मुसलमानों के नहीं कट्टरपंथियों के दुश्मन थे वीर शिवाजी
हिन्दवी साम्राज्य दिवस (02 जून) पर विशेष भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज
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हिन्दवी साम्राज्य दिवस (02 जून) पर विशेष

भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज को सभी जानते हैं। बहुत से लोग उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट कहते हैं तो कुछ लोग मराठा गौरव। जबकि उन्हें भारतीय गणराज्य का सबसे बड़ा महानायक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में एक हिन्दू परिवार में हुआ। कुछ लोग 1627 में उनका जन्म बताते हैं। उनका पूरा नाम शिवाजी भोंसले था। पिता शाहजी और माता जीजाबाई के पुत्र थे वीर शिवाजी महाराज। उनका जन्म स्थान पुणे के पास स्थित शिवनेरी का दुर्ग है।

राष्ट्र को विदेशी, कट्टरपंथी और आततायी राज्य-सत्ता से स्वाधीन करा कर सारे भारत में एक सार्वभौम स्वतंत्र शासन स्थापित करने का एक सफल प्रयत्न स्वतंत्रता के अनन्य पुजारी वीर प्रवर शिवाजी महाराज ने किया था। इसी प्रकार उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है। महाराणा प्रताप की तरह वीर शिवाजी राष्ट्रीयता के जीवंत प्रतीक एवं परिचायक हैं।

कुछ नासमझ शिवाजी पर मुस्लिम विरोधी होने का दोषारोपण करते रहे हैं, पर यह सत्य इसलिए नहीं क्योंकि उनकी सेना में तो अनेक मुस्लिम सेनानी थे ही, अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदार भी थे। वास्तव में शिवाजी का सारा संघर्ष उस कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था, जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले लोगों ने अपना रखा था।

1674 की ग्रीष्म ऋतु में शिवाजी ने धूमधाम से सिंहासन पर बैठकर स्वतंत्र प्रभुसत्ता की नींव रखी। दबी-कुचली हिन्दू जनता को उन्होंने भयमुक्त किया। हालांकि ईसाई और मुस्लिम शासक बल प्रयोग के जरिए बहुसंख्य जनता पर अपना मत थोपते, अतिरिक्त कर लेते थे, जबकि शिवाजी के शासन में इन दोनों संप्रदायों के आराधना स्थलों की रक्षा ही नहीं की गई बल्कि धर्मान्तरित हो चुके मुसलमानों और ईसाइयों के लिए भयमुक्त माहौल भी तैयार किया। शिवाजी ने अपने आठ मंत्रियों की परिषद के जरिए छह वर्ष तक शासन किया। उनके प्रशासन तंत्र में कई मुसलमान भी शामिल थे।

शिवाजी वो राजा थे जो सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्होंने अपने प्रशासन में मानवीय नीतियाँ अपनाई, जो किसी धर्म पर आधारित नहीं थी। स्वयं शिवाजी के दादा मालोजीराव भोसले ने सूफी संत शाह शरीफ के सम्मान में अपने बेटों को नाम शाहजी और शरीफजी रखा था। उनकी थलसेना और जलसेना में सैनिकों की नियुक्ति के लिए धर्म कोई मानदंड नहीं था और इनमें एक तिहाई मुस्लिम सैनिक थे। उनकी नौसेना की कमान सिद्दी संबल के हाथों में थी और सिद्दी मुसलमान उनकी नौसेना में बड़ी संख्या में थे। जब शिवाजी आगरा के किले में नजरबंद थे तब कैद से निकल भागने में जिन दो व्यक्तियों ने उनकी मदद की थी उनमें से एक मुसलमान था, उनका नाम मदारी मेहतर था। उनके गुप्तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे और उनके तोपखाने की कमान इब्राहिम ख़ान के हाथों में थी। शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उन्होंने ‘हज़रत बाबा याकूत थोरवाले’ को ताउम्र पेंशन देने का आदेश दिया था तो फ़ादर एंब्रोज की भी उस वक्त मदद की जब गुजरात स्थित उनके चर्च पर आक्रमण हुआ था।

शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए पूजास्थल का ठीक उसी तरह निर्माण करवाया था जिस तरह से उन्होंने अपनी पूजा के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था। शिवाजी ने अपने सैनिक कमांडरों को ये स्पष्ट निर्देश दे रखा था कि किसी भी सैन्य अभियान के दौरान मुसलमान महिलाओं और बच्चों के साथ कोई दुर्व्यवहार न किया जाए। मस्जिदों और दरगाहों को समुचित सुरक्षा दी गई थी। उनका ये भी आदेश था कि जब कभी किसी को कुरान की प्रतिलिपि मिले तो उसे पूरा सम्मान दिया जाए और मुसलमानों को सौंप दिया जाए।

बसाई के नवाब की बहू को शिवाजी के द्वारा सम्मान देने की कहानी बड़ी प्रसिद्ध है। जब उनके सैनिक लूट के सामान के साथ नवाब की बहू को भी लेकर आए थे तो शिवाजी ने उस महिला से पहले तो माफी मांगी और फिर अपने सैनिकों की सुरक्षा में उसे उनके महल तक वापस पहुंचवाया। जब अफ़ज़ल ख़ान ने उन्हें अपने तंबू में बुलाकर मारने की योजना बनाई थी तो शिवाजी को एक मुसलमान, रुस्तमे जमां ने आगाह कर दिया था, जिन्होंने शिवाजी को एक लोहे का पंजा अपने साथ रखने की सलाह दी थी।

वीर शिवाजी का एक धेय था, कट्टरपंथियों से मुल्क आजाद हो। सभी के धर्म, कर्म, संस्कृति और परंपरा का सम्मान हो। जोर के बल पर धर्म परिवर्तन न किया जाये। स्वतंत्र पूजा का अधिकार हो। पर अजब विडंबना है इस देश की जिन्होंने मंदिरों को तोड़ा है, लूटा है, बहन बेटियों के साथ दुराचार किया है उसे आज़ाद भारत के इतिहासकारों ने महिमामंडित किया। भले ही सेक्युलरिज्म का पाठ 1975 से लिखित पढ़ाया जा रहा है पर सदियों से यह हर भारतीय के खून में है। शिवाजी ने कट्टरपंथियों से 200 से ज्यादा लड़ाइयां जीती हैं पर कहीं भी उनके मजहब के प्रतीक को नुकसान नहीं किया, ध्वस्त नहीं किया, लूटपाट नहीं की। इससे उलट औरंगजेब जैसे कट्टरपंथियों ने हिन्दू धर्मस्थल तोड़े, हिन्दू बहन-बेटियों को बेआबरू किया, तलवार की नोंक पर इस्लाम कबूल कराया है, जिन्होंने इस्लाम कबूल नहीं किया उनके सिर धड़ से अलग कर दिए गए।

'जाणता राजा' वीर शिवाजी की गाथा है जो बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र का लोकप्रिय मंचन है, जो अब देश के विभिन्न कोनों में भी देखा जा रहा है। लाखों लोगों ने इस मंचन को सराहा है।इस नाटक के मंचन को देख महसूस होगा कि वर्तमान में हम शिवाजी के उस काल को साक्षात देख रहे हैं। यह शिवाजी को मुस्लिम विरोधी नहीं बल्कि कट्टरपंथियों के विरोध में प्रस्तुत करता है।

‘शिवाजी मुस्लिम विरोधी थे’ यह धारणा राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई है। इतिहासकार सरदेसाई न्यू हिस्ट्री ऑफ मराठा में लिखते हैं, ‘शिवाजी को किसी भी प्रकार से मुसलमानों के प्रति नफरत नहीं थी, ना तो एक संप्रदाय के रूप में और ना ही एक धर्म के रूप में।’

ये सब शिवाजी ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जो अपनाया उसे दर्शाता है और उनका प्राथमिक लक्ष्य अपने राज्य की सीमा को अधिक से अधिक क्षेत्र तक स्थापित करना था, देश को कट्टरपंथियों से मुक्त कराना था। उन्हें मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी दर्शाया जाना वास्तविकता का मजाक उड़ाना है।

हिन्दुस्थान समाचार/