन्थ है। बिना मार्गदर्शक के भी इसके स्वाध्याय से हम ज्ञान का प्रकाश पा सकते हैं। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों से 350 से भी अधिक प्रतिभागी इसमें सम्मिलित हुए। 80 से अधिक शोध पत्र का वाचन विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये हुए प्रतिभागियों के द्वारा प्रस्तुत किये गए। इस अवसर पर आमंत्रित सभी अतिथियों और वक्ताओं का आभार प्रो. सुनील कुमार, कुलसचिव गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने किया।

इस अवसर पर प्रो राजेश्वर मिश्र, डॉ. विष्णु नारायण तिवारी, प्रो विनय विद्यालंकार, प्रो. अरुण कुमार, प्रो. एम एम तिवारी, प्रो. नवनीत, डॉ. विपिन कुमार डॉ. अजय मालिक, शिव कुमार चौहान, डॉ. निष्कर्ष शर्मा, डॉ. राजीव शर्मा, मुकेश कपिल, हेमंत सिंह नेगी, डॉ. सचिन पाठक, मोहन, जोगेंद्र उदित कुमार, धर्मेन्द्र आदि उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/ रजनीकांत/रामानुज