(विश्व जल दिवस/22 मार्च विशेष) जल बिन 'जल' जाती हैं सभ्यता
भारत के मानचित्र पर जन्मी दुनिया की प्राचीनतम विकसित सभ्यता ' सिंधु घाटी ' के पतन की अगर हम वजह जान लें तो पानी के महत्व को समझ सकते हैं।

फोटो
 
 
 
डॉ. नाज परवीन
 
भारत के मानचित्र पर जन्मी दुनिया की प्राचीनतम विकसित सभ्यता ' सिंधु घाटी ' के पतन की अगर हम वजह जान लें तो पानी के महत्व को समझ सकते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 2350 ई. पूर्व तक अपने चर्मोत्कर्ष पर रही। यह जिस गति से प्रकाश में आई, उसी गति से विनाश की खाई में समा गई। इस पर कई इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। इस सभ्यता के विलुप्त होने के पीछे का प्रमुख कारक जलवायु परिवर्तन को भी माना जाता है। आरेल स्टाइन और अमलानन्द घोष का मत है कि जंगलों की अत्यधिक कटाई के कारण हुए जलवायु परिवर्तन से धीरे-धीरे इस सभ्यता का अंत हो गया। दूसरे वैज्ञानिक मार्शल और मैके बाढ़ को जिम्मेदार ठहराते हैं।
 
आज के जल संकट को देखकर लगता है कि क्या हम इतिहास को पुनः दोहराने की ओर बढ़ रहे हैं। हम यह भी भूल गए हैं कि हजारों साल तक हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के संरक्षक के रूप में जीवन जिया है। यह उन्हीं का प्रताप है कि प्रकृति के ज्यादातर संसाधन अब तक हमारे पास मौजूद हैं। अफसोस यह है कि 21वीं सदी के जिस दौर में हम रह रहे हैं उसे देखकर ऐसा आभास होता है कि हम अपने पूर्वजों की अमानत को अपनी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने में सफल नहीं होंगे। जिस तेजी से प्रकृति का खजाना खाली होता नजर आ रहा है, उससे तो कम से कम यही संकेत हैं।
 
दुनिया भर के प्रकृति प्रेमियों और सामाजिक विज्ञानियों में इस बात की चिंता गहराने लगी है कि कहीं आज दुनिया विनाश के कगार में तो नहीं ठहरी है। उनकी चिंता का आधार तेजी के साथ हो रहा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और जलवायु असंतुलन है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा की दुनिया में खतरे का अलार्म बज चुका है। नीति आयोग ने भारत में बढ़ते जल संकट पर चिंता जताई है। भारत के 600 मिलियन से अधिक लोग जल संकट की गिरफ्त में हैं। अनुमान है 2030 तक देश की जल आपूर्ति मौजूदा आपूर्ति की तुलना में दोगुना हो सकती है। आयोग की वर्ष 2018 में जारी कंपोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट इस संकट को समझने के लिए काफी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में सन् 1994 में जल की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घन मीटर थी। वर्ष 2000 में यह 2300 घन मीटर रह गई। वर्ष 2025 तक इसका 1600 घन मीटर रह जाने का अनुमान है।
फाल्केन मार्क इंडिकेटर या वाटर स्ट्रेस इंडेक्स के अनुसार किसी देश में यदि प्रति व्यक्ति नवीकरणीय जल की मात्रा 1,700 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल तनाव से गुजर रहा है। यदि यह 1,000 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि देश जल की कमी से जूझ रहा है। यह यह 500 घन मीटर से कम हो तो माना जाता है कि वह देश जल की पूर्ण कमी का सामना कर रहा है। नीति आयोग के इस आकलन का निचोड़ यह है कि दो साल बाद जल संकट तनाव का रूप धारण कर लेगा। देश की ज्यादातर नदियां अपना मूल स्वरूप खोती जा रही हैं। दिल्ली की यमुना नदी में फैला झाग चेतावनी देता नजर आने लगा है। हम प्रकृति के संरक्षण से दोहन की यात्रा की ओर निकल पड़े हैं। इसकी तसदीक मौजूदा आंकड़े करते हैं।
 
वर्तमान में भारत विश्व में भू-जल का सर्वाधिक निष्कर्षण करता है। यह चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के निष्कर्षण से भी अधिक है। माना जाता है कि भारत इसका आठ फीसद ही पेयजल के रूप में उपयोग करता है। 80 प्रतिशत भाग सिंचाई में उपयोग करता है और बाकी 12 फीसद हिस्सा उद्योग उपयोग करते हैं। भारत नदियों का देश हैं। सदियों से यहां पानी को सहेजने की परंपरा रही है। जहां नदियों की पहुंच नहीं थी वहां तालाबों के माध्यम से बारिश के पानी को संरक्षित करने का रिवाज था। अब कोई वर्षा जल को संरक्षित नहीं करता। इससे ही बूंदों का संकट खड़ा हुआ है।
 
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार देश के 700 में से 256 जनपदों में आत्मघाती तरीके से भू-जल दोहन हो रहा है। वर्ष 1960 में समूचे देश में लगभग 30 लाख ट्यूबबेल थे। वर्ष 2010 में यह संख्या साढ़े तीन करोड़ पहुंच गई। साइंस ओआरजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2025 तक पश्चिमोत्तर और दक्षिण भारत के कई इलाके गहरे जल संकट की चपेट में होंगे। यदि इस संकट का कोई पुख्ता हल न निकाला गया तो वर्ष 2050 तक पूरा भारत इस समस्या का सामना कर सकता है। सूखा, बाढ़ जैसी आपदा बेशक कोई नई नहीं है लेकिन ये जल संकट और जलवायु परिवर्तन के लिए बड़े कारक बन सकते हैं। हम बहुत पहले से सुनते आए हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। यह कितना सही साबित होगा यह तो वक्त की मुठ्ठी में कैद है लेकिन जल ही जीवन है यह कहावत पूरी तरह सच है। दुनिया में जल संकट आने वाले समय में एक नए युद्ध की आधारशिला रख रहा है। धरती की कोख सूख गई तो प्यास के लिए मारकाट मचनी तय है। हमारे पुरखों ने जल संरक्षण के बेहतर इंतजाम किए थे। आज उससे भी ज्यादा पुख्ता बंदोबस्त की जरूरत है। सरकार अकेले परिवर्तन नहीं कर सकती। इस भगीरथ संकल्प में समाज को भी आगे आना होगा।
 
(लेखिका, श्री द्रोणाचार्य महाविद्यालय, दनकौर (ग्रेटर नोएडा) में सहायक आचार्य हैं।)
 
हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद