कल्पवास की जिंदगी और रेहान की बांसुरी
प्रभुनाथ शुक्ल 'माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं। सादर मज्जहि
प्रयागराज में आयोजित कल्पवास मेले में मिट जाता है धर्म और जाति का भेद। फोटो-प्रभुनाथ शुक्ल


प्रभुनाथ शुक्ल

'माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी।' तीर्थ प्रयाग क्षेत्र गंगा नदी के विशाल मैदान में बसा है। प्रयाग को सभी तीर्थों का राजा कहा गया है। प्रयाग समस्त कष्टों को हरने वाला ही नहीं, अनेक संस्कृतियों के मिलन का संगम भी है। यहां गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के साथ देश की विभिन्न धर्म-संस्कृतियों की भी कल्पवास में त्रिवेणी बहती है। गंगा और त्रिवेणी स्नान से सिर्फ मोक्ष ही नहीं अर्थ एवं धर्म की भी प्राप्ति होती है। दुनिया भर में नदी सभ्यता में इतना बड़ा भू-भाग कहीं नहीं मिलता है जहां विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला आयोजित होता है। कल्पवास में साम्प्रदायिक सद्भाव भी देखने को मिलता है।

प्रयागराज को कुंभ, संगम और तंबुओं की नगरी से भी जाना जाता है। पूरे महीने भर देश-विदेश से आए श्रद्धालु और भक्त तंबू में कल्पवास करते हैं। चारों पीठों के शंकराचार्य एवं साधु-संतों का आगमन होता है। प्रत्येक 12 साल पर कुंभ का आयोजन होता है। कहा जाता है ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रथम यज्ञ यहीं किया।'प्र' से प्रथम और 'याग' से यज्ञ। इसकी वजह इसका नाम प्रयाग पड़ा। इस पवित्र नगरी के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं। वो स्वयं यहां वेणी माधव के रूप में विराजमान है।

पुराणों में सात पुरी-अयोध्या, मथुरा, मायापुरी, काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका हैं। पुरियों को तीर्थराज प्रयाग की धर्मपत्नियों की संज्ञा दी गई है। सात पुरियों में काशी सर्वश्रेष्ठ है। इसे तीर्थराज की पटरानी कहा गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सभी क्षेत्रों की उत्पत्ति प्रयागराज से हुई है और प्रयागराज ने इन्हें मोक्ष का अधिकार प्रदान किया है। प्रयाग में मास भर आयोजित होने वाला कल्पवास हमारी सांझी सांस्कृतिक विरासत है। कल्पवास क्षेत्र में जाति-धर्म, भाषा और रंग का भेद मिट जाता है। प्रयाग में विभिन्न धर्म और संस्कृतियों से आने वाला व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ प्रयाग का होकर रह जाता है। प्रयाग में सिर्फ मनुष्यता दिखती है। यहां आपको सब कुछ मिल जाएगा। प्रयाग को अच्छी तरह जानने के लिए सिर्फ कल्पवास और त्रिवेणी स्नान काफी नहीं है। उसे पढ़ने के लिए रेत-रेत में बिखरना होगा। तब आपको पता चलेगा कि इस पवित्र रेती में पूरा भारत विभिन्न रंग-रूपों में बिखरा पड़ा है।

संगम की रेती में बिहार के रेहान राजा की बांसुरी क्यों बजती है। झारखंड के जय प्रकाश की फिरंगी क्यों नाचती है। सहारनपुर के सलीम बालमखीरा का चूरन क्यों बेचने आते हैं। इनके लिए कल्पवास का क्या मतलब है। इन्हीं के जीवन संघर्ष में छुपा है अर्थ, धर्म और मोक्ष का अर्थ। परेड ग्राउंड में खादी ग्रामोद्योग की दुकानें मिल जाएंगी। कान्हा-श्याम की सुंदर मूर्ति और कपड़े मिल जाएंगे। गीता प्रेस गोरखपुर दुकानें जगह-जगह मिल जाएंगी। रामदाने की पट्टी और बच्चों के खिलौने भी खूब बिकते हैं। कल्पवास शिवरात्रि तक चलेगा।

गंगा घाट पर स्नान के दौरान हमें बिहार के रेहान राजा बांसुरी बेचते मिल गए। उसकी उम्र तकरीबन 15 साल है। अपने अब्बा के साथ पहली बार आए हैं। लॉकडाउन के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। अब अब्बा के साथ मेलों में बांसुरी बेचकर पैसा कमाते हैं। उस पैसे से बहन की शादी करेंगे। रेहान छपरा जिले के बनियापुर थाना के मिसकारी टोला गांव के हैं। रेहान की तीन बहने हैं। एक की शादी हो चुकी है। अब्बा पर बैंक का काफी कर्ज है। अब्बा इसी बांसुरी की कमाई से बैंक की किस्त भरते हैं। रेहान राजा ने बताया कि अमावस के दिन पंद्रह सौ रुपये की कमाई हुई। उनके गांव के 80-90 लोग हैं कल्पवास मेले में। सभी बांसुरी बेचते हैं।

कल्पवास की रेती में ही झारखंड के राजमल साहबगंज, उदवां के रहने वाले जय प्रकाश राय मिल गए। वह खिलौनों के साथ बांस और कागज से बनी फिरंगी बेच रहे थे। उन्होंने बताया कि मेले में हर दिन 300 से 500 रुपये बचा लेते हैं। धंधा तो हजार रुपये तक का हो जाता है लेकिन सामानों के खर्च को काटकर इतना बच जाता है। वह 13 जनवरी से यहां हैं। कल्पवास खत्म होने के बाद वह दिल्ली चले जाएंगे और वहां यही फिरंगी बेचेंगे।

संगम वापसी के दौरान पुल नंबर चार के रास्ते में सहारनपुर के सलीम मिल गए। सलीम बालम खीरा का चूर्ण बेच रहे थे। बोले ले लीजिए साहब। यह पेट के लिए अचूक रामबाण है। बस भोजन के बाद गुनगुने पानी से फांक लीजिए। सुबह पेट सफा तो सारे रोग दफा। 200 रुपये किलोग्राम है साहब। हमने सलीम से चूर्ण का एक पैकेट खरीद लिया। उन्होंने बताया कि अब तक तीन क्विंटल से अधिक चूर्ण बेंच चुके है। सलीम से हमने पूछा कि हिंदू मेले में आए हैं, आपको कोई डर नहीं लगता। बोले, राजनीति को छोड़िए साहब। देश सबका है। राजनीति से क्या मिलेगा। हम यहां हर साल आते हैं। प्रयाग में किसी जाति-धर्म का भेदभाव नहीं। यहां प्रशासनिक सहयोग खूब मिलता है। ऐसा मानने वाले सलीम ही नहीं और भी हैं। प्रयाग में लगने वाला कल्पवास अप्रत्यक्ष रूप से पूरे देश को एक धागे में पिरोता है। कल्पवास 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' का सबसे अनुपम उदाहरण है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद