कानपुर में भी उगेगी पहाड़ों में होने वाली स्ट्रॉबेरी
- शोध छात्र ने उत्पादन तकनीक में सुधार कर की स्ट्रॉबेरी की पैदावार की कानपुर, 23 मार्च (हि.स.)। उत्त
कानपुर में भी उगेगी पहाड़ों में होने वाली स्ट्रॉबेरी


कानपुर में भी उगेगी पहाड़ों में होने वाली स्ट्रॉबेरी


कानपुर में भी उगेगी पहाड़ों में होने वाली जैविक स्ट्रॉबेरी


- शोध छात्र ने उत्पादन तकनीक में सुधार कर की स्ट्रॉबेरी की पैदावार की

कानपुर, 23 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में अब पूरी तरह से जैविक स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू हो सकेगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस पर सफलता पा ली है। विश्वविद्यालय परिसर में स्ट्रॉबेरी की पहली फसल का उत्पादन किया गया है। सीएसए के उद्यान विज्ञान विभाग के शोध छात्र ने स्ट्रॉबेरी की फसल पैदा करने में सफलता हासिल की है।

उल्लेखनीय है कि स्ट्रॉबेरी सामान्य तौर पर ठंडी जलवायु की फसल है। यह अधिकांश पहाड़ों पर उगाई जाती रही है लेकिन जलवायु परिवर्तन के दौर में उत्पादन तकनीक में सुधार कर इसका सीएसए में पैदावार किया जा रहा है। अब देश के मैदानी क्षेत्रों में, जहां पर सिंचाई की समुचित उपलब्धता के साथ बलुई दोमट मिट्टी है, वहां इसकी सफलता पूर्वक पैदावार की जा सकती है।

इसके फल लाल रंग के तथा विटामिन सी (60 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम भाग में) का धनी श्रोत होने के साथ-साथ इसमें अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में होते हैं। इसके फलों को खाने से शरीर में रक्त अल्पता की कमी दूर हो जाती है। मैदानी भागों में स्ट्रॉबेरी के सफल उत्पादन के लिए दिन में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा रात में 10 से 15 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त रहता है। मृदा का पीएच मान हल्का अम्लीय होना चाहिए। व्यवसायिक स्तर पर इसका रोपण सितम्बर से अक्टूबर महीने में आठ से 10 सेंटीमीटर ऊंची उठी हुई क्यारियों में किया जाता है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में इसे गमलों और छोटी क्यारियों में लगाकर भी उगाया जाता है। जनवरी माह से फल उत्पादन प्रारंभ होने के बाद अप्रैल-मई तक फल प्राप्त होते रहते हैं। प्रति पौधा 100-150 ग्राम फल प्राप्त हो जाते हैं।

उद्यान विज्ञान विभाग के शोध छात्र (फल विज्ञान) रवि प्रताप के अनुसार अमूमन फल के उत्पादन में विभिन्न रसायनों व खाद का प्रयोग किया जाता है। वहीं विश्वविद्यालय में उत्पादित स्ट्रॉबेरी जैविक विधि में बिना रसायनों के और कार्बनिक खादों के प्रयोग से खेती की जाती है। वातावरण तथा मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए वह इस समय जीवामृत, पंचगव्य, बीजामृत के साथ-साथ वर्मीकंपोस्ट सहित अन्य जैविक पदार्थों का प्रयोग कर स्ट्राबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। बाॅयो इनहैंसर के प्रयोग से स्ट्राबेरी उत्पादन पर परीक्षण किया जा रहा है।

क्या होता है बाॅयोइनहैंसर

पंचगव्य (गाय का दूध, गोमूत्र, दही, घी व गोबर) से निर्मित होता है। बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत आदि बाॅयोइनहैंसर होते हैं। जिनसे मृदा में सूक्ष्म जीवाणु की संख्या में वृद्धि के द्वारा पौधों की विभिन्न क्रियाओं में लाभदायक परिणाम होता है।

हिन्दुस्थान समाचार/अवनीश अवस्थी