मोटा अनाज: भविष्य की मांग पूरी करने की बनानी होगी रणनीति
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा 2018 में जब मोटे अनाज को पोषक अनाज घोषित कर प्रमोट करने का अभियान चलाया ग
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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

2018 में जब मोटे अनाज को पोषक अनाज घोषित कर प्रमोट करने का अभियान चलाया गया, तब पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे कि संयुक्त राष्ट्र संघ मोटे अनाज के महत्व को समझते हुए 2023 को इंटरनेशनल मिलेट ईयर घोषित कर देगा। यह भी नहीं लगता था कि दुनिया के देश इतनी जल्दी मोटे अनाज के प्रति जागरूक होंगे। दरअसल जिस तरह हमारे खानपान के चलते एक के बाद एक बीमारियों से दो-चार होने लगे हैं, ऐसे में मोटा अनाज बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है। पर जिस तरह से मोटे अनाज को प्रमोट करने का अभियान चलाया गया है तो देश-विदेश में मोटे अनाज का गुणगान होने लगा है। मोटापा, डायबिटीज, विटामिन्स की डेफिसिएंसी, बढ़ती हार्ट डिजिज, एनिमिया, डाइजिनेशन प्राब्लम, कैल्शियम की कमी या यों कहें कि अच्छा खाने के बाद भी खोखले होते शरीर के कारण केमिकल्स पर आधारित दवाओं से अलग हटकर अब लोग मोटे अनाज में विकल्प खोजने लगे हैं। हालांकि यह तो शुरुआत है और सफर लंबा और कठिनाइयों से भरा है। हमें अभी से भविष्य की मांग पूरी करने की रणनीति बनानी होगी।

दरअसल साठ के दशक तक हमारे यहां खासतौर से गांवों का मुख्य भोजन मोटा अनाज ही रहा है। 1960 के दशक में बार-बार अकाल के चलते खाद्यान्न संकट के विकल्प के रूप में हरित क्रांति का दौर आरंभ हुआ और ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना पहली प्राथमिकता बनी। यह समय की मांग भी थी तो आवश्यकता भी। इस तरह से गेहूं को प्रमुख विकल्प माना गया। इसके बाद एक ओर गेहूं के आयात, गेहूं के उत्पादन बढ़ाने और उत्पादन बढ़ाने के नाम पर रासायनिक उर्वरकों का दौर शुरू हुआ। रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रचार तंत्र को एग्रेसिव किया गया और आज हमारे कृषि वैज्ञानिकों, नीति नियंताओं और अन्नदाता की मेहनत से देष खाद्यान्न को लेकर आत्मनिर्भर बन गया है। यहां तक कि कोरोना त्रासदी से लेकर अब तक जरूरतमंद लोगों तक निःशुल्क खाद्यान्न की उपलब्धता बड़ा सहारा बनी है। हरित क्रांति समय की मांग थी और आज भी है। हालांकि आज दुनिया के देश तेजी से ऑर्गेनिक खेती और परंपरागत खेती पर जोर देने लगे हैं। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से उर्वरा शक्ति प्रभावित होने के साथ ही जहरीले कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव को भी देखा जाने लगा है।

मोटा अनाज एक समय हमारा प्रमुख भोजन होता था। आज भी दुनिया में कुल उत्पादित मोटे अनाज में हमारे देश की भागीदारी 41 प्रतिशत है। राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश आदि प्रमुख राज्य है। आज मोटे अनाज के निर्यात में भी भारत प्रमुख देश है। हमारे देश से गए साल 2.69 करोड़ डॉलर का मोटा अनाज अमेरिका को निर्यात किया गया है। मोटे रूप से 13 प्रकार के अनाज को मोटे अनाज के रूप में माना जाता है। इनमें से प्रमुख रूप से 8 अनाज बाजरा, रागी, कुटकी, संवा, ज्वार, कंगनी, चेना और कांदो को माना जाता है। 2020 में देश में 1.2 करोड़ मैट्रिक टन उत्पादन रहा है। मोटे अनाज को प्रमोट करने के विश्वव्यापी प्रयास आरंभ हो गए हैं। युवा एंटरप्रोन्योर स्टार्टअप्स के माध्यम से आगे आ रहे हैं। लोगों को मिलेट रेसिपी भाने भी लगी है। लोग इनके महत्व को समझने लगे हैं।

एक समय था जब घर पर मेहमान आने पर ही गेहूं की चपाती बनती थी। मोटा अनाज धीरे-धीरे पर्दे के पीछे चला गया और मोटे अनाज का उत्पादन और उपयोग दोनों ही प्रभावित हुए। यह सब तो तब रहा जब कि बाजरा आदि मोटे अनाज के खेती करने पर कम पानी और कम लागत आती है तो दूसरी और मोटा अनाज प्राकृतिक स्वास्थवर्धक तत्वों से भरपूर रहे हैं और इनकी उपयोगिता को आज वैज्ञानिक सिद्ध कर रहे हैं।

दरअसल हम जिस तरह से विकास के नाम पर प्रकृति से दूर होते गए वैसे वैसे ही प्राकृतिक तत्वों से भरपूर चीजें हमारी प्राथमिकता से दूर होती गई। अन्यथा प्रकृति स्वयं तय करती रही है। और मौसम के अनुसार फसलों के पैदावार तय रही है। मौसम के अनुसार खेती होने से फसलों के तासीर भी पैदावार पक कर बाजार में आने के बाद उसके उपयोग से तय होती रही है। मोटा अनाज खासतौर से बाजरा खरीफ की प्रमुख फसल है। अब आसानी से समझा जा सकता है कि खरीफ की फसल पक कर तैयार हो जाती है तो उस समय तक सर्दी का मौसम आरंभ हो जाता है। सर्दी में बाजरा कितना स्वास्थवर्द्धक होता है इसको बताने की आवश्यकता नहीं है तो गरमी में बाजरे की राबड़ी की अपनी पहचान से है। समय का बदलाव देखिए कि गॉंव-गरीब का भोजन आज पंच सितारा होटलों के प्रमुख व्यंजन बन चुका है। शादियों में बाजरे की खिचड़ी या छाछ राबड़ी प्रमुखता से परोसी जाने लगी है तो इसका मतलब भी समझना होगा।

अब कृषि वैज्ञानिकों के सामने नई चुनौती है और वह यह है कि मोटे अनाज की उन्नत व गुणवत्तापूर्ण किस्म विकसित करनी होगी, शोध और अनुसंधान को बढ़ाना होगा और किसानों को मोटे अनाज के उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक प्रेरित करनी होगी। मोटे अनाज को जब हम एक बार फिर से भविष्य का अनाज देख रहे हैं तो फिर हमें देश दुनिया में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ाने के समन्वित प्रयास करने होंगे। भविष्य की मांग को समझना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)