आईआईटी कानपुर ने जी-प्रोटीन युग्मित रिसेप्टर्स के संचार की खोज की
-नई दवा की खोज का किया मार्ग प्रशस्त कानपुर (कान्हापुर), 24 मई (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
आईआई टी कानपुर ने जी-प्रोटीन युग्मित रिसेप्टर्स के संचार की किया खोज


-नई दवा की खोज का किया मार्ग प्रशस्त

कानपुर (कान्हापुर), 24 मई (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (आईआईटी कानपुर) में जैविक विज्ञान और बाॅयोइंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर अरुण के शुक्ला के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने एक पूर्व अज्ञात तंत्र को उजागर किया है। दवा के एक महत्वपूर्ण वर्ग को नियंत्रित करता है, जिसे जी प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स के रूप में जाना जाता है। यह जानकारी बुधवार को आईआईटी कानपुर के मीडिया प्रभारी गिरीश पंत ने दी।

गिरीश पंत ने बताया कि इस खोज के न केवल हमारे शरीर में सेलुलर सिग्नलिंग के मूलभूत तंत्र को समझने के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं, बल्कि इसमें कई मानव रोग स्थितियों के लिए उन्नत दवा की खोज को सुविधाजनक बनाने की भी क्षमता है। क्राॅयोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) नामक अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय जर्नल मॉलिक्यूलर सेल के मई अंक में अध्ययन प्रकाशित किया गया है।

प्रोफेसर अरुण के शुक्ला का कहना है कि हमारे शरीर में कोशिकाएं एक झिल्ली से घिरी होती हैं जो एक विशेष प्रकार के प्रोटीन अणुओं को आश्रय देते हैं। उन्हें रिसेप्टर्स के रूप में जाना जाता है। यह रिसेप्टर्स हमारे शरीर के लिए विभिन्न रासायनिक और हार्मोन को महसूस करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। विशिष्ट शारीरिक प्रतिक्रियाओं को सक्रिय करके तदनुसार प्रतिक्रिया करते हैं। रिसेप्टर्स का एक विशेष वर्ग जी प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स के रूप में जाना जाता है। हार्ट फंक्शन, रक्तचाप, मानसिक विकार और हमारे व्यवहार को विनियमित करने में शामिल है। कई दवाएं जैसे कि अवसाद, दिल की विफलता, कैंसर और उच्च रक्तचाप के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं इन रिसेप्टर प्रोटीन को संशोधित करके काम करती हैं।

जीपीसीआर के कार्य को हमारे शरीर में प्रोटीन के एक अन्य फैमिली द्वारा नियंत्रित किया जाता है जिसे अरेस्टिन कहा जाता है। यह जीपीसीआर से जुड़ते हैं और उनके कार्य और शारीरिक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। शोधकर्ताओं ने अब अत्याधुनिक तकनीक, क्राॅयोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग करके जीपीसीआर और अरेस्टिन की क्रॉस-टॉक को बहुत विस्तार से देखा है। इसने टीम को एक नए तंत्र की खोज करने की अनुमति दी है जो हमारे शरीर में जीपीसीआर के कार्य को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार है।

दवाओं के दुष्प्रभावों को कम करने का मार्ग हुआ प्रशस्त

प्रोफेसर शुक्ला ने बताया कि वर्तमान की दवाओं के दुष्प्रभावों को कम करके उन्हें बेहतर बनाने के लिए नए मार्ग प्रशस्त किए हैं। कई मानव रोग स्थितियों के लिए नई दवा की खोज का अवसर भी प्रदान करता है। इस अध्ययन में जांच किए गए रिसेप्टर्स में से एक केमोकाइन रिसेप्टर में स्तन कैंसर की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं। जबकि पूरक रिसेप्टर्स की भी यहां जांच की गई है जो रूमेटोइड गठिया जैसे सूजन संबंधी विकारों के इलाज के लिए महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं। शोधकर्ता अब पशु मॉडल में अध्ययन सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के सहयोग से नई दवा की खोज की दिशा में काम कर रहे हैं।

इस अध्ययन का नेतृत्व प्रो. अरुण के. शुक्ला ने किया है। टीम के सह-लेखक पीएचडी छात्र जगन्नाथ महाराणा, परिष्मिता शर्मा और शिरशा साहा, पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो डॉ. रामानुज बनर्जी और डॉ. मनीष यादव और प्रोजेक्ट फेलो सायंतन साहा और विनय सिंह हैं। इस अध्ययन में सहयोगी के रूप में स्विट्जरलैंड में बेसल विश्वविद्यालय से डॉ. मोहम्मद चामी भी शामिल हैं। यह अध्ययन डीबीटी वेलकम ट्रस्ट इंडिया एलायंस और साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित है।

हिन्दुस्थान समाचार/राम बहादुर/दिलीप