एक ऐतिहासिक दिन 19 अप्रैल, जब तीन महान क्रांतिकारियों ने चूमा फांसी का फंदा
- अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, विनायक नारायण देशपाँडे और कृष्ण गोपाल कर्वे का बलिदान - षड्यंत्रकारी नासिक
महान क्राँतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, विनायक नारायण देशपाँडे और कृष्ण गोपाल कर्वे 


- अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, विनायक नारायण देशपाँडे और कृष्ण गोपाल कर्वे का बलिदान

- षड्यंत्रकारी नासिक कलेक्टर को गोली मारी थी

-रमेश शर्मा

भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में अनंत वीरों का बलिदान हुआ है । कुछ के तो नाम तक नहीं मिलते, और जिनके नाम मिलते हैं उनका विवरण नहीं मिलता। नासिक में ऐसे ही क्राँतिकारियों का एक समूह था, जिनमें तीन को फाँसी और दो को आजीवन कारावास का वर्णन मिलता है। इसी समूह में तीन बलिदानी अनंत लक्ष्मण कान्हेरे, कृष्ण गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपाँडे को 19 अप्रैल, 1910 को फांसी दी गई।

उन दिनों नासिक में एक कलेक्टर जैक्सन था । कथित तौर पर वह संस्कृत और भारतीय ग्रंथों का जानकार था । पर वस्तुतः वह चर्च के लिए कार्य कर रहा था। उसने प्रचारित किया कि वह पूर्व जन्म में संत था। इस प्रचार की आड़ में उसने भारतीय जनजातियों और अनुसूचित समाज के बीच कार्य करना शुरू कर दिया। वह ग्रंथों पर आधारित कथाओं के उदाहरण देता और उन्हे प्रभावित करने का प्रयत्न करता । उसके लिये अधिकारियों की एक टीम उसका प्रचार का कार्य कर रही थी। इससे क्षेत्र में सामाजिक दूरियाँ बढ़ने लगीं और धर्मान्तरण होने लगा ।

उन्हीं दिनों मतान्तरण रोकने और समाज में स्वत्व जागरण के लिये गणेश दामोदर सावरकर (सावरकर भाइयों में सबसे बड़े भाई) ने युवकों का एक समूह तैयार किया। इसमें अनंत कान्हेरे, श्रीकृष्ण कर्वे और विनायक देशपांडे जैसे अनेक ओजस्वी युवक थे जो सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण में लग गये । गणेश दामोदर सावरकर और इस टोली के काम से कलेक्टर सतर्क हुआ । उन्हीं दिनों गणेश दामोदर सावरकर ने कवि गोविंद की राष्ट्रभाव वाली रचनाएँ संकलित कीं और सोलह रचनाओं का का संकलन प्रकाशित कर दिया । कलेक्टर को यह पुस्तक बहाना लगी और राष्ट्रद्रोह के आरोप में गणेश दामोदर सावरकर को बंदी बना लिया गया।

यही नहीं पुलिस ने पुस्तक की तलाश का बहाना बनाकर उन सभी घरों पर दबिश दी जो उसके मतान्तरण षड्यंत्र से समाज को जाग्रत करने में लगे थे । तब युवकों की इस टोली ने नासिक को इस कलेक्टर से मुक्त करने की योजना बनाई। अनेक सार्वजनिक और प्रवचन के आयोजनों में प्रयास किया पर अवसर हाथ न लगा ।

अंततः अवसर मिला 21 दिसम्बर, 1909 को। कलेक्टर जैक्सन की शान में एक मराठी नाटक का मंचन किया जा रहा था । कलेक्टर के कार्यों से ब्रिटिश सरकार और चर्च प्रसन्न था । कलेक्टर जैक्सन को पदोन्नत कर आयुक्त बनाकर मुम्बई पदस्थ करने के आदेश हो गये । विजयानंद थियेटर में नाटक का यह मंचन उसी उपलक्ष्य में था । यही अंतिम अवसर है यह सोचकर श्रीकृष्ण कर्वे, विनायक देशपांडे और अनंत कान्हेरे थियेटर में पहुँचे। योजना बनी कि गोली अनंत कान्हेरे चलायेंगे और शेष दोनों कवर करेंगे । उनके पास भी रिवाल्वर थे । तीनों अपने साथ विष की पुड़िया भी लेकर गये थे ।

योजना थी कि यदि पिस्तौल में गोली न बची तो विषपान कर लेंगे ताकि पुलिस जीवित न पकड़ सके । नाटक का मंचन पूरा हुआ, लोग बधाई देने कलेक्टर के आसपास जमा हुए । अवसर का लाभ उठाकर ये तीनों क्रान्तिकारी भी समीप पहुँचे। श्रीकृष्ण कर्वे और देशपांडे ने जैक्सन को उठाकर नीचे पटका और उसके सीने पर पैर रखकर अनंत ने चार गोलियां उसके सीने में उतार दीं। जैक्सन तुरंत मार गया। वहाँ उपस्थित दो अधिकारियों पलशिकर और मारुतराव ने अनंत पर अपने डंडों से हमला किया। आसपास के अन्य लोग भी टूट पड़े। इससे तीनों को न तो स्वयं पर गोली चलाने का अवसर मिला और न विषपान करने का । तीनों वहाँ उपस्थित कलेक्टर समर्थक अधिकारियों के हमले से बुरी तरह घायल हो गये । उन्हे बंदी बना लिया गया । इस घटना की गूँज लंदन तक हुई । तीनों क्रान्तिकारियों की आयु अठारह से बीस वर्ष थी ।

इनमें से अनंत कान्हेरे का जन्म 7 जनवरी, 1892 को रत्नागिरी जिले के खेत तालुका के एक छोटे से गांव अयानी में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा निजमाबाद में और उनकी अंग्रेजी शिक्षा औरंगाबाद में हुई। 1908 में कान्हेरे औरंगाबाद लौट आए जहां उन्हें गंगाराम नामक एक मित्र ने क्राँतिकारी आँदोलन से जोड़ा था । दूसरे क्राँतिकारी कृष्णजी गोपाल कर्वे का जन्म 1887 में हुआ था । उन्होंने बीए ऑनर्स क पूरा किया था मुंबई विश्वविद्यालय में एलएलबी में प्रवेश ले लिया था। वे नासिक में अभिनव भारत से जुड़े थे । जैक्सन की हत्या की योजना बनी तो इसमें शामिल हो गये । तीसरे क्राँतिकारी का परिचय बहुत ढूँढने पर भी न मिला पर फाँसी की सूची में उनका नाम है ।

बॉम्बे कोर्ट में मुकदमा चला और 29 मार्च, 1910 को इन तीनों क्राँतिकारियों को हत्या का दोषी पाकर फाँसी की सजा सुनाई गई और 19 अप्रैल 1910 को ठाणे जेल में तीनों को फाँसी दे दी गई। अधिकारियों ने तीनों के शव परिवार को भी नहीं सौंपे। जेल में ही जला दिए और अवशेष समन्दर में फेंक दिये । जैक्सन हत्याकांड में दो अन्य क्रान्तिकारियो को आजीवन कारावास मिला । जिनकी जेल की प्रताड़नाओं से बलिदान हुआ। शत शत नमन इन क्राँतिकारियों को ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)

हिन्दुस्थान समाचार/ मयंक चतुर्वेदी/जितेंद्र तिवारी