भदेक के हत्यारिन भरखा को पहचान की दरकार
- भदेक स्थित भरखा में 25 मई 1858 को स्वतंत्रता की क्रांति काे लेकर अंग्रेजों ने किया था नरसंहार - कि
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- भदेक स्थित भरखा में 25 मई 1858 को स्वतंत्रता की क्रांति काे लेकर अंग्रेजों ने किया था नरसंहार

- किसी भी सरकारी गजट और इतिहास में नहीं मिलती है भदेक की शौर्य गाथा

- आज भी भरखा के पास जाने से कतराते हैं स्थानीय ग्रामीण

औरैया, 25 मई (हि.स.)। ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों का गवाह भदेक का हत्यारिन भरखा (जंगल और खेतों के निकलने वाले पानी का नाला) आज भी अपनी शहादत को लेकर पहचान का मोहताज है। लोगों की मांग है कि इस जगह पर स्मारक की स्थापना की जाए, जिससे आमजन को यहां के इतिहास की सही जानकारी हासिल हो सके।

पड़ोसी जनपद जालौन के यमुना तट पर बसे गांव भदेक पूर्व में राजा परीक्षत की रियासत हुआ करती थी। जब प्रथम स्वतंत्रता की अलख जगी, तब अंग्रेजों ने जलीय मार्ग को क्रांतिकारियों से बचाने के लिए समीपवर्तीय रियासतों पर आक्रमण कर क्रांति को दबाने की योजना तय की, जिसके चलते सबसे पहले भदेक को निशाना बनाया। तब अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता से बचने के लिए यहां की आम जनता, महिलाएं और बच्चे गांव की सीमा पर स्थित नाले में जा छिपे, मगर अंग्रेजों ने अपनी दमनकारी नीति के चलते नाले में छिपे लोगों की जानकारी पर उन सब की हत्या कर दी। तब से उस नाले को स्थानीय और प्रचलित भाषा में हत्यारिन भरखा नाम से जाना जाने लगा।

गांव निवासी अवधेश अवस्थी बताते हैं कि अंग्रेजी सेना ने पूरे गांव की रियासत को नेस्तनाबूद करने के लिए तोपों का भी इस्तेमाल किया था। जिसके अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं। लोग कालातीत में हुए इस नरसंहार की भयावता को लेकर आज भी जाने से डरते आ रहे हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सरकारों को भदेक गांव को शहादत की कोई पहचान नहीं दी।

रात को रोने की आती हैं आवाजें

ग्रामीणों की माने तो आज भी भरखा से रोने और सिसकने की आवाजें आती हैं। जिसके चलते शाम के बाद कोई भी वहां नहीं जाता है।

25 मई को हुआ था नरसंहार

सरकारी गजट और इतिहास के मिलान से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह नरसंहार 25 मई 1858 को हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई के समर्थन का परिणाम आज भी भदेक को पहचान नहीं दिला पाया।

आजादी की जंग में भदेक के रणबांकुरों व यमुना तट पर स्थिति हत्यारिन भरखा की शौर्य गाथा

हत्यारिन के भरखा का नाम सुनकर आप चौंक गये होगें। यह शहादत का तीर्थ स्थल जनपद औरैया के समीपवर्ती जिले जालौन के भदेक गांव के पास से गुजरने वाली यमुना किनारे स्थिति है। इस स्थान का इतिहास 1857 की क्रान्ति से जुड़ा है। भदेक के देशभक्त राजा परीक्षत ने कालपी युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध में साथ दिया था। इसीलिए कालपी युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई की हार के बाद अंग्रेजी सेना ने 25 मई 1858 के लगभग भदेक रियासत पर हमला कर दिया। भदेक छोटी रियासत के होने के साथ साथ कालपी युद्ध में यहां की सेना भी छिन्न-भिन्न हो गयी थी। फिर भी राजा ने अंग्रेजों के आक्रमण का जवाब दिया। फिरंगी सेना से युद्ध करते हुए यहां के कई यौद्धा शहादत को प्राप्त हो गये। राजा परीक्षत ने जब देखा कि वह अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने वाले हैं तो स्वाभिमानी राजा ने स्वयं ही मृत्यु का वरण करके आजादी की बलिवेदी पर अपने आपको बलिदान कर दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने भदेक गांव में भीषण तबाही मचायी। राजा परीक्षत का किला तोपों से ध्वस्त कर दिया। कुछ बच्चे और महिलायें अंग्रेजों के कहर से बचने के लिए यमुना किनारे एक गहरे नाले में छिप गये। फिरंगी सेना को किसी प्रकार उनके छिपे होने की भनक लग गयी। अंग्रेजों ने वहां जाकर सभी महिलाओं और बच्चों का कत्ल कर दिया। अंग्रेजों का यह कुकृत्य इतिहास के किसी पन्ने में दर्ज नहीं हुआ। स्थानीय ग्रामीणों में आज भी हत्यारिन के भरखा को लेकर तरह-तरह की कहानियां प्रचलित है। वह यहां पर दिन में भी जाने से डरते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनील कुमार/मोहित