मोटे अनाज की ओर लौट रहा है गुजरात का आदिवासी पट्टा
-डेडियापारा के गांवों में मिलेट्स के लिए जागरूक हुए किसान -परंपरागत अनाज की खेती छोड़ चुके किसान फिर
मिलेट्स की खेती


मिलेट्स की खेती


मिलेट्स की खेती


मिलेट्स की खेती


-डेडियापारा के गांवों में मिलेट्स के लिए जागरूक हुए किसान

-परंपरागत अनाज की खेती छोड़ चुके किसान फिर से उगा रहे मोटा अनाज

-नवसारी कृषि विश्वविद्यालय और स्वयंसेवी संस्था की मेहनत ला रही रंग

अहमदाबाद, 02 फ़रवरी (हि.स.)। केन्द्रीय बजट में इस वर्ष मोटा अनाज को श्री अन्न से संबोधित कर इसके किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना का समावेश किया गया है। इतना ही नहीं सरकार इसके लिए भारतीय मिलेट्स संस्थान का गठन कर लंबे समय की योजना पर काम करेगी। लेकिन, जब से भारत की पहल पर 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (इंटरनेशनल मिलेट्स वर्ष) के रूप में मनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र ने स्वीकार कर लिया है, भारत के किसानों के लिए यह वरदान की तरह दिखाई दे रहा है। भारत की इस पहल को करीब 72 देशों का समर्थन भी प्राप्त हुआ है। आज दुनिया भर में करीब 131 देशों में मिलेट्स यानी मोटे अनाजों का उत्पादन होता है और उसमें करीब 20 प्रतिशत भागीदारी भारत की है।

गुजरात का आदिवासी पट्टे पर सभी की नजर

गुजरात का उमरगांव से लेकर अंबाजी तक का आदिवासी पट्टा मिलेट्स की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त बताया जाता है। इस क्षेत्र के किसान सैकड़ों साल से मिलेट्स की खेती करते आ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में नवसारी कृषि विश्वविद्यालय समेत स्वयंसेवी संस्थाओं की पहल से नर्मदा जिले का डेडियापाड़ा इसका हब बनता दिखाई दे रहा है। वहीं दक्षिण गुजरात के डांग के किसान भी इस दिशा में आगे हैं, और यहां कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से मिलेट्स के बीज उत्पादन का बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार, रागी, मोरिया, सामा, सांवा, कुट्टू, रामदाना, कंगनि, कुटकी, कोडो, छीना ये सब दक्षिण गुजरात समेत गुजरात की पूर्वी पट्टी के मुख्य आहार में शामिल रहे हैं।

ऐसे शुरू हुआ कारवां

नवसारी कृषि युनिवर्सिटी अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र के सीनियर वैज्ञानिक व हेड प्रमोद वर्मा बताते हैं कि पिछले तीन-चार साल के प्रयासों से नर्मदा जिले की डेडियापाड़ा तहसील के करीब एक हजार किसान इस खेती से जुड़े हैं। मिलेट्स के फायदे और इसके उपयोग से यहां के किसान पहले से परिचित हैं। अब दोबारा इन किसानों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इन किसानों को योजना अंतर्गत निशुल्क बीज उपलब्ध कराया गया जिसके कारण किसान इस खेती की ओर प्रोत्साहित हुए हैं। दूसरी ओर पिछले करीब 4-5 साल से डेडियापारा में ही किसानों के मिलेट्स को अधिक से अधिक कीमत दिलाने में सक्रिय ग्रीन हब फाउंडेशन के सुनील त्रिवेदी बताते हैं कि उन्होंने कुछ ही साल के अंदर 20 हजार किलो मिलेट्स की प्रोसेसिंग की है। त्रिवेदी बताते हैं कि इस मोटे अनाज में सबसे अधिक दिक्कत अनाज को छिलके से बाहर निकलाने और फिर सुरक्षित रखना है। इसके लिए उन्होंने राइस मिल की तरह ही एक प्लांट डेडियापाड़ा में लगाया है। साथ ही सागबारा में भी दो और प्लांट लगाने की योजना है। इसके अलावा उन्होंने वैक्यूम पैक मशीन लगाई है जिसमें मोटा अनाज परिष्कृत होकर 8 से 12 महीने तक सुरक्षित रह सकता है।

कम पानी की फसल

मिलेट्स या श्री अन्न की फसलों को कम पानी की जरूरत होती है। गन्ने के पौधे को 2100 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है वहीं, बाजरा के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में केवल 350 मिलीमीटर पानी ही चाहिए होता है। जहां, बाकी फसलें पानी की कमी होने पर बर्बाद हो जाती हैं, वहीं, मोटा अनाज की फसल अगर खराब भी हो जाती है तो वह पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं।

वर्ष 2018 को मनाया था मोटा अनाज वर्ष

केंद्र सरकार ने साल 2018 को मोटा अनाज वर्ष मनाया और मोटे अन्नों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय किया। भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र ने माना और 2023 को मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया। अब सरकार देश-विदेश में मोटे अनाज की ब्रांडिंग कर देश के 14 राज्यों के 300 से अधिक जिलों में अनुसंधान, हाईटेक खेती के साथ प्रोसेसिंग यूनिट्स भी लगाने जा रही है।

इन डी-हुलर मशीन से आया बदलाव

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय और केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान द्वारा विकसित डी-हुलर मशीन ने मोटे अनाज की दुनिया ही बदल दी। इसका उपयोग रागी और बाजरे की भूसी को हटाने में किया जाता है, जो काफी मुश्किल था। अब किसान रागी और बाजरे की खेती में भी रुचि ले रहे हैं।

भोजन में मोटा अनाज जरूरी

मोटे अनाजों में प्रोटीन, खनिज, लोहा, कैल्शियम, मैगनीज, फासफोरस, पोटाशियम, जिंक व जरूरी विटामिन होते हैं। शारीरिक एवं मानसिक विकास के अलावा मोटे अनाज पाचन, हृदय, मधुमेह, एनीमिया, लीवर कैंसर, इम्युनिटी आदि में लाभकारी हैं। बिहार, झारखंड, उड़ीसा और तेलंगाना में रागी, बाजरे और जौ का शेक युवाओं की खास पसंद है।

हिन्दुस्थान समाचार/ बिनोद पांडेय