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— भारत में होने वाली वार्षिक असमय मौतों में से 18 फीसद के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार
कानपुर, 13 मार्च (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के नेतृत्व में एक सहयोगी अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली में रात के समय भारी मात्रा में कणीय प्रदूषण बायोमास जलाने के उत्सर्जन के कारण होता है। नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन का नेतृत्व आईआईटी कानपुर कर रहा है, जिसमें भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) आईआईटी दिल्ली, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), पॉल शेरर इंस्टीट्यूट (पीएसआई) स्विट्जरलैंड और हेलसिंकी यूनिवर्सिटी, फिनलैंड ने योगदान दिया है। इस शोध पत्र की सह-लेखिका सुनीति मिश्रा और सह-लेखक प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी कानपुर हैं।
सुनीति मिश्रा ने बताया कि दिल्ली में अक्सर कणीय प्रदूषण की उच्च मात्रा का अनुभव होता है जिसे धुंध भी कहा जाता है; हालाँकि उनके उत्पत्ति के सटीक कारण अब तक अज्ञात थे। संपूर्ण शोध ने दिल्ली में सर्दियों के दौरान अनुभव की जाने वाली गंभीर धुंध की घटनाओं के पीछे के कारण का पता लगाया, जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक है।
आईआईटी कानपुर के प्रो. सच्चिदा नंद त्रिपाठी जो इस अध्ययन के प्रधान अन्वेषक थे ने कहा इंडो-गंगा के मैदान में आवासीय हीटिंग और खाना पकाने के लिए अनियंत्रित बायोमास जलने से अल्ट्राफाइन कण बनते हैं, जो दुनिया के 5 प्रतिशत जनसंख्या के स्वास्थ्य और क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित करते हैं। अनियंत्रित बायोमास-दहन उत्सर्जन को विनियमित करने से रात्रि धुंध निर्माण को रोकने और स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिल सकती है। यह अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वायु प्रदूषण भारत में होने वाली कुल वार्षिक अकाल मृत्यु के 18 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है।
अध्ययन बताता है कि अनियंत्रित दहन में कमी, विशेष रूप से अनुकूल मौसम की स्थिति के दौरान, नैनोकणों के विकास के लिए उपलब्ध सुपरसैचुरेटेड वाष्प की मात्रा को सीमित कर सकती है और इसलिए दिल्ली में धुंध के दौरान रात में कणों की संख्या को कम करने के लिए एक प्रभावी रणनीति कारगर साबित हो सकती है।
हिन्दुस्थान समाचार/अजय सिंह