इंदौर में 64 वर्ष बाद उसी तिथि और नक्षत्र में विराजीं मां अन्नपूर्णा
- आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने किया लोकार्पण इंदौर, 3 फरवरी (हि.स.)। इंदौर के इतिह
इंदौर में 64 वर्ष बाद उसी तिथि और नक्षत्र में विराजीं मां अन्नपूर्णा


- आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने किया लोकार्पण

इंदौर, 3 फरवरी (हि.स.)। इंदौर के इतिहास में शुक्रवार को आस्था और अध्यात्म का एक नया अध्याय उस वक्त जुड़ गया, जब संतों ने 64 वर्ष बाद उसी तिथि और उसी नक्षत्र में उसी परिसर में मां अन्नपूर्णा, महाकाली और महासरस्वती के साथ श्रीगणेश, हनुमानजी और महादेव को भिक्षा देती हुई मां पार्वती की मूर्तियों में मंत्रों के साथ चैतन्यता प्रदान की। वर्ष 1959 में महामंडलेश्वर स्वामी प्रभानंद गिरि ने माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर पुनर्वसु नक्षत्र में जब मां अन्नपूर्णा के साथ अन्य देवियों की स्थापना की थी, उसी संयोग में एक बार फिर यह अनुष्ठान हुआ।

इस मौके पर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि, जूना पीठाधीश आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, श्रीविद्याधाम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, अण्णा महाराज सहित कई साधु-संत उपस्थित थे। मंत्रोच्चार से गूंजते मंदिर में स्वामी अवधेशानंद गिरि ने बारी-बारी से मूर्तियों के हृदय स्थल को अंगूठे से छूआ और उनका नामकरण किया। पूरा मंदिर जयघोष से गूंज उठा। प्राण प्रतिष्ठा के बाद हर मूर्ति को दर्पण दिखाया गया।

शुक्रवार को अलसुबह ब्रह्म मूहुर्त में यजमानों ने अपने आभूषण तक उतारकर मूर्तियों की स्थापना वेदी के नीचे डाल दिए। वहीं दोपहर 11.30 बजे अभिजित मुहूर्त में हुई प्राण प्रतिष्ठा विधि के समय मुख्य द्वार पर शहनाई वादन ने मंगलबेला को सुरीला बना दिया। आतिशबाजी कर भक्तों ने प्रसन्नता का प्रमाण दिया। ड्रोन से पुष्पवर्षा की गई। शाम को मंदिर के लोकार्पण के बाद भक्तों को दर्शन का मौका मिला। यहां स्थापित गणेशजी की मूर्ति को सिद्धिविनायक और हनुमानजी की मूर्ति को संकटमोचन नाम दिया गया। बाहर स्थापित मां पार्वती और शिवजी की मूर्ति को गौरीशंकर नाम दिया गया। अंत में देवी-देवताओं को मुख्य यजमान विनोद नीना अग्रवाल ने दर्पण दिखाया। अनुष्ठान आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में हुआ।

शुक्रवार सुबह ब्रह्म मुहूर्त में इन मूर्तियों को यथास्थान पर स्थापित किया गया। स्थापना की विधि स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि ने कराई। इस दौरान जिस वेदी पर मूर्तियां स्थापित होनी थीं, उनके नीचे स्वर्ण, रजत, रत्न आदि डाले जाने थे। इस दौरान यजमानों ने अपने आभूषण उतारकर अर्पित कर दिए। वेदी को मजबूती प्रदान करने का कार्य वास्तुविद सत्यप्रकाश राजपूत ने किया। यह क्रिया सुबह 5 बजे से 6 बजे तक जारी रही। इसके बाद 11.30 बजे अभिजित मुहूर्त में महामंडलेश्वर ने गर्भगृह में प्रवेश किया।

अन्नपूर्णा पाठशाला के पं. किशोर जोशी वैदिक ने बताया कि गणपतिजी के स्मरण के बाद प्राण प्रतिष्ठा के लिए संकल्प लिया। फिर बीजमंत्रों द्वारा स्थापना की गई। इसके बाद शरीर की सभी इंद्रियों का मंत्रों के माध्यम से स्मरण करते हुए ओम का 15 बार उच्चारण किया गया। बाद में हृदय पर अंगूठे का स्पर्श कराकर प्राण प्रतिष्ठा की गई। गर्भगृह के बाहर विराजित हनुमानजी और गणेशजी का भी पूजन किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश / डा. मयंक